कैलास मानसरोवर की पहाड़ी शृंखला का विस्तार पंगोंग झील से कुछ आगे से प्रारम्भ हो जाता है, और यहाँ व गढ़वाल के लिपुलेख से ही दो निकटतम रास्ते हैं जहां से कैलास की यात्रा की जाती रही है। तीसरा सिक्किम से होकर जाता है जिसे मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद खुलवाया था।
भारतीय सेना ने अगस्त २९-३० की रात्रि को कैलास शृंखला की ऐसी कई चोटियों पर क़ब्ज़ा कर लिया जिन पर १९६२ में हमने स्वामित्व खो दिया था। हालाँकि ये चोटियाँ LAC के ऐसे buffer zone में हैं जिस पर भारत व चीन दोनों का क़ब्ज़ा नहीं था पर अब इन पहाड़ियों पर क़ब्ज़ा होने से भारतीय सेना कम से कम ४५ किलोमीटर दूर तक के क्षेत्र में dominating position में आ गई है जो चीन के हिस्से में है। इसका अत्यंत सामरिक महत्व है हालाँकि कैलास मानसरोवर यहाँ से लगभग ४०० किलोमीटर दूर है।
याद रहे कि १९६२ में देशद्रोही नेहरू ने चीन को पूरा तिब्बत हड़पने दिया था जो आज के चीन की कुल भूमि का लगभग ३०% हिस्सा है। इस प्रकार कैलास मानसरोवर जिसपर सदा से भारत का प्रभुत्व रहा है वो भारत के हाथ से निकल गया था। हिंदुओं के लिए कैलास से अधिक पवित्र कोई तीर्थ नहीं है क्योंकि ये माना जाता है कि कैलास पर ही भगवान भोलेनाथ शिवजी विराजते हैं। कैलास में ही सिद्ध योगियों का निवासस्थान ज्ञानगंज अथवा सिद्धाश्रम भी है जिसे तिब्बती सम्भाला कहते हैं।
माना जाता है कि ये एक अत्यंत रहस्यमयी त्रिकोण का हिस्सा है जिसका एक कोण बर्म्यूडा ट्राइऐंगल (जल अथवा पाताल और दूसरा रूस में स्थित एक जंगल (पृथ्वी) तथा तीसरा कैलास पहाड़ के ऊपर आकाश में स्थित है। मृत्यु पर विजय पाने के उपरांत सिद्ध महापुरूष यहाँ हजारों वर्ष तक साधनारत रहते हैं जिनमें प्रमुख हैं महाअवतार बाबाजी और देवराहा बाबा। समय समय पर वे पृथ्वी ख़ासकर भारत व हिन्दुओं से सम्बंधित सृष्टि में होनेवाली कुछ बड़ी गतिविधियों को सूक्ष्म की अदृश्य सत्ता द्वारा सम्पादित भी करते करवाते हैं।
महर्षि औरबिंद, ब्रह्मऋषि देवराहा बाबा तथा कई संतों की भविष्यवाणी है कि कैलास मानसरोवर पुनः भारत का हिस्सा बनेगा तथा भारत जल्द ही पुनःअखंड होगा व विश्व गुरु बनकर उभरेगा।
उसका समय अब निकट आ रहा है।
– नीरज सक्सेना