25 मार्च 1994
गाँव लोंगेडिपाब्रम
मणिपुर
इंडियन आर्मी के पास ख़ुफ़िया खबर थी कि अलगाववादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट कॉउंसिल ऑफ़ नागालैंड के कुछ आतंकवादी लोंगेडिपाब्रम गाँव में छिपे हुये हैं। उस इलाके में इंडियन आर्मी की मूवमेंट को खत्म करने के लिये वह एक कनेक्टिंग पुल को बॉम्ब से उड़ाना चाहते हैं।
आतंकवादियों को खत्म करने का टास्क कैप्टेन डीपीके पिल्लई और उनकी टीम को दिया गया। कैप्टेन पिल्लई और उनकी टीम गाँव में पहुंच चुकी थी।
उन्हें जानकारी मिली के आतंकवादी एक घर में छिपे हुये हैं। कैप्टन पिल्लई और उनकी टीम ने घर को चारों ओर से घेर लिया और आतंकवादियों से सरंडर करने को कहा।
आतंकवादियों की ओर से बार बार कहने के बाद कोई जवाब नहीं मिला तो कैप्टेन पिल्लई को घर पर धावा बोलना पड़ा।
दोनों ओर से गोलियां चलने लगी। एक ओर जहां इंडियन आर्मी के जवानों के पास राइफल्स थी तो दूजी ओर आतंकवादी ऐके 56 राइफल्स से लैस थे।
दोनों ओर से आग बरस रही थी । इसी बीच आतंकियों पर फायर करते पिल्लई के काँधे और बाजू को 3 गोलियां चीरती हुई निकल गयी। एक गोली छाती के ऊपर के भाग को चीरती हुई आर पार हो गयी।
कहते हैं शेर जब घायल हो जाये तब और खतरनाक हो जाता है। लहुलूहान कैप्टेन ताबड़तोड़ गोलियां चलाने लगे और आतंकवादियों के सरगना को गोलियों से भून दिया।
अपने आका का अंत देख कर हताश आतंकवादियों से सरंडर कर दिया। डेढ़ घँटे चले एनकाउंटर का अंत हो चुका था।
कैप्टेन लहूलुहान थे। शरीर के हर कोने से लहू बह रहा था।
कहते हैं गेहूं के साथ घुन भी पिस जाता है। उस मुठभेड़ में भी कुछ ऐसा ही हुआ। जिस घर में आतंकवादी छिपे थे उस घर में दो बच्चे भी थे। 6 साल का एक लड़का था जिसे मुठभेड़ के दौरान टांग में गोली लगी थी और 13 साल की एक लड़की थी जिसे पेट में गोली लगी थी।
लहू से लथपथ बच्चों को घर से बाहर लाया गया।
इंडियन आर्मी का एक हेलीकॉप्टर आर्मी के घायल जवानों की मदद के लिये मौके पर पहुंच चुका था।
एक ओर कैप्टेन पिल्लई की सांसें उखड़ रही थी तो दूसरी ओर दोनों बच्चे अपनी अंतिम सांसे गिन रहे थे।
फिर कुछ ऐसा हुआ तो इंडियन आर्मी के इतिहास में “स्वर्णाक्षरों” में दर्ज हो गया है।
कैप्टेन पिल्लई को एयरलिफ्ट करने वाली टीम जैसे ही उनके समीप पहुंची दर्द से कराहते हुये जांबाज़ ने उन दो बच्चों को ओर इशारा करते हुऐ कहा…..” पहले इन्हें बचाओ। अगर इन्हें कुछ हो गया तो मैं खुद को माफ नहीं कर पाऊंगा।”
हेलीकॉप्टर उड़ाने वाला पॉयलेट पिल्लई का कोर्समेट था। उसने कैप्टन से कहा “अगर तुम्हें कुछ हो गया तो मैं तुम्हारी माँ से क्या कहूंगा।”
“उनसे कहना के मैं जाते जाते दो बच्चों को जीवनदान दे गया ……”Just tell her that I saved two children”।
कैप्टन की ज़िद के आगे एयरलिफ्ट टीम ने घुटने टेक दिये। दोनों बच्चों को हेलीकॉप्टर द्वारा बटालियन हेडक्वार्टर ले जाया गया।
इसी बीच पिल्लई अपनी आखरी सांसे गिन रहे थे। खून बह रहा था…… सहनशक्ति जवाब दे चुकी थी। शरीर से रिस रही लहू की एक एक बूंद कैप्टन की ज़िंदगी को मौत के करीब ले जा रही थी……… आँखें बंद हो चली थी और शरीर ठंडा हो रहा था।
तभी……….!
अचानक हेलीकॉप्टर की आवाज़ सुनाई दी। बच्चों को छोड़ कर अपने जांबाज को बचाने रेस्क्यू टीम वापिस आ चुकी थी।
अधमरी हालत में कैप्टन को एयरलिफ्ट कर के आर्मी हॉस्पिटल ले जाया गया। डॉक्टरस की एक टीम जांबाज़ कैप्टन की की उखड़ती सांसों को वापिस लाने में जुट गयी।
4 गोलियों का वार सहन कर चुके कैप्टन ने मौत को ठेंगा दिखा दिया। जीवनदाता डॉक्टर्स के अथक परिश्रम से से कैप्टन मौत के मुंह से वापिस आ गये।
आर्मी हॉस्पिटल के बेड पर जब इस रणबांकुरे ने आँखें खोली तो सबसे पहले उन दो अबोध बच्चों के विषय में पूछा जो इस रात लहूलुहान हो गये थे।
जवाब मिला के बच्चे सुरक्षित हैं तो खुशी आंसुओं का रूप लेकर कैप्टन की आंखों से बह निकली।
किन शब्दों में इस शौर्य……इस कर्तव्यनिष्ठा का व्याख्यान किया जाये?
एक फौजी जिसके शरीर को गोलियां चीर चुकी हैं…..अपनी जान की परवाह किये बिना दो मासूमों की जान बचाने को प्राथमिकता देता है।
वीरता की इस कथा को किन शब्दों में ढाला जाये?
कैप्टन पिल्लई को उनकी अदम्य वीरता और साहस के लिये 1995 में “शौर्य चक्र” से सम्मानित किया गया और बाद में वे कर्नल बनकर फ़ौज से रेटायअर हुए।
हम सब निश्चिन्त होकर सो पाते हैं क्योंकि कैप्टन पिल्लई जैसे असंख्य जांबाज़ बार्डर पर वतन की रक्षा के लिये जान कि बाजी लगा रहे हैं। ये कभी न भूलना दोस्तों।
जय जवान।
जय हिंद।
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आप कर्नल पिल्लई से ट्विटर पर जुड़ सकते हैं: @dpkpillay12