आतङ्की तो नौकर हैं,पहलगाम का अपराधी “सैयद असीम मुनीर अहमक शाह” है जो डेढ़ वर्षों से पाक सेना का प्रमुख है और पहला ऐसा सेना प्रमुख है जो Inter-Services Intelligence (ISI) एवं Military Intelligence (MI) का भी प्रमुख रह चुका है ।
पाकिस्तान का आर्थिक विकास तेज करने के लिए विदेशी निवेश बढ़ाने के लिए उसने पूरी शक्ति लगा दी है — जो कि सेना का कार्य नहीं है । किन्तु पाकिस्तान में कोई ऐसा कार्य नहीं है जो सेना का कार्य नहीं है,और कंगाल देश की अर्थव्यवस्था को सुधारे बिना सैयद असीम अपना भारतविरोधी और विशेषतया हिन्दूविरोधी अजेण्डा पूरा नहीं कर सकते ।
पहलगाम घटना के समय मेरु मासफल की चक्रदशा में मङ्गल का समय था जो शत्रुभाव में स्थित थे। तब सर्वाधिक अशुभ वेध सैयद के “स” पर था,पाँच वेध जिसका फल पूर्ण होता है । उनमें एक था मङ्गल और शेष चार मारकेश में थे । दूसरा सर्वाधिक अशुभ नामाक्षर था “प” जिसपर मारकेश एवं मृत्युभावस्थ ग्रहों का वेध था । चूँकि मङ्गल का काल था और वह शत्रुभाव एवं मृत्युभाव का कारक था जिसका वेध “स” पर था एवं “प” पर नहीं,अतः “स” कारक बना और राजयोगकारक शुक्र ने सैयद को स्वयं फल भोगने से बचाया और केवल कारक बनाया,जबकि “प” पर केवल मारक वेध था ।
विदिशा के भारतचक्र में मासफल की चक्रदशा में मङ्गल का ही समय था जो पञ्चम में थे किन्तु मारकेश थे और मृत्युभावस्थ चन्द्रमा की राशि में थे जिसमें पहलगाम है । और भी बहुत सी बातें हैं,मुख्य बात यही है कि पाक सेनाप्रमुख का सीधा हाथ है और उसने घटना से ४ दिन पहले विषवमन भी किया था । पाकिस्तान के साहस का कारण यह है कि बालाकोट को वह अपवाद मानता है और सोचता है भारत कुछ नहीं करेगा । कश्मीर में सरकार किसकी है इसपर कुछ कहना मैं ठीक नहीं समझता ।इसबार अक्साई चिन के दक्षिण से चीन ने इन आतङ्कियों को भारत में भेजा था ।
आधुनिक युग में विश्व के किसी भी देश का सेनाध्यक्ष ऐसा साम्प्रदायिक वक्तव्य नहीं दे सकता जैसा कि पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष ने १८ अप्रैल २०२५ को दिया,फिर भी किसी भी देश अथवा संयुक्त राष्ट्र ने चर्चा के योग्य भी नहीं समझा — क्योंकि भारत सरकार ने भी अनदेखा किया,निन्दा नहीं की । भारत सरकार और संयुक्त राष्ट्र का मौन रहना चौंकाने वाला है।
पहलगाम नरसंहार में प्रयुक्त शस्त्रों के दो ही स्रोत सम्भव हैं — पाकिस्तानी सेना,अथवा अमरीका द्वारा तालिबान के लिए जानबूझकर छोड़े गये २०० अरब डॉलर के आधुनिकतम शस्त्र । यह एक गम्भीर अन्तरराष्ट्रीय सुरक्षा प्रश्न बनता है, विशेषतः जब अमेरिका द्वारा छोड़े गए $२०० अरब मूल्य के शस्त्र नियन्त्रणहीन हों। किन्तु विश्व मौन है!
पहलगाम नरसंहार में जिन आतङ्कियों का हाथ है उनमें से दो पहले से ही जम्मू क्षेत्र की आतङ्की घटनाओं में संलिप्त थे । यह खुफिया विफलता और नीतिगत शिथिलता को दर्शाता है।उमर सरकार ने हिन्दू सैलानियों एवं तीर्थयात्रियों की रक्षा में एक भी पुलिसकर्मी को लगाना अनुचित समझा था ।
उमर सरकार की घोषित प्राथमिकता है कश्मीर को पहले की तरह विशिष्ट राज्य बनाना और ८५००० “बाहरी” अर्थात् गैर−कश्मीरी भारतीयों को भगाना। यही उद्देश्य पाकिस्तान का भी है । उमर सरकार की दूसरी घोषित प्राथमिकता है पाकिस्तान से अच्छे सम्बन्ध बनाना । भारत सरकार से अच्छे सम्बन्ध बनाना उमर सरकार की प्राथमिकता नहीं है । हिन्दुओं की सुरक्षा,अवैध सम्पत्तियों को छुड़वाना,पण्डितों के नरसंहार और अत्याचार पर देर से भी प्राथमिकी दर्ज कराना उमर सरकार की प्राथमिकता नहीं है ।
कश्मीरी पण्डितों को वापस लाने की बात उमर सरकार करती है,किन्तु सरकारी आँकड़ों के अनुसार उनकी २५००० करोड़ रूपये की सम्पत्तियों पर अवैध कब्जे को छुड़ाने के लिए दिखावटी प्राथमिकी भी पिछले ३५ वर्षों के दौरान किसी सरकार ने दर्ज नहीं करायी,पाँच वर्ष के केन्द्र शासित काल में भी नहीं !२५००० करोड़ सरकारी आँकड़ा है,वास्तविक मूल्य कई गुणा अधिक होगा । सुना है सरकार ने भी कई सम्पत्तियों पर अवैध कब्जा किया है ।
निष्पक्ष जाँच की आवश्यकता है।कश्मीरी पण्डितों को विदेशी सहायता भी नहीं मिल सकती क्योंकि अपने ही देश में होने के कारण शरणार्थी नहीं हैं । देशी सहायता भी नहीं मिलेगी क्याकि हमारी मीडिया ने ३५ वर्षों के दौरान १४ कैम्पों का एक भी चित्र आमलोगों को नहीं दिखाया,भाड़े पर फ्लैट में रहने वाले धनाढ्यों का इण्टरव्यू दिखाती है । भारत की जनता को पता ही नहीं है कि १४ कैम्पों की दशा कैसी अमानवीय है,७ तो दिल्ली में हैं जहाँ किसी दल का कोई नेता नहीं जाता, जो शर्मनाक है। । कश्मीरी पण्डितों में OBC, SC नहीं हैं इसीलिए?
आपलोगों में से जो दिल्ली अथवा जम्मू में हैं उनको कश्मीरी पण्डितों के कैम्पों के चित्र और उनकी दुर्दशा का प्रचार करना चाहिए । आमलोगों को पता चलेगा तभी कुछ सम्भव है,केवल नेताओं के भरोसे रहना लोकतन्त्र नहीं बल्कि दासता है ।केवल सिन्धुजल नहीं,झेलम चिनाब रावी सतलज का भी जल पहले जम्मू -कश्मीर पंजाब दिल्ली राजस्थान हरियाणा यूपी आदि को मिले । राजस्थान के रेगिस्तान को हराभरा किया जाये,अपने शब्दों में यह बात सरकार को लिखें । पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र में शिकायत करेगा तो भारत भी अपनी बात रखेगा ।
जनरल विजय कुमार सिंह को रक्षा मन्त्रालय से क्यों दूर रखा गया?कर्नल पुरोहित के साथ काँग्रेस ने जो किया वह पुरानी बात है,भाजपा सरकार ने जमानत का विरोध क्यों किया था,और कोर्ट मार्शल की सही रिपोर्ट न्यायालय को राष्ट्रीय सुरक्षा के बहाने सौंपने से क्यों मना किया?कुछ उच्चपदस्थ चोरों और देशद्रोहियों की पोल खुल जाती तो राष्ट्र नष्ट हो जाता?वैसी ही गलतियों का फल है जो सेना में आज भी कई वैसे लोग उच्च पदों पर हैं जो जनरल विजय कुमार सिंह जैसे नहीं हैं,विपरीत प्रकार के हैं ।
पहलगाम मैं बहुत पहले गया था किन्तु भूला नहीं हूँ । आज भी गूगल अर्थ पर उसके चारों ओर के उच्चावच्च की सूक्ष्म जाँच मैंने की । नरसंहार का घटनास्थल “बैसरन” कोई स्थायी बस्ती नहीं है बल्कि पहलगाम से ७ किलोमीटर दूर पगडण्डी से जाने वाले रास्ते से ही वहाँ जा सकते हैं जिसपर पैदल अथवा प्रशिक्षित स्थानीय घोड़े ही जा सकते हैं । बैसरन से पहलगाम के सिवा अन्य किसी ओर भागने पर प्राणों के लाले पड़ जायेंगे । कोई आतङ्कवादी ऐसा स्थान क्यों चुनेगा जहाँ से उसका भागना ही असम्भव हो?सात किलोमीटर दूर सड़क हैं जहाँ पहाड़ की घुमावदार पगडण्डी से कई घण्टे लगते हैं । तबतक सुरक्षाबल क्यों नहीं पँहुचे?QRT को एक घण्टा क्यों लगा?हेलीकॉप्टर को इतना समय नहीं लगता । ऐसा भीषण नरसंहार हो तो सेना और पुलिस पूरी शक्ति लगा देती है,आसपास का पूरा क्षेत्र छानती है ।
अमरनाथ यात्रा का बेस कैम्प पहलगाम में ही है । कल एक सीमारक्षक “गलती” से पाकिस्तान में घुस गया ताकि अब पाकिस्तान हमें ब्लैकमेल करे!हम सतलुज का जल नहीं रोकेंगे क्योंकि उसे पूरी तरह भारत की ओर मोड़े दें,जो कि आसान है,तो दिल्ली से राजस्थान तक का जलसङ्कट दूर हो जायेगा । हम सिन्धु का जल रोकेंगे जो असम्भव है,उसे रोकेंगे तो हेलीकॉप्टर द्वारा जल भारत लायेंगे?बीच में हिमालय है!NIA ने साध्वी प्रज्ञा को मुत्युदण्ड देने की माँग चार्जशीट में की है और न्यायालय ने ८ मई को अन्तिम निर्णय सुनाने की बात कही है । जिस मोटरसाइकिल पर विस्फोटक था वह दो वर्षों से साध्वी प्रज्ञा के पास थी ही नहीं यह NIA की पिछली सप्लीमेण्टरी चार्जशीट में थी जिसे NIA ने बदल दिया ।
भाजपा को वोट दें,किन्तु माथा अपने पास रखें और उसका प्रयोग करें । एक लिंक दे रहा हूँ जिसके द्वारा गूगल अर्थ को किसी भी कम्प्यूटर वा स्मार्टफोन के ब्राउजर में देख सकते हैं,प्रस्तुत मानचित्र में माउस की चक्की को दबाकर माउस को ऊपर नीचे दायें बायें करने पर पर्वतीय उच्चावच्च का मनचाहा दृश्य देख सकते हैं,बैसरन की ऐसी जाँच स्वयं कर लें,आतङ्कियों को जानबूझकर भागने दिया गया वरना ऐसे स्थान से वे भाग ही नहीं सकते थे ।
इस लिंक का प्रयोग लोग संसार के किसी भी स्थल का मानचित्र मनचाहे कोण से देख सकते हैं,तब पहलगाम के पास बैसरन का उच्चावच्च मानवचित्र स्वयं देख लेते — वहाँ से भागने का एक ही रास्ता है जो पहलगाम को जाता है ।
पाकिस्तान बीस करोड़ से अधिक जनसंख्या वाला एक आणविक शक्ति से सम्पन्न ऐसा देश है जिसके मित्र कई ऐसे शक्तिशाली देश हैं जो भारत के प्रति वैरभाव रखते हैं,जैसे कि चीन;अथवा मुँह में राम और बगल में छुरी वाली नीति अपनाते हैं,जैसे कि तुर्की और ब्रिटेन से लेकर कई अरब देश । ब्रिटेन ने पाकिस्तान को बनाया ही था भारत को सदैव उलझाये रखने के लिए । ब्रिटेन के स्थान पर नयी विश्वशक्ति बनने वाले अमरीका ने भी यही नीति अपनायी और घोषित तौर पर भारत के समकक्ष पाकिस्तान को शक्तिसम्पन्न बनाने की नीति अपनायी ।
नेहरू भी इसी नीति को अपनाकर अपने उन स्वामियों को प्रसन्न करते रहे जिनके कारण सत्ता मिली थी,भारत की सैन्यशक्ति को अपने जीते जी बढ़ने नहीं दिया । १९६२ ई⋅ में चीन के आक्रमण ने सिद्ध कर दिया कि नेहरू की नीति गलत थी । और भी ग़म थे जमाने में पाकिस्तान के सिवा,जो नेहरू देखना ही नहीं चाहते थे । १९६४ ई⋅ में चीन आणविक शक्ति बन गया । भारत को आणविक शक्ति बनाने में प्रयासरत होमी भाभा की रहस्यमय हत्या हो गयी । फिर भी १९७१ ई⋅ के युद्ध तक काँग्रेस की सरकारों ने नीति में कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं किया और गुटनिरपेक्षता की नीति के बहाने सैन्य विषयों में भारत को अकेला बनाकर रखा जबकि पाकिस्तान किसी न किसी प्रकार से अमेरिका से जुड़ा रहा ।
१९७१ ई⋅ की परिस्थिति ने इन्दिरा गाँधी को सोवियत सङ्घ से सैन्य सन्धि करने के लिए विवश कर दिया । पाकिस्तान को भारत ने तोड़ डाला । इसका परिणाम यह हुआ कि भारत पर सीधा आक्रमण करने की क्षमता पाकिस्तान में नहीं रही । तब अमरीका ने नीति बदली और कम्युनिष्ट चीन से मैत्री की,इन्दिरा गाँधी को “कुतिया” कहा । हालैण्ड के द्वारा पाकिस्तान को आणविक शक्ति बनाया गया जिसके पश्चात पाकिस्तान का साहस बढ़ा और भारत के विरुद्ध आतङ्कवाद को पाकिस्तान ने अपनी प्रमुख नीति बनायी ।
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात डॉलर के नकली विनिमय दर द्वारा “प्रथम विश्व” द्वारा “तृतीय विश्व” की जो लूट होती थी उसमें सबसे ऊपर भारत का स्थान था,जिस कारण भारत को उलझाये रखने के लिए पाकिस्तान को पोसना “प्रथम विश्व” के लिए अनिवार्य था । लूट के शिकार देशों में से भारत के सिवा ऐसा कोई देश नहीं था जो लूट का प्रतिकार करने की क्षमता रखे । अतः पाकिस्तान को पोसना “प्रथम विश्व” की समृद्धि के लिए अनिवार्य रहा है,वरना ऐसे बेहूदे और नकली देश को “प्रथम विश्व” क्यों पोसता?हिन्दुत्व के विरुद्ध अब्रह्मी मज़हबों की घृणा भी उक्त लूट की नीति में जुड़ गयी ।
भारत की छद्म−सेक्यूलर सरकारों ने “प्रथम विश्व” की इस घातक नीति का कोई प्रतिकार नहीं किया । वाजपेयी जी अपवाद थे जिन्होंने थर्मोन्यूक्लीयर बम फोड़कर दिखा दिया कि भारत को नष्ट करना अब सदा के लिए असम्भव हो गया है । उर्जा और सैन्य क्षेत्रों में भारत को शक्तिसम्पन्न बनाने के उपायों पर भी वाजपेयी जी ने कार्यक्रमों को गति दी,किन्तु दस वर्षों के सोनिया राज ने कार्यक्रमों पर कुठाराघात किया ।
२०१४ ई⋅ के पश्चात परिस्थित बदली,भारत शक्तिसम्पन्न बनने के रास्ते पर तेजी से चलने नगा सैन्यशक्ति का आधार आर्थिक शक्ति है,आर्थिक विकास के क्षेत्र में अब सभी प्रमुख देशों में अब भारत चीन को भी पछाड़ने लगा है जिसे “प्रथम विश्व” ने अपना मैन्युफक्क्चरिंग वर्कशॉप बना रखा था । चीन को आगे बढ़ाकर भारत और सोवियत सङ्घ दोनों को पछाड़ना “प्रथम विश्व” की नीति थी,सोवियत सङ्घ के विघटन के उपरान्त “प्रथम विश्व” को नीति बदलनी चाहिए थी जो नहीं बदली गयी । परिणामस्वरूप चीन पूरे विश्व के लिए खतरा बन चुका है और अमरीका के वर्चस्व पर भी प्रश्नचिह्न लगा रहा है । किन्तु ट्रम्प से पहले कोई अमरीकी राष्ट्रपति यह देखना ही नहीं चाहता था ।ट्रम्प के कारण अब संसार बदलने जा रहा है ।
मुख्य समस्या है चीन । भारत की जो लूट “प्रथम विश्व” कर रहा था वह अब चीन करना चाहता है । सोने की चिड़िया को “प्रथम विश्व” लूटे अथवा चीन इसी बात का झगड़ा है । इस झगड़े में किसका पलड़ा भारी होगा यह उनलोगों का विषय है,भारत के लिए महत्वपूर्ण यह है कि भारत में सशक्त राष्ट्रवादी सरकार रहे जो भारत के हित में नीतियाँ बनाये ।भारत के प्रति पाकिस्तान कोई महत्वपूर्ण निर्णय ले यह बिना अपने मालिकों से पूछे बिना वह कर ही नहीं सकता । उसका मालिक है अन्तर्राष्ट्रीय डीप स्टेट,अर्थात् अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय साम्राज्यवाद ।
औद्योगिक साम्राज्यवाद की सत्ता १८३३ ई⋅ से १९१६ ई⋅ तक थी,१८९५−१९१६ का कालखण्ड इस परिवर्तन का युग था । १८३३ ई⋅ से पहले पश्चिम में व्यापारिक साम्राज्यवाद की सत्ता थी,जैसे कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी का वर्चस्व इंग्लैण्ड पर था । १९१६ ई⋅ से १९७१ ई⋅ तक स्वर्ण पर आधारित मौद्रिक व्यवस्था के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय साम्राज्यवाद चलता रहा,सोवियत सङ्घ से प्रतिस्पर्धा के कारण प्रथम विश्व को अधिक संसाधनों की आवश्यकता पड़ी जिस कारण स्वर्ण को त्यागकर डॉलर पर आधारित नकली विनिमय मूल्यों की व्यवस्था बनायी गयी ताकि तृतीय विश्व को अधिक लूटा जा सके । चीन के सस्ते श्रम से लाभा उठाने के लिए उसे वैश्विक पूँजी का औद्योगिक संस्थान बनाया गया । चीन को भी इसमें लाभ दिखा । भारत ऐसा नहीं कर सका क्योंकि हिन्दुत्व के प्रति प्रश्चिम में घृणा रही है जबकि चीन की अधिकांश जनता को धर्म से कोई सरोकार नहीं।
इस नयी नीति का लक्ष्य था पाकिस्तान को अणुशक्ति देकर उसके द्वारा भारत को आतङ्कवाद द्वारा उलझाये रखना,ताकि नयी अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था,ब्रिक्स आदि को भारत समर्थन देने की क्षमता ही खो दे । समस्या यह है कि पिछले ११ वर्षों से प्रथम विश्व की मनपसन्द सरकार भारत में बन ही नहीं रही,और इस आग में घी अब ट्रम्प डाल रहे हैं — डीप स्टेट को ही डीप घाव दे रहे हैं और चीन का भी उपचार चाहते हैं ।
भारत का प्रयास है कि इस विवाद में अपनी रोटी सेंकी जाये।इसी सन्दर्भ में डीप स्टेट के गुप्त निर्देश पर पहलगाम नरसंहार कराया गया है । उक्राइना युद्ध को राकने के ट्रम्प के प्रयासों के कारण डीप स्टेट अब शस्त्र−व्यापार के नये ग्राहक ढूँढ रहा है,इसके लिए भी भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव आवश्यक है ।
उक्राइना युद्ध में ट्रम्प द्वारा शान्तिप्रयास के कारण अन्तर्राष्ट्रीय डीप स्टेट का युद्धउद्योग नये युद्ध भड़का कर शस्त्र बेचने की ताक में है । पाकिस्तान की पूरी सेना ही उसकी चाकर है,भारतीय सेना में भी जनरल विजय कुमार सिंह के विरोधी अधिकारियों का बोलबाला है जो स्वदेशी शस्त्रों की बजाय आयात पर निर्भर रहना चाहते हैं ताकि साकेत विहार में बंगले बनवा सकें ।
मोदी सरकार ने बहुत ही धैर्य का परिचय दिया है । पाकिस्तान पर सीधा आक्रमण करना मूर्खतापूर्ण है जिसका कारण इस लेख के आरम्भिक वाक्य में है । सिन्धुजल−सन्धि पर मोदी सरकार का वक्तव्य पहलगाम पर भारत की प्रतिक्रिया के प्रथम चरण का सर्वाधिक प्रभावी अङ्ग है ।सिन्धुजल−सन्धि ६५ वर्षों तक दो शत्रु देशों के बीच अविवादित और शान्तिपूर्ण तरीके से चलने वाली विश्व की सबसे अच्छी सन्धि रही है । इस बीच दो युद्ध हो चुके किन्तु सन्धि नहीं टूटी,क्योंकि यह सन्धि थी तो भारत के हित में परन्तु इसका उपयोग अभीतक पाकिस्तान के हित में ही किया गया है।
इस सन्धि के अन्तर्गत पूर्वी पंजाब की तीन नदियों के जल का मनचाहा उपयोग करने का पूरा अधिकार भारत का है,जबकि इन नदियों का अधिकांश जल अभीतक पाकिस्तान को ही भारत देता रहा है और दिल्ली से राजस्थान तक के खेत और लोग प्यासे रह जाते हैं । मोदी सरकार को चाहिए कि इन पूर्वी नदियों का पूरा जल भारत के लिए किया जाय,जो सिन्धुजल−सन्धि के अनुरूप ही है ।
आपलोग ऐसा सन्देश अपने शब्दों में सरकार को भेजें । रही शेष तीन नदियों का विषय — सिन्धु,झेलम,चिनाब, उनका जल भारत स्थायी तौर पर रोक ही नहीं सकता क्योंकि उनका प्राकृतिक पथ ही पाकिस्तान की ओर है । अतः उन पर पाकिस्तान को सिन्धु जल−सन्धि के अन्तर्गत अधिक अधिकार दिये गये और जलविद्युत,जलभण्डार,सिंचाई आदि के सीमित अधिकार भारत को मिले । किन्तु कुल छह नदियों में से अधिक जल सिन्धु,झेलम,चिनाब में ही है और पाकिस्तान को भी अधिक लाभ उनसे ही है ।
अतः पहलगाम प्रकरण के कारण सिन्धुजल−सन्धि को ताक पर रखकर भारत चाहे तो जब पाकिस्तान को जल चाहिए तब जलभण्डार बढ़ाकर पाकिस्तान को जल के लिए तरसा सकता है और जब पाकिस्तान को जल नहीं चाहिए तब जल छोड़ सकता है । यह तात्कालिक दण्ड है । इसका वास्तविक लाभ केवल दीर्घकालिक जलविद्युत परियोजनायें बनाकर ही हो सकता है,किन्तु उसके लिए बहुत समय और संसाधन चाहिए और हड़बड़ी में वैसा निर्णय लेना भी नहीं चाहिए।
सबसे अच्छा होता यदि सतलुज का सारा जल नहरों द्वारा पंजाब,हरियाणा,राजस्थान,दिल्ली और पश्चिमी यूपी को दिया जाय । सिन्धुजल−सन्धि के अन्तर्गत भारत को इसका अधिकार भी है । मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि जलनीति में परिवर्तन तो केवल आरम्भ है,आगे जो होगा उसकी पाकिस्तान कल्पना भी नहीं कर सकता ।
मिर्जा ग़ालिब ने कुछ कहा था ।
जब वो न था तो हिन्द था, वो न होता तो हिन्द होता ।
डुबोया उसको होने ने, वो न होता तो क्या होता?
सिन्धु से ही सिन्ध और हिन्द शब्द बने हैं । सिन्धु से हिन्द का सम्बन्ध है,पाकिस्तान का सिन्धु से कोई सम्बन्ध नहीं ।कालचक्र उलट चुका है । पाकिस्तान जब था ही नहीं वह काल आयेगा । हम सत सनातन इस जग से जब अपना हिस्सा माँगेगे,इक बंग नहीं इक पाक नहीं हम पूरी दुनिया माँगेगे ॥
–श्री विनय झा
