अमरीका से अच्छे सम्बन्ध बनाये रखना भारत के लिये आवश्यक है किन्तु यह नहीं भूलना चाहिये कि आज भी पाकिस्तान के बारे में अमरीका की नीति भारत के विरुद्ध ही है । अमरीकी सहायता के कारण ही पाकिस्तान भारत को परेशान करने का साहस कर सकता है । अमरीका का कहना है कि जबतक भारत आणविक शस्त्र का पूर्ण त्याग करके NPT को स्वीकार न ले तबतक अमरीका कोई भी महत्वपूर्ण शस्त्र भारत को नहीं दे सकता । परन्तु यही नियम पाकिस्तान पर अमरीका लागू नहीं करता ।
आज भी भारत का सबसे बड़ा सामरिक सहायक रूस ही है । अमरीका से घूस खाने वाले कई लोग भारत में प्रचार करते हैं कि रूस अपने हथियार बेचकर लाभ कमाने के लिये भारत को बाजार बनाना चाहता है । सच्चाई यह है कि जब मिग विमान संसार के सबसे अच्छे युद्धयानों में गिने जाते थे तब भी सोवियत संघ ने उसका कारखाना ही भारत को दे दिया था । ब्रह्मोस मिसाइल का इञ्जन रूस ने ही दिया,वैसा इञ्जन भारत नहीं बना सकता । भारत की सहायता करने में रूस को लाभ यह है कि भारत की शक्ति बढ़ाकर वह अमरीका का वर्चस्व घटाना चाहता है । रूस को लाभ हो वा न हो,रूस से अच्छे सम्बन्ध रखने में भारत को तो लाभ है ही ।
फिर भी खेद की बात है कि यूक्रेन सङ्कट पर अमरीकी सरकार के झूठे दुष्प्रचार को भारतीय मीडिया दुहराती रहती है । भारतीय मीडिया को प्रभावित करने के लिये अमरीकी गुप्तचर संस्था CIA सदैव सक्रिय रहती है ।
कुछ सप्ताह पहले भारत में प्रचार किया गया था कि उत्तर कोरिया एक पागल देश है जहाँ हँसने की मनाही है!उस समाचार का मूल स्रोत मैंने ढूँढा तो अमरीका की संरकारी संस्था मिली जिसके बारे में विकिपेडिया ने बताया कि चीन और उत्तर कोरिया के बारे में अमरीकी सरकार के पक्ष में प्रचार करने के लिये उस संस्था की स्थापना की गयी थी!ऐसी संस्था क्यों बतायेगी कि उत्तर कोरिया ने अपने समूचे इतिहास में कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया और अमरीका के नेतृत्व में २८ देशों ने उत्तर कोरिया पर १९५०−१ में आक्रमण किया जिसमें नेहरू ने अमरीका की सहायता में भारतीय सैनिक भी भेजे थे!चीन से सहायता मिलने पर उत्तर कोरिया की जान बची ।
उत्तर कोरिया और वियतनाम पर आक्रमण करने में अमरीका का तर्क यह था कि किसी भी देश में कम्युनिष्ट सरकार नहीं बनने दिया जायगा । संसार में किस देश में किस पार्टी की सरकार बननी चाहिये यह तय करने का अधिकार गॉड ने अमरीका को दिया है?
सोवियत संघ की स्थापना होने पर अमरीका सहित १६ विकसित देशों ने उसपर आक्रमण किया जिसकी चर्चा इतिहास की पुस्तकों में नहीं की जाती और उसे केवल गृहयुद्ध बताया जाता है । उस युद्ध में सोवियत संघ के दो तिहाई भूभाग पर अमरीका,जापान और पश्चिमी यूरोप के आक्रमणकारी देशों ने आधिपत्य जमा लिया था और यह तय था कि बचे हुए क्षेत्र भी शीघ्र ही लेनिन के हाथ से निकल जायेंगे । परन्तु मीडिया द्वारा सच्चाई को छुपाने के बावजूद पश्चिमी देशों में खबर फैल गयी कि सोवियत संघ पर आक्रमण हुआ है तो अमरीका सहित उन देशों के श्रमिक वर्ग ने व्यापक हड़ताल कर दी और युद्धसामग्री की आपूर्ति बन्द करा दी । तब आक्रमणकारी सेनाओं को लौटना पड़ा ।
उत्तर कोरिया के साथ भी सात दशकों से सौतेला व्यवहार हो रहा है । अमरीका उसकी घेराबन्दी हटा दे और उसे विश्व समुदाय में मिलने−जुलने दे तो जर्मनी की तरह दोनों कोरिया शीघ्र ही मिल जायेंगे और कम्युनिष्टों का शासन स्वतः समाप्त हो जायगा । परन्तु अमरीका में हथियार के सौदागरों का राज है । उनकी रुचि तनाव बनाये रखने में है,शान्ति में नहीं ।
रूस में तीन दशक पहले ही कम्युनिष्टों का शासन समाप्त हो गया । कम्युनिष्ट पार्टी को प्रतिबन्धित भी कर दिया गया । फिर भी रूस के प्रति अमरीका का व्यवहार सौतेला ही रहा । जब सोवियत संघ ने वार्सा सन्धि को नष्ट किया तभी नैटो को भी बन्द कर देना चाहिये था । विश्व में शान्ति छा जाती । किन्तु अमरीका ने उलटा किया,रूस की घेराबन्दी पहले से भी अधिक बढ़ा दी और सोवियत संघ के उपग्रह देशों को नैटो का सदस्य बनाना आरम्भ कर दिया । रूस को नैटो का सदस्य बनाना सम्भव नहीं है क्योंकि तब नैटो में अमरीका का वर्चस्व समाप्त हो जायगा । फ्रांस पहले से ही अमरीका के वर्चस्व का विरोधी रहा है और जर्मनी भी उर्जा के लिये रूस पर निर्भर है । अतः रूस यदि नैटो का सदस्य बन जाय तो फ्रांस और जर्मनी की सहायता से रूस नैटो पर ही आधिपत्य जमा लेगा ऐसा भय अमरीका को है । यूरोपियन यूनियन में फ्रांस और जर्मनी के सामने ब्रिटेन की दादागिरी नहीं चलती तो वह यूरोपियन यूनियन ही छोड़ देता है ।
ब्रिटेन के जितने भी वंशज देश हैं,जैसे कि अमरीका कनाडा और ऑस्ट्रेलिया,वे ही रूस के भी शत्रु हैं और भारत के भी । भारत में हिजाब पर विवाद हो तो इन देशों द्वारा तत्क्षण मिथ्या दुष्प्रचार आरम्भ हो जाता है । ये सारे देश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के नौकर हैं — वह कम्पनी तो १८५८ ई⋅ में ही बन्द कर दी गयी किन्तु उसके मालिक आज भी उक्त देशों के मालिक हैं । पेट्रोलियम उत्पादक अरब देशों पर भी उनका ही राज है । ईस्ट इण्डिया कम्पनी के नौकरों द्वारा भारतीय मीडिया में भी यूक्रेन के मसले पर झूठा प्रचार किया जा रहा है ।
यूक्रेन (उक्राइना) के विवाद की जड़ में है अमरीका,ब्रिटेन आदि की यह ईच्छा कि रूस की शक्ति सदा के लिये नष्ट कर दी जाय । क्रीमिया से रूस को भगाने के लिये ब्रिटेन और फ्रांस ने तुर्क साम्राज्य की सहायता में रूस के विरुद्ध १८५३−५६ ई⋅ में युद्ध लड़ा । तीन विश्व शक्तियों के विरुद्ध रूस अकेला पड़ गया किन्तु ब्रिटेन और फ्रांस में भी तुर्कों का समर्थन करने के कारण जनाक्रोश भड़कने लगा जिस कारण सन्धि हुई । रूस को क्षेत्र की क्षति नहीं हुई किन्तु तुर्की की जिद पर रूस को मानना पड़ा कि बाल्टिक सागर में रूस नौसेना नहीं रखेगा ।
आज भी तुर्की नैटो का सदस्य है और रूस को नैटो शत्रु मानता है । क्रीमिया और पूर्वी यूक्रेन को लेकर आजकल युद्ध का खतरा है किन्तु भारत एवं पश्चिम की मीडिया सच्चाई को छुपाती है । सच्चाई यह है कि यूक्रेन और रूस मूलतः एक ही राष्ट्र थे जिसका नाम “रूस” था । यूक्रेन के लिखित इतिहास का आरम्भ ही “किएफ रूस” नाम के राज्य से हुआ । किएफ (Kiev) यूक्रेन की राजधानी रही है और “रूस” उसका मूल नाम था । किन्तु तुर्क साम्राज्यवाद के उत्थानकाल में रूस अशक्त था जिस कारण वर्तमान यूक्रेन प्रदेश पर रूस का आधिपत्य नहीं रहा,कभी तुर्कों का आधिपत्य रहा तो कभी पोलैण्ड वा ऑस्ट्रिया−हंगरी का ।
इसी दौरान रूस और यूक्रेन में सांस्कृतिक एवं भाषाई विभेद हुआ । १९१७ ई⋅ में सोवियत क्रान्ति के पश्चात जब सोलह पश्चिमी देशों ने सोवियत संघ पर आक्रमण किया तो उन आक्रमणकारी देशों की सहायता से जारशाही समर्थक सेनाओं ने सोवियत संघ के अनेक प्रदेशों में स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी,जिनमें से यूक्रेन भी था । किन्तु शीघ्र ही आक्रमणकारी सेनायें चली गयी और सोवियत संघ में यूक्रेन एक स्वायत्त गणराज्य के तौर पर सम्मिलित हुआ ।
पूर्वी यूक्रेन और क्रीमिया में कभी भी यूक्रेनी लोगों का बहुमत नहीं रहा । क्रीमिया एवं पूर्वी यूक्रेन में सैकड़ों वर्षों तक तातार तुर्कों का शासन था । भारोपीय आर्य परिवार की स्थानीय रूसी जातियों के पुरुषों का नरसंहार करके और उनकी स्त्रियों का अपहरण करके मध्य एशिया से आने वाली आक्रमणकारी तुर्क सेना पूर्वी यूक्रेन और क्रीमिया में बस गयी । उनको ही “तातार” कहा गया । हिटलर ने जब क्रीमिया पर आधिपत्य जमाया तो तातारों एवं तुर्क साम्राज्य के अन्य समर्थकों ने हिटलर की सहायता की जिस कारण बाद में स्तालिन ने अधिकांश तातारों को वहाँ से खदेड़कर उनके मूल प्रदेश मध्य एशिया भगा दिया । उन मुसलमान तातारों की सहानुभूति में ब्रिटेन और अमरीका ने स्तालिन का विरोध किया था । “क्रीमिया” का नाम ही तातार तुर्क “कीरिम” पर पड़ा जो “करीम खान” का अपभ्रंश था । क्रीमिया एवं पूर्वी यूक्रेन में यूक्रेनी लोग सदैव अल्पमत में ही थे,सबसे अधिक रूसी थे और हैं,एवं रूसियों के पश्चात क्रीमिया में दूसरी बड़ा जनसंख्या तातारों की है । क्रीमिया कभी भी यूक्रेन का हिस्सा भी नहीं था । परन्तु स्तालिन के पश्चात जब ख्रुश्चेव सोवियत संघ के प्रमुख बने तो सोवियत सत्ता−संघर्ष में अपने प्रदेश यूक्रेन का समर्थन पाने के लिये यूक्रेन को घूस में क्रीमिया दे दिया जो सोवियत कानून का भी उल्लङ्घन था ।
क्रीमिया में यूक्रेनियों की संख्या केवल ६% है,अतः उसे यूक्रेन को देना गलत था । हाल में जब यूक्रेन में रूस विरोधी सरकार बनी और उस सरकार ने यूक्रेन में सदा से बसे रूसियों का नरसंहार आरम्भ किया तो पुतिन ने क्रीमिया पर आधिपत्य जमा लिया । इसे रूस द्वारा यूक्रेन के प्रान्त क्रीमिया पर आक्रमण और कब्जा कहा जा रहा है,जबकि क्रीमिया केवल कुछ काल तक यूक्रेन का हिस्सा था और वह भी गलत तरीके से । पूर्वी यूक्रेन के जिन दो प्रान्तों को आज रूस ने मान्यता दी है वे भी रूसी बहुमत वाले क्षेत्र हैं । झगड़े का मूल कारण यह है कि अमरीका की शह पर वहाँ रूसियों का नरसंहार यूक्रेन की सेना कर रही है । लाखों रूसी पूर्वी यूक्रेन से भागकर रूस जा चुके हैं । पाश्चात्य और भारतीय मीडिया इस नरसंहार की चर्चा नहीं करती । किन्तु पुतिन यदि यूक्रेन में रूसियों के नरसंहार पर चुप रहेंगे तो रूस की जनता पुतिन की विरोधी बन जायगी ।
पेट्रो−डॉलर की सहायता से चुनाव में धाँधली करके जो बाइडेन अमरीका के राष्ट्रपति बने हैं । पेट्रो−डॉलर वालों को प्रसन्न करने के लिये तालिबान को अफगानिस्तान सौंपा । अब पेट्रो−डॉलर वालों के चहेते तुर्की को प्रसन्न करने के लिये रूस के विरुद्ध बाइडेन युद्धोन्माद भड़का रहे हैं । अमरीका में कोरोना के कारण जो मन्दी है उससे निबटने के लिये युद्ध भड़काकर हथियार बेचने से अमरीका में मन्दी समाप्त हो सकेगी ऐसी आशा युद्धोन्माद का दूसरा कारण है ।
पेट्रो−डॉलर के शान्तिदूत शेखों एवं हथियार के यहूदी सौदागरों का विश्व में वर्चस्व है । यह लॉबी भारत की भी विरोधी है और पाकिस्तान को पैदा करके भारत के विरुद्ध सशक्त बनाने के पीछे यही लॉबी है । अतः रूस के विरुद्ध मिथ्या विषवमन करके भारतीय मीडिया भारत के विरुद्ध राष्ट्रद्रोह कर रही है । रूस में कम्यूनिज्म नहीं है,अतः रूस को उत्तर कोरिया की तरह पागल देश घोषित करना बेवकूफी है । पूर्वी यूक्रेन एवं क्रीमिया में कीरिम खान के तुर्क राज्य को पुनः खड़ा करने में भारत को क्या लाभ है?उस क्षेत्र में बड़ी संख्या में रूसी मारे जा चुके हैं,रूस भागने वाले शरणार्थी रूसियों को रूस की सीमा तक खदेड़कर यूक्रेन की सेना गोली मार रही है ऐसे अनेक समाचार आ चुके हैं । यूक्रेन नैटो का सदस्य नहीं है किन्तु उसके सारे शस्त्र नैटो ने ही दिये हैं । संसार का खलीफा बनने का सपना देखने वाले तुर्की का इस पूरे झमेले में बहुत बड़ा हाथ है । भारत में घुसपैठ करने वाले जिस F-16 को भारत ने गिराया था उसके समूचे ७५ युद्धविमान वाले पाकिस्तानी बेड़े का रख−रखाव तुर्की में ही होता है । तुर्की नैटो का सदस्य है,तुर्की के माध्यम से अमरीका सारी खुराफात कर रहा है । बाबर को भी तोपखाना तुर्की से ही मिला था और अहमदशाह अब्दाली को भी । कश्मीर मसले पर तुर्की खुलकर पाकिस्तान का साथ देता है ।
सोवियत युग में यूक्रेन सोवियत संघ का सबसे विकसित औद्योगिक गणराज्य था । आज यूक्रेन यूरोप का सबसे निर्धन देश है — भ्रष्ट सरकार के कारण । यूक्रेनी और रूसी एक ही नस्ल के हैं किन्तु हथियारों के सौदागर उनमें नकली नस्ली युद्ध करा रहे हैं । मीडिया झूठ कहती है कि रूस के कारण युद्ध का खतरा है । युद्ध पहले से चल रहा है और एकतरफा यूक्रेन द्वारा अपने ही रूसी नागरिकों के विरुद्ध हो रहा है जो नरसंहार है । पुतिन यदि उन दो क्षेत्रों को मान्यता न दे तो वहाँ कोई रूसी जीवित नहीं बचेगा । यूक्रेन की सरकार अमरीकी घूस के लोभ में पागल हो गयी है । किन्तु लोभ में भारत के पत्तलकार भी पागल हो गये हैं । मीडिया का कर्तव्य सही समाचार देना है,न कि घूस खाकर मिथ्या प्रचार करना ।
भारतीय मीडिया अमरीकी गुप्तचर संस्था CIA की प्रचार सामग्री को परोसकर भारतीयों को जानबूझकर मूर्ख बना रही है । २०१४ ई⋅ में भाजपा की सरकार लोकतान्त्रिक तरीके से बनी । उसके पश्चात यदि CIA के प्रशिक्षित नकाबपोश कमाण्डो एवं विशाल धनराशि की सहायता से भाजपा−विरोधियों का अवैध कब्जा सारे सरकारी भवनों पर करा दिया जाय और नरेन्द्र मोदी को जान बचाकर किसी सुरक्षित देश में भागना पड़े,एवं उसके पश्चात आठ वर्षों तक भाजपा को प्रतिबन्धित करके उसे वोट देने वालों को चुन−चुनकर ठिकाना लगाया जाय,उनके छोटे बच्चों को भी यह कहकर मार डाला जाय कि हिन्दुत्ववादियों की नस्ल ही घटिया होती है जिसे जड़ से उखाड़ना अनिवार्य है — तो कैसा लगेगा?उससे भी अधिक मजा तब आयगा जब ऐसे कुकर्म करने वालों को नैटो द्वारा भोले−भाले लोकतन्त्रवादी कहा जाय!
पिछले आठ वर्षों से यूक्रेन में यही हो रहा है । उसे नैटो का सदस्य बनाकर रूस की राजधानी एवं अन्य महत्वपूर्ण ठिकानों पर अमरीकी आणविक मिसाइल तैनात करने के लिये यूक्रेन की नस्लवादी अवैध सरकार क्यों परेशान है?झेलेन्स्की अवैध तरीके से भी यदि राष्ट्रपति बन गये हैं तो शान्तिपूर्वक अपने देश के विकास पर ध्यान न देकर रूस को नष्ट करने के लिये CIA और नैटो को क्यों बुलाना चाहते हैं?क्योंकि उनकी पार्टी को अवैध तरीके से CIA ने ही सत्ता सौंपी है । पुतिन का अपराध यही है कि आठ वर्षों की देरी कर दी । २०१४ ई⋅ में जब निर्वाचित सरकार को गलत तरीके से CIA ने हटवाया था तभी पुतिन को कार्यवाई करनी चाहिये थी । किन्तु सोवियत संघ का विघटन ही रूस ने किया था — यह सोचकर कि युद्ध से दूर रहने और यूक्रेन जैसे नाजायज एवं नालायक देशों का भार उठाने से बेहतर है कि रूस अकेला रहे ।
यूक्रेन की सीमा ही गलत है । उसका पश्चिमी भाग यूक्रेनी भाषियों की बहुमत वाला है और पूर्वी भाग एवं क्रीमिया रूसियों की बहुलता वाला है । सोवियत संघ के गणराज्यों का गठन ही भाषा के आधार पर हुआ था । यूक्रेन को रूस−विरोधी देशों से दूर रहने के लिये घूस में रूसी क्षेत्र दिये गये थे । आज जिस दोनवास क्षेत्र को लेकर नैटो रूस पर कुपित है उसी दोन की द्रोणी पर मिखाइल शोलोखोव ने महान उपन्यास “धीरे बहे दोन रे” १९२६−४० के दौरान लिखा था — जिसपर १९६५ ई⋅ में नोबल पुरस्कार दिया गया था । किशोरावस्था में मेरी समझ में नहीं आता था कि यूरोप की अनेक महान नदियों के नाम “दन−” से क्यों आरम्भ होते हैं,जैसे कि दैन्यूब,(द−)नीस्तर,(द−)नीपर,दोन आदि । बाद में भाषाविज्ञान एवं इतिहास पर अनुसन्धान करने पर पता चला कि आर्य समुदायों पर सेमेटिक असुरों का आधिपत्य होने पर अनार्य लिपि में आर्य भाषाओं को लिखने के कारण अनेक त्रुटियाँ हुईं,जैसे कि नदी वा नद को विपरीत लिपि में दन । असुर भाषाविद मेरी बात नहीं मानेंगे,उनको तो सेमेटिक उमर भी होमर लगता है ।
पश्चिमी स्रोतों को उद्धृत करते हुए पश्चिमी लेखकों ने ही विकिपेडिया के निम्न आलेख लिखे हैं जिनमें वर्णन है कि किस प्रकार अमरीकी पैसे से अलोकतान्त्रिक तरीके से दो बार यूक्रेन में सरकार बनवाई गयी और उस नात्सी सरकार ने रूसी भाषा बोलने वालों पर यूक्रेनी भाषा बलपूर्वक थोपा तो विद्रोह भड़का ।
https://en.wikipedia.org/wiki/Ukraine#Orange_Revolution
https://en.wikipedia.org/wiki/Ukraine#Euromaidan_and_the_Revolution_of_Dignity
जबतक रूसी भाषियों की समर्थक पार्टी को चुनाव में भाग लेने की छूट थी तब यानुकोविच राष्ट्रपति कैसे बने और किन जिलों में उनको बहुमत मिला इसके मानचित्र विकिपेडिया में हैं —
http:// https://en.wikipedia.org/wiki/Viktor_Yanukovych
२००१ ई⋅ की जनगणना में यूक्रेनी भाषा जिन क्षेत्रों में अल्पमत में थी उन क्षेत्रों को निम्न मानचित्र में देखें,इन्हीं क्षेत्रों को लेकर वर्तमान विवाद है=
https://en.wikipedia.org/wiki/Ukrainian_language#/media/File:Ukraine_census_2001_Ukrainian.svg
रूसियों का बलपूर्वक यूक्रेनीकरण किस गति से किया गया इसपर कुछ आँकड़े इस लेख में हैं =
http:// https://en.wikipedia.org/wiki/Ukrainization#Educational_systemz
उक्त आलेख के आरम्भ में ही सारिणी है जो दर्शा रहा है कि सेकण्डरी स्कूलों में शिक्षण का माध्यम १९९१ ई⋅ में ५४% छात्रों के लिये रूसी था जो २००४ ई⋅ में घटकर २३⋅९% पर आ गया!उसके पश्चात रूस−विरोधी सरकारें आयीं तो रूसी भाषा पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाया गया । क्रीमिया में जब रूसी भाषा पर प्रतिबन्ध लगाया गया तो उसपर रूस की सेना ने आधिपत्य जमा लिया क्योंकि वहाँ दस प्रतिशत से कम लोग यूक्रेनी बोलते थे । सबसें चौंकाने वाले आँकड़े जनसंख्या के हैं । सोवियत संघ में जबतक यूक्रेन था तबतक उसकी जनसंख्या तेजी से बढ़ती रही और स्वतन्त्र देश बनते ही अचानक तेजी से घटने लगी=
https://en.wikipedia.org/wiki/Demographics_of_Ukraine#After_WWII
१९९३ ई⋅ में ५२२ लाख के उच्चतम बिन्दु पर पँहुचने के पश्चात यूक्रेन की जनसंख्या लगातार घटते हुए अब ४१२ लाख से भी नीचे आ गयी है । इसका कारण है उत्पीड़न से बचने के लिये रूसी बोलने वालों का यूक्रेन से पलायन । ये रूसी वहाँ के स्थानीय थे,रूस से वहाँ गये नहीं थे । इन रूसियों का मानवाधिकार भारतीय मीडिया को नहीं दिखता किन्तु पुतिन को अपने देश के लोगों की भावना का आदर करना है,वरना सत्ता से च्युत हो जायेंगे । दोनवास में आठ वर्षों से रूसी भाषियों का सुनियोजित नरसंहार चल रहा है । बीस सहस्र विदेशी नव−नात्सियों की सेना और लाखों यूक्रेनी नव−नात्सियों की अवैध सेनायें घूम−घूमकर रूसियों को मार रही है ।
उपरोक्त समस्त तथ्य अमरीका और ब्रिटेन के लेखकों ने ही विकिपेडिया पर डाले हैं । भारतीय पत्तलकारों को CIA से पैसा मिलता है?रूस भारत का मित्र है,यूक्रेन पाकिस्तान का प्रमुख सैन्य सहायक है,फिर भी हमारी मीडिया रूस को खलनायक क्यों बता रही है?रूस यदि यूक्रेन को गुलाम बनाना चाहता तो उसे सोवियत संघ से निकालता ही क्यों?रूस की गलती यही हुई कि यूक्रेन को स्वतन्त्रता देते समय उसके रूसी क्षेत्रों को यूक्रेन में ही रहने दिया ।
चीन ने एक सही बात कही है — रूस के प्रति नैटो की नीति पिछली शताब्दियों की याद दिलाते हैं जब अफ्रीका के संसाधनों को यूरोप के उपनिवेशवादी देश लूटते थे । रूस की घेराबन्दी करके नैटो क्या पाना चाहता है?रूस के प्राकृतिक संसाधन । विवाद यूक्रेन को लेकर नहीं है,रूस की स्वतन्त्रता को लेकर है । सोवियत संघ के विघटन के समय नैटो ने वचन दिया था कि नैटो का विस्तार नहीं किया जायगा,किन्तु नैटो ने धोखा देकर पूर्वी यूरोप के १४ देशों को सदस्यता दी और वहाँ अमरीकी आणविक मिसाइल रूस के विरुद्ध तैनात किया । जब यूक्रेन की बारी आयी तो रूस बौखला गया क्योंकि यूक्रेन रूस के हृदय में घुसा हुआ है ।
यूक्रेन में जिन रूस−विरोधी संगठनों को CIA रूस के विरुद्ध इस्तेमाल कर रहा है वे हिटलर के ही समय से नात्सी विचारधारा को मानते हैं और रूसी को घटिया नस्ल कहते हैं जिसे मिटाना पुण्यकार्य समझते हैं!इन यूक्रेनी नात्सियों ने विश्वयुद्ध में हिटलर की सहायता की थी और यहूदियों की हत्या की थी । आश्चर्य तो इस बात का है कि ऐसे हत्यारों को अमरीका के यहूदी सेठ भी समर्थन दे रहे हैं,क्योंकि उनको रूस के संसाधन लूटने हैं । दोनवास के जिन दो क्षेत्रों को रूस ने मान्यता दी है उनमें प्राइमरी स्रूकूल के बच्चों और महिलाओं पर झेलेन्स्की की नात्सी सेनाओं ने बम दागे — मैंने वे वीडियो RT टीवी पर देखे हैं । पुतिन ने यूक्रेन की वैध सेना से आग्रह किया है कि यूक्रेन का नियन्त्रण वहाँ की सेना सम्भाले और झेलेन्स्की की प्राइवेट नात्सी सेनाओं से हथियार छीने ।
भारत की मीडिया CIA की प्रचार−सामग्री क्यों परोसती है?CIA ने गोमाँसभक्षक दलाईलामा को भारत में बिठाकर चीन को भारत का शत्रु बना दिया,आज भी उनको अमरीका भेज दिया जाय तो चीन से विवाद समाप्त हो जायगा । रूस के विरुद्ध यूक्रेन का समर्थन करना न तो मानवीय है और न ही भारत के हित में । यूक्रेन के भी हित में यही है कि वहाँ सच्चे अर्थ में लोकतान्त्रिक सरकार का गठन हो । किन्तु नैटो का जबतक अस्तित्व रहेगा तबतक विश्व में शान्ति असम्भव है । सोवियत संघ के भंग होते ही नैटो को भंग कर देना उचित था । अमरीका के आमलोग भी युद्ध नहीं चाहते । युद्ध बहुत बुरी चीज है । किन्तु गिद्धों को यह बात कैसे समझायें?
शोलोखोव के दोनवास में आठ वर्षों के पश्चात धीरे−धीरे शान्ति लौट रही है । आजकल मैं ब्रिटेन,फ्रांस,जर्मनी आदि की टीवी भी देखता हूँ । सबसे अधिक कमीनी BBC है । भारत में सबसे कम झूठ दूरदर्शन पर है;किन्तु CIA के झूठ का विरोध करने का साहस उसमें भी नहीं है! पिछले १०५ वर्षों में अधिकांश काल तक रूस को पश्चिम द्वारा प्रतिबन्ध एवं नाकेबन्दी का सामना ही करना पड़ा है । प्रतिबन्ध एवं नाकेबन्दी से अधिक महत्व रूस स्वतन्त्रता को देता है । रूस स्वतन्त्र रहेगा तो भारत का सामरिक हित भी सुरक्षित रहेगा । रूस नष्ट हो जाय तो भारत की सुरक्षा भी खतरे में पड़ जायगी ।
झेलेन्स्की एक ड्रग एडिक्ट मनोरोगी है । रूसी भाषा पर प्रतिबन्ध लगाने वाला व्यक्ति आज पुतिन से शान्तिवार्ता का बयान रूसी भाषा में दे रहा है!आक्रमण से पहले पुतिन ने कई बार वार्ता का सन्देश भेजा तो झेलेन्स्की ने दुत्कार दिया था । बिनु भय प्रीत न होई! २००० ई⋅ के पश्चात कालचक्र ने पलटा खाया है । भयङ्कर उथल−पुथल होंगे । अभी तो आरम्भ ही है । रूस और अमरीका दोनों का पतन होगा । भारत को अपनी चिन्ता करनी चाहिये ।
झेलेन्स्की ने कहा है कि रूस को भारत रोक सकता है!रूस को नैटो नहीं रोक सकता?अब रूस से भारत को लड़ाना है?नैटो ताली बजायेगा?तो झेलेन्स्की रूस के विरुद्ध नैटो का अड्डा क्यों बनाना चाहते थे?पाकिस्तान को सैन्य सामग्री देंगे तो पाकिस्तान से सहायता माँगे ।भारतीय मीडिया कुछ भी बके,मोदी सरकार ने रूस के विरुद्ध सुरक्षा परिषद में मतदान नहीं किया । मोदी सरकार को पता है कि भारत का मित्र कौन है । नैटो से भारत को झगड़ना भी नहीं है । नैटो में दम है तो रूस से लड़ ले,भारत क्यों अपने हाथ जलाये?
ड्रग−लार्ड को किसी सुपरपॉवर का मालिक बना दिया जाय तो संसार की कैसी दशा होगी?दावूद इब्राहिम के मालिक हक्कानी गिरोह को पूरा अफगानिस्तान सौंपने वाले ड्रग−लार्ड के पुत्र “हण्टर बाइडेन” का २०१३ ई⋅ वाला फोटो संलग्न है,उसी वर्ष ड्रग टेस्ट में वे कोकेन के अभ्यस्त पाये गये तो अमरीकी नौसेना ने उनको सीधे बर्खास्त कर दिया ।उस नौकरी के लिये उनको दो छूटें दी गयी थी वरना उनका प्रार्थनापत्र ही अस्वीकृत हो जाता — ४३ वर्ष का होने पर भी उम्र में छूट,और पहले से ही ड्रग एडिक्ट सिद्ध होने पर भी नौसेना में अफसर बनने की छूट ।छूट मिलने पर भी कोकेन पीकर पुनः जाँच कराने गये तो नौकरी से बर्खास्त हो गये । कुछ घण्टों के लिए कोकेन की तलब को रोक लेते तो ड्रग टेस्ट पास कर लेते,उसके बाद पीते!अमरीका बड़ा कानूनची देश है,हमारे सुपरस्टार की पतलून तक उतारकर जाँच करता है । किन्तु उनके उप−रासपति का बेटा पुराना ड्रग एडिक्ट और बुड्ढा हो तब भी नौसेना का अफसर बन सकता है!किन्तु अफसर बनकर ज्वॉइन करते समय जाँच में पुनः कोकेन खून में मिला!बिना कोकेन के कुछ काल तक भी रहना कठिन!कोकेन एडिक्ट का चेहरा कैसा होता है यह संलग्न फोटो में देख लें,उसी वर्ष का है ।“हण्टर बाइडेन” का पूरा परिचय आवश्यक है,वर्तमान यूक्रेन काण्ड एवं अनेक अन्तर्राष्ट्रीय काण्डों के पीछे वर्तमान अमरीकी रासपति के इस “होनहार” पुत्र का बहुत बड़ा हाथ है । वर्तमान अमरीकी रासपति तब उप−रासपति थे तथा बराक हुसैन ओबामा के “प्वॉइण्ट−मैन” थे।
“प्वॉइण्ट−मैन” का अर्थ होता है काले कारोबार की कमाई से अपना हिस्सा लाने वाला वफादार ।हण्टर के कोकेन−प्रेम पर विकिपेडिया का यह लेख पढ़ें=https://en.wikipedia.org/wiki/Hunter_Biden#Naval_careerगूगल ट्रान्सलेट में अनुवाद प्रस्तुत है=(संख्यायें लेख में सन्दर्भों की है) नौसेना कैरियरयूएस नेवी रिजर्व में एक पद के लिए बिडेन के आवेदन को मई 2013 में मंजूरी दी गई थी। [95] 43 साल की उम्र में, बिडेन को एक ऐसे कार्यक्रम के हिस्से के रूप में स्वीकार किया गया, जो वांछनीय कौशल वाले सीमित संख्या में आवेदकों को कमीशन प्राप्त करने और स्टाफ पदों पर सेवा करने की अनुमति देता है। [96] पिछले ड्रग से संबंधित घटना के कारण बिडेन को छूट और उम्र से संबंधित छूट मिली थी; उन्होंने प्रत्यक्ष कमीशन अधिकारीके रूप में शपथ ली थी। [95] जो बाइडेन ने व्हाइट हाउस के एक समारोह में अपनी कमीशनिंग शपथ दिलाई।[6]अगले महीने, बाइडेन ने एक यूरिनलिसिस परीक्षण के दौरान कोकीन के लिए सकारात्मक परीक्षण किया और बाद में उन्हें प्रशासनिक रूप से छुट्टी दे दी गई। [97] [98] बाइडेन ने परिणाम के लिए सिगरेट पीने के लिए जिम्मेदार ठहराया, जिसे उसने अन्य धूम्रपान करने वालों से स्वीकार किया था, यह दावा करते हुए कि सिगरेट में कोकीन थी। [6] उन्होंने इस मामले में अपील नहीं करने का फैसला किया क्योंकि यह संभावना नहीं थी कि पैनल उनके स्पष्टीकरण पर विश्वास करेगा क्योंकि ड्रग के साथ उनका (पुराना) इतिहास रहा है [99] [100] और समाचारों के प्रेस में लीक होने की संभावना के कारण भी; यह अंततः जानकारी प्रदान करने वाले नौसेना के एक अधिकारी द्वारा वॉल स्ट्रीट जर्नल के सामने प्रकट किया गया था।[6][95] Direct Commission Officer उसको कहते हैं जो नौसेना में किसी प्रकार की पढ़ाई वा प्रशिक्षण के बिना केवल ऊँची पैरवी के कारण direct ही कमीशन−अधिकारी बन जाय । हण्टर को उसके उप−रासपति बाप ने उपरोक्त कमीशनिंग की शपथ दिलायी!शपथ खाते ही खुशी में कोकेन के छल्ले उड़ाने लगा,भूल गया कि कमीशनिंग मिलते ही ड्रग टेस्ट होता है!बाप ने बात को दबाने का बहुत प्रयास किया,किन्तु लीक हो गया ।यह दूसरी बात है कि अमरीका में क्लिण्टन जैसे “रासपति” और बाइडेन जैसे ड्रगलार्ड होने पर लोकप्रियता और भी बढ़ जाती है ।यूक्रेन में बाइडेन के काले कारोबार पर अगले अङ्क में!
तबतक इतना बता दूँ कि जब आज सायं भारतीय पत्तलकार बता रहे थे कि खारकोव से यूक्रेनियों ने रूसी सेना को खदेड़कर भगा दिया है,तब बीबीसी बता रही थी कि रूसी सेना ने उसी समय खारकोव में प्रवेश किया और सड़को पर लड़ाई चल रही है!बीबीसी भी रूस की विरोधी है,किन्तु हिसाब से झूठ बकती है । हमारे पत्तलकार तो बेहिसाब हैं!
रूसी सेना सावधानी से धीरे−धीरे आगे बढ़ रही है जिसके दो कारण हैं — यूक्रेन में कुछ लाख नात्सी गुण्डों के सिवा आमलोगों को सदा से रूस के लोग अपना ही समझते रहे हैं,और यूक्रेनी सेना के सारे वरिष्ठ अधिकारी सोवियत काल में रूसी अधिकारियों के कॉमरेड थे जो एक−दूसरे को मार नहीं सकते । मारकाट CIA के पाले हुए गुण्डे कर रहे हैं जिनके कारण कई वर्षों से लड़ाई चल रही है । बीस सहस्र गुण्डों की “अजोव बटालियन” को संयुक्त राष्ट्र ने भी युद्ध−अपराध का दोषी घोषित कर रखा है ।
आज ब्रिटेन के बेवकूफ प्रधानमन्त्री ने बयान दिया कि रूस पर नैटो आक्रमण कर सकता है । तब पुतिन ने आणविक “डिटेरेण्ट” को अलर्ट कर दिया,जिसका अर्थ है आक्रमण होने पर जबावी आक्रमण । हमारी मीडिया ब्रिटिश बयान पर चुप है और पुतिन की जवाबी कार्यवाई को परमाणु खतरा बता रही है!ब्रिटेन ने प्राइवेट लड़ाकों को भी यूक्रेन जाकर लड़ने को कहा है!उनको जर्मनी हथियार देगा,जो जर्मन संविधान का उल्लङ्घन है । पैसा ड्रग के कारोबार से दिया जायगा,सरकारी खजाने से प्राइवेट लड़ाकों को पैसा देना सम्भव नहीं है । मैनेज CIA करेगी । प्राइवेट लड़ाकों को भेजने का अर्थ है कि यूक्रेनी सेना में सैनिकों की कमी हो रही है । यूक्रेनी सेना के बहुत से सैनिक भागकर बाहर चले गये थे जिनमें से कुछ को पहचानने के पश्चात नैटो के सदस्य पोलैण्ड ने वापस यूक्रेन भेजा है ।
रूस नष्ट वा अशक्त हो जाय तब भारत की बारी आयगी और फिर चीन की । तत्पश्चात शान्तिदूतों का सफाया होगा । अन्त में गोरे देशों के गरीबों का सफाया होगा क्योंकि घटते हुए संसाधनों के कारण केवल “धनवान गोरों” और उनके लिये आवश्यक नौकरों को ही जीवित रहने दिया जायगा । यह गुप्त योजना है । अमरीका और यूरोप के आमलोगों को पता भी नहीं चलेगा और उनका भी सफाया हो जायगा ।यह दूसरी बात है कि इन सबका सफाया तो होगा ही,किन्तु “धनवान गोरों” को ईसा मसीह और यहोवाह ले जायेंगे । बचेंगे केवल वे जो सच्चे धर्म को बचायेंगे ।
अमरीका के अपने प्राकृतिक संसाधन अधिकांशतः समाप्त हो चुके हैं जबकि रूस के अधिकांश संसाधन बचे हुए हैं । यही कारण है कि पश्चिम की गिद्ध दृष्टि रूस के प्राकृतिक संसाधनों पर लगी हुई है । प्रत्यक्ष युद्ध में रूस को पराजित करना असम्भव है,अतः रूस को किसी बहाने आक्रमणकारी घोषित करके आर्थिक प्रतिबन्धों द्वारा बर्बाद करना पश्चिम की नीति है ताकि पुतिन के विरुद्ध विद्रोह भड़के ।येल्तसिन के दौरान रूस लगातार डूबता जा रहा था जिसे पुतिन के काल में लगातार विकास करने का अवसर मिला और रूस पुनः सशक्त बना — जो अमरीका को रास नहीं आ रहा है ।
१९८९ ई⋅ से रूस की आर्थिक विकासदर का ग्राफ भी संलग्न है जो दिखाता है कि नष्ट हो रहे रूस को पुतिन के काल में ही उत्थान का अवसर मिला (२०२१ ई⋅ में ग्राफ ४३२८ अरब डालर तक उछल चुका है)। अतः पुतिन को हटाना पश्चिम को अनिवार्य लग रहा है ।असली लड़ाई रूस को लूटने की है,रूस ढह जाय तो भारत को लूटना अत्यधिक आसान हो जायगा ।संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की पूरी बैठकें मैंने लाइव देखी । मेरे मुहल्ले के गुण्डे भी उनसे अधिक शरीफ हैं,केवल शराफत का नाटक करने में कुशल नहीं हैं । अमरीका का आरोप था कि वीडियो फुटेजों से सिद्ध हो गया है कि रूस नागरिकों पर बमबारी कर रहा है । रूस का कहना था कि उन वीडियो फुटेजों में से कुछ यूक्रेनियों द्वारा बमबारी के हैं,कुछ अन्य देशों के पुराने फुटेज हैं और कुछ अमरीका ने वीडियो गेम सॉफ्टवेयरों द्वारा बनाये हैं । अमरीका का कथन सत्य है वा रूस का इसकी जाँच होनी चाहिये थी । किन्तु रूस की किसी ने नहीं सुनी । ऐसी बेईमान असुरक्षा परिषद पर वीटो ही नहीं,पीटो भी लगना चाहिये । झूठे आरोप लगाओ और किसी विशाल देश को नष्ट कर दो?जाँच भी नहीं?नैटो देशों ने संसार में जितने युद्ध,उपनिवेशवाद,दास−व्यापार आदि फैलाये उसके आगे तो प्राचीन राक्षस भी शर्म से पानी भरेंगे ।
भारत को सावधान हो जाना चाहिये । कमजोर की कोई नहीं सुनेगा । गोमाँसप्रेमी दलाई को निकालकर चीन से सम्बन्ध सुधारे,रूस चीन ब्राजील के साथ BRIC को प्रबल बनाये ताकि डॉलर के चँगुल से रूपया निकले — वरना नकली विनिमय मूल्य द्वारा डॉलर हमें लूटता रहेगा । और थोरियम शक्ति को तेजी से विकसित करे ताकि पेट्रोलियम पर निर्भरता समाप्त हो । वरना भारत की भी खैर नहीं । यूगोस्लाविया पर बिना संयुक्त राष्ट्र की स्वीकृति के नैटो ने आक्रमण करके उसे मिटा डाला । नैटो किस मुँह से आज रूस को आक्रमणकारी कह रहा है?पिछले दो दशकों से हिटलर की नकल में नात्सी विचारधारा यूक्रेनियों को पिलायी जा रही है,उनको सरेआम सिखाया जाता है कि रूसी नस्ल घटिया है जिसे मिटाना पुण्यकार्य है । यूक्रेनियों द्वारा सवाल न पूछें जाय इसके लिये उनको कोकीन और डॉलर दिये जा रहे हैं । नैटो की समस्या यह है कि कोकीन और डॉलर तो दिये जा सकते हैं,रूस से लड़ने योग्य साहस और क्षमता यूक्रेनियों को कौन दे?कोकीन तो बाइडेन जी तालिबान से माँग लेंगे,साहस किस बाजार में बिकता है?
रूसी पेट्रोलियम पर प्रतिबन्ध लगने के कारण भारत जैसे देशों को भी अब मँहगा पेट्रोलियम खरीदना पड़ेगा । पुतिन बड़ा दुष्ट है न!किन्तु इस मँहगे पेट्रोलियम से लाभ किसको होगा?बाइडेन के मित्र शेखों और ईस्ट इण्डिया कम्पनी के मालिक राथ्सचाइल्ड के जमाई रॉकफेलर की पेट्रोलियम कम्पनी को । इनका पेट्रोलियम मँहगा क्यों हो गया?मजदूरों की हड़ताल है?मशीनें मँहगी हो गयी?नहीं । रूसी पेट्रोलियम पर इन्हीं सेठों ने पाबन्दी लगायी ताकि अपना पेट्रोलियम मँहगे में बेचकर सबको लूट सकें । यूक्रेन विवाद जितना लम्बा खिंचेगा,उतना कमायेंगे!
रूस की करेन्सी रूबल लगभग ३०% गिर गयी । कहाँ गिर गयी?पश्चिम के बाजार में — जहाँ रूस के सामान पर ही प्रतिबन्ध है । जब सामान बेच ही नहीं सकते तो रूबल डबल हुआ अथवा आधा इससे क्या अन्तर पड़ता है?रूस के आन्तरिक बाजार में मँहगाई कितनी है इसका महत्व रूसियों के लिये हैं । जाड़े के महिनों में बर्फबारी के कारण कृषि−उत्पाद मँहगे हो जाते हैं,वरना अन्य सभी वस्तुओें की मँहगाई दर अमरीका से कम रूस में है ।
पिछले कई दशकों में मँहगाई अमरीका में सबसे ऊँचे दर पर है । अमरीकियों को घाटा है । मँहगे सामान बेचने वाले सेठों के वहाँ भी पौ बारह है ।यूरोप और अमरीका ने यूक्रेन को अरबों डॉलर के हथियार दिये हैं । देने वाले देशों की जनता को तो उन हथियारों का मूल्य चुकाना ही पड़ेगा,लाभ है हथियार बनाने वाले सेठों,सौदागरों एवं दलालों का । सबसे बड़े दलाल तो रासपति और परधानमन्त्री होते हैं ।
रूसी टीवी RT पर पश्चिम ने प्रतिबन्ध लगा दिया है क्योंकि वह जो कुछ दिखा रही है वह देखने पर अमरीका की जनता तो बाइडेन की ठुकाई कर देगी । दोनबास से यूक्रेनी नात्सियों के पीछे हटने पर सहस्रों नागरिकों के सामूहिक कब्र मिल रहे हैं जिनमें जीवित शिशुओं को भी सड़ने के लिये फेँक दिया गया था!एक वीडियो में शिशु कीड़ों से बचने के लिये हाथ−पाँव हिला रहा था किन्तु चलने के योग्य नहीं था,सड़ी हुई लाशों पर वह जीवित शिशु असहाय पड़ा था!उसका अपराध यही था कि वह घटिया रूसी नस्ल का था!वीडियो देखकर मेरे आँसू रुक नहीं रहे थे ।
फेसबुक का स्वामी यहूदी है । आज उसने फेसबुक पर यहूदियों के शत्रु अजोव बटालियन पर यह कहते हुए प्रतिबन्ध हटाया है कि अजोव बटालियन रूसियों से लड़ने का अच्छा कार्य कर रही है । युद्ध−अपराध के लिये संयुक्त राष्ट्र ने अजोव बटालियन को सूचीबद्ध कर रखा है । युद्ध−अपराध के अन्तर्गत निर्दोष नागरिकों के विरुद्व अमानवीय अपराध आते हैं,जैसे कि जीवित शिशु को खुले कब्र में फेँकना । अजोव बटालियन में बीस सहस्र विदेशी लड़ाके हैं जो आठ वर्षों से यूक्रेन में रूसियों का नरसंहार करके जनसंख्या का सन्तुलन “सुधार” रहे हैं ।
भारतीय मीडिया भी CIA के मिथ्या प्रचार को परोसने में व्यस्त रही है जिससे हमारे नौकरशाह भी भ्रमित होते हैं । आज वहाँ के भारतीय छात्र ने बताया कि रुमानिया की सीमा पर यूक्रेनी सेना द्वारा भारतीयों को परेशान किया जाता है,भारतीय लड़कियों को पीटा जाता है और यूक्रेन में रहने के लिये कहा जाता है । तब यूक्रेन−रूस सीमा पर तीन चेकपोस्टों पर भारतीय छात्रों को जाने के लिये भारतीय राजनयिकों ने कहा है । पहले इन राजनयिकों को नैटो देश ही सुरक्षित लगते थे । अमरीका पर भरोसा टूटा नहीं है!रूस का पेट्रोलियम पश्चिम नहीं खरीदेगा तो भारतीयों को प्रसन्न होना चाहिये कि अब वहाँ से भारत सस्ते में पेट्रोलियम खरीद सकता है — व्लादीवोस्तोक के रास्ते । किन्तु भारतीय पत्तलकारों का सारा क्रोध रूस पर ही है!ब्रिगेडियर बख्शी ने स्पष्ट कह दिया कि नैटो में जाने की जिद त्यागकर यूक्रेन निष्पक्ष रहे तो उसका क्या बिगड़ जायगा?युद्धोन्माद भड़काने में यूक्रेन को क्या लाभ है?लाभ है झेलेन्स्की को,जिसे युद्ध−उद्योग के स्वामियों ने अवैध सत्ता दिलायी । लाभ है शेखों और अमरीकी पेट्रोलियम सेठों को । लाभ है बिकाऊ पत्तलकारों को,जिन्हें निर्दोष नागरिकों के शव नहीं दिखते!
जिन दो गणराज्यों की मान्यता को लेकर झगड़ा आरम्भ हुआ उनका नाम तक नहीं लेते,क्योंकि वहाँ नात्सी गुण्डों द्वारा दफनाये गड़े मुर्दे अब उखड़ रहे हैं । आज एक भारतीय चैनल बक रहा था कि रूस अपनी कठपुतली सरकार बनाना चाहता है — विक्तोर यानुकोविच को थोपकर । पत्तलकार ने इस तथ्य को छुपाया कि यानुकोविच ही चुने हुए राष्ट्रपति थे जिनको अवैध तरीके से २०१४ ई⋅ में हटाकर उनकी पार्टी को प्रतिबन्धित कर दिया गया । सबसे बड़ी पार्टी को प्रतिबन्धित करने वाला झेलेन्स्की इन पत्तलकारों को “लोकतान्त्रिक” लगता है!
१७ रूपये में जितना सामान आप खरीद सकते हैं उतना सामान एक डॉलर खरीद सकता है । वर्ल्ड बैंक इसे परचेसिंग पॉवर पैरिटी कहता है । ७५ रूपये का नकली विनिमय दर बनाकर हर वर्ष भारत से दो सहस्र अरब डॉलर से अधिक का सामान साढ़े चार गुणे कम मूल्य में पश्चिम खरीदता है । पेट्रोलियम पर हम निर्भर हैं इसी कारण । अरब पेट्रोलियम बन्द करें,रूस और वेनजुएला से पेट्रोलियम लें और शीघ्र थोरियम शक्ति विकसित करें तो कुछ ही वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था समूचे यूरोप,जापान और अमरीका की सम्मिलित अर्थव्यवस्था से बड़ी हो जायगी । किन्तु भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के नौकरों की कमी नहीं है!छात्रावस्था में एक परीक्षा में मुझसे पूछा गया — भारत पर ब्रिटेन की विजय के कारणों पर प्रकाश डालें ।मैंने लिखा — प्रश्न गलत है । जहाँगीर के काल से ही ब्रिटेन भारत का मित्र है । पूरे इतिहास में कभी भी ब्रिटेन ने भारत पर आक्रमण करने का निर्णय नहीं लिया । भारत के लोगों ने भारत के पैसे से भारत को जीतकर उसकी एक कम्पनी के हवाले कर दिया तो कम्पनी की अक्षमता को देखकर ब्रिटिश सरकार को विवश होकर भार सम्भालना पड़ा । तब विस्तार से सारे कारणों का भी मैंने वर्णन किया ।आज भी वैसे बिकाऊ भारतीयों की कमी नहीं है!खरीदने वालों की कमी है । यूक्रेन तथा अफगानिस्तान के बिकाऊ लफंगे भारतीयों से भी सस्ते हैं । भारतीयों को कोई पूछता ही नहीं!अपने चैनलों पर भौंकते रहते हैं।
भारतीय मीडिया का कहना है कि रूस के सर्वश्रेष्ठ सुखोई−३५ विमानों को पिछड़ी तकनीक वाले यूक्रेन के मिग−२९ मारकर गिरा रहे हैं ।सच्चाई यह है कि यूक्रेन के वायुवान उड़ ही नहीं सकते,उसके सम्पूर्ण आकाश पर रूसी वायुसेना का और उसके सम्पूर्ण समुद्री तट पर रूसी नौसेना का पूर्ण आधिपत्य है । आधिपत्य करना उचित है वा अनुचित यह दूसरा विषय है,आधिपत्य है इस सच्चाई को भारतीय मीडिया छुपा रही है । गलत सूचनायें दी जा रही हैं ताकि सभी देशों की सरकारें गलत निर्णय लें ।
१ मार्च को ब्रिटिश प्रधानमन्त्री पोलैण्ड में थे,वहाँ एक यूक्रेनी पत्तलकार ने पूछा — “आप कहते हैं कि यूक्रेन का साथ देंगे किन्तु यूक्रेन के आकाश को “नो फ्लाई जोन” घोषित क्यों नहीं करते ताकि रूसी फाइटर विमान यूक्रेन में उड़ न सकें?”ब्रिटिश प्रधानमन्त्री बेवकूफ हैं,बेवकूफी में ऐसी सच्चाई मुँह से निकल गयी जिसे मीडिया वालों को सुधारकर प्रचारित करना पड़ा । बोले कि आपका कहा मानें तो यूक्रेन के आकाश में हमें रूसी विमानों को मारकर गिराना होगा जो हम कर नहीं सकते” ( “… which is something we cannot do.” )।अर्थात् नैटो की नाभि में दम नहीं है!“cannot do.”!cannot do तो २००८ ई⋅ में यूक्रेन को नैटो ने क्यों वचन दिया कि उसे नैटो की सदस्यता दी जायगी?
यूक्रेन को आज ही यदि नैटो की सदस्यता मिल जाय तो उसकी रक्षा में पूरी सैन्य शक्ति को झोँक देने के लिए नैटो विवश हो जायगा ।नैटो के पूर्व डिप्टी कमाण्डर,अर्थात् उप−प्रमुख,ने टीवी पर लम्बी अन्तर्वार्ता दी है जिसमें स्पष्ट कहा है कि यूक्रेन को नैटो की सदस्यता देने का सीधा अर्थ है कि शीतयुद्ध के काल में जिस तरह पश्चिम जर्मनी की रक्षा में नैटो पूरी शक्ति से तैनात था उसी तरह अब यूक्रेन में पूरी शक्ति से तैनात रहना पड़ेगा जो सम्भव नहीं है । सम्भव क्यों नहीं है इसका कारण भी बताया — नैटो का सदस्य बनने की योग्यता यूक्रेन में नहीं है!उन्होंने स्पष्ट कहा कि २००८ ई⋅ में यूक्रेन को नैटो की सदस्यता देने का वचन गलत था क्योंकि सुदूर भविष्य में भी ऐसी कोई सम्भावना नहीं है । उनका कहना था कि इसी वचन के कारण यूक्रेन में रूस−विरोधियों का साहस बढ़ा और संघर्ष तक बात आ गयी । अतः नैटो की सदस्यता देने का वचन एक सुनियोजित झाँसा था जिसमें यूक्रेन को फँसाकर उसे रूस से लड़वाया गया ।
यूक्रेन और पश्चिम की आम जनता इस झाँसे से अनजान है क्योंकि उनकी मीडिया सच्चाई छुपाती है । भारतीय मीडिया भी सच्चाई छुपाती है ।सोवियत संघ का विघटन केवल रूसी राष्ट्रवादियों की करामात थी,सोवियत संघ को तोड़ने के लिये यूक्रेन और अन्य गणराज्यों ने कोई संघर्ष नहीं किया था । सोवियत संघ को तोड़ने के पश्चात यूक्रेन को स्वतन्त्र देश बनाना अकेले रूस का कार्य था । यही कारण था कि यूक्रेन जब नया देश बना तो उसने ५००० अणुबम एवं अत्याधुनिक आणविक मिसाइलें रूस को लौटा दिये अथवा नष्ट कर दिये — नैटो की जिद के कारण । नैटो नहीं चाहता था कि ढेर सारे आणविक देश बने । यूक्रेन और रूस में बहुत ही अच्छे सम्बन्ध थे ।आज यूक्रेन में जो सङ्कट है उसके मूल में लेनिन की नीति है ।
सोवियत क्रान्ति के उपरान्त जार के एक बहुराष्ट्रीय रूसी साम्राज्य को कैसा स्वरूप दिया जाय इसपर बहुत मन्थन हुआ । एक बहुराष्ट्रीय साम्राज्य कम्युनिज्म की धारणा से मेल नहीं खाता । दो ही विकल्प थे — या तो सभी गणराज्यों को स्वतन्त्र कर दिया जाय जैसा कि बाद में येल्तसिन ने किया,या फिर समाजवादी गणराज्यों का संघ बनाया जाय जैसा कि लेनिन ने किया । उस समय की परिस्थिति में संघ बनाना ही लेनिन को सही लगा क्योंकि सभी गणराज्यों को स्वतन्त्र करने पर पश्चिमी देशों से मिलकर वे रूस से लड़ते जैसा कि आज हो रहा है । आज जो हो रहा है उसे लेनिन ने १९१७ ई⋅ में भाँप लिया था किन्तु येल्तसिन १९९१ ई⋅ में भाँप न सकें!येल्तसिन नैटो के इस झाँसे में आ गये कि नैटो का विस्तार पूर्वी यूरोप में नहीं किया जायगा और रूस की सुरक्षा पर नैटो आँच नहीं आने देगा । येल्तसिन की गलती यही थी कि नैटो के झाँसे में न आकर उसी समय शर्त रखते कि या तो रूस को नैटो का सदस्य बनाया जाय,या नैटो को ही भङ्ग किया जाय,या फिर पूर्वी यूरोप के देशों पर रूसी नियन्त्रण वाले वार्सा पैक्ट का आधिपत्य बना रहे ।
किन्तु सच्चाई यह थी कि येल्तसिन बेईमान थे,कम्युनिष्ट नेताओं की चमचई करके मास्को कम्युनिष्ट पार्टी के प्रमुख बने जो अत्यन्त महत्वपूर्ण पद था,और अवसर मिलते ही अपने कम्युनिष्ट आकाओं की पीठ में चाकू भोँककर नैटो की गोद में बैठ गये,उसके पश्चात रूस के हित की बजाय अपने हित पर ध्यान देने लगे । यही कारण है कि उनके पूरे कार्यकाल में रूस की अर्थव्यवस्था तेजी से नीचे लुढ़कती रही और पश्चिम उनकी प्रशंसा के पुल बाँधता रहा ।
वही बेईमानी आज झेलेन्स्की कर रहे हैं । २०१४ ई⋅ में CIA के षडयन्त्र द्वारा निर्वाचित सरकार को हटाया गया और यूक्रेन में रूस−विरोधी नात्सी नस्लवाद की आँधी बहायी गयी । संयुक्त राष्ट्र को भी निर्णय करना पड़ा कि यूक्रेन में अजोव बटालियन युद्ध−अपराध की दोषी है । अतः एक कॉमेडियन कलाकार झेलेन्स्की को सुनियोजित तरीके से नेता बनाया गया,पहले एक टीवी सीरियल बनवाकर उसको मीडिया द्वारा प्रचारित करके सुपरहिट कराया गया — उस सीरियल में झेलेन्स्की भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़कर राष्ट्रपति बने । फिर वास्तविक राजनीति में उनको उतारा गया । नात्सी नस्लवाद के आरोप से बचने के लिए यहूदी झेलेन्स्की को नैटो ने चुना । पोलैण्ड के बाद सबसे अधिक यहूदी यूक्रेन में ही थे किन्तु उनको हिटलर ने मार डाला और जो बचे वे भाग गये ।
आज यूक्रेन की जनसंख्या में केवल ०⋅५% ही यहूदी हैं । यूक्रेन में हिटलरी नात्सीवाद की आँधी नैटो ने चला रखी है और उस आँधी में यहूदी झेलेन्स्की राष्ट्रपति कैसे बन गया यह टीवी देखकर समझना सम्भव नहीं है,टीवी तो कहेगी कि यूक्रेन के आमलोग रूसियों के शत्रु होते हैं जो सत्य नहीं है । यूक्रेन के आमलोगों ने रूसी पार्टी को २००९ ई⋅ में सत्ता दी जिसे गलत तरीके से २०१४ ई⋅ में हटाया गया और उस पार्टी को प्रतिबन्धित कर दिया गया!यूक्रेन के आमलोगों की भावना का दुरुपयोग करने के लिये झेलेन्स्की का इस्तेमाल किया गया क्योंकि उनकी मातृभाषा रूसी है,यूक्रेनी नहीं!और वे यहूदी हैं जिनको रूसियों ने हिटलर से बचाया था ।
यूक्रेन के रूसियों को झाँसा देने के लिये झेलेन्स्की का इस्तेमाल किया गया । २००९ ई⋅ के पश्चात यूक्रेन में निष्पक्ष मतदान CIA और नैटो ने होने ही नहीं दिया,रूसी भाषा और उसकी पार्टी पर प्रतिबन्ध लगाकर यूक्रेनी नात्सीवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है और रूसी भाषा बोलने वालों को ठगकर वोट पाने के लिये रूसी भाषी यहूदी को राष्ट्रपति बनाया गया ।
काँग्रेसी भ्रष्टाचार के विरुद्ध जन आन्दोलन का इस्तेमाल करके केजरीवाल सत्ता में आये और काँग्रेस−विरोधी आन्दोलन को भाजपा−विरोध की ओर मोड़ा । केजरीवाल की राजनीति का आरम्भ जिस कबीर फाउण्डेशन से हुआ था उसका रजिस्ट्रेशन होने से एक मास पहले ही उसे CIA के कहने पर फोर्ड फाउण्डेशन से धन मिल चुका था जो गैर−कानूनी है । मोदी जब चाहे उस मामले में केजरीवाल को जेल भेज सकते हैं किन्तु तब अमरीका नाराज हो जायगा । झेलेन्स्की यूक्रेन के केजरीवाल हैं,यूक्रेनी नस्लवादियों द्वारा अमानवीय हिंसा एवं भ्रष्टाचार के विरुद्ध नकली आन्दोलन CIA की सहायता से खड़ा करके सत्ता में आये और अब उस सत्ता का दुरुपयोग यूक्रेनी नस्लवादियों को बढ़ावा देने में कर रहे हैं,न कि भ्रष्टाचार एवं हिंसा को मिटाने में ।
१९वीं शती में भारोपीय परिवार का होमलैण्ड केन्द्रीय एशिया में बताया जाता था । उसका कारण था भारत को होमलैण्ड बनने से रोकना क्योंकि सारे साक्ष्य भारत के पक्ष में थे । जर्मनी का विश्वशक्ति के रूप में उदय हुआ तो पूरे पश्चिम की यूनिवर्सिटियों ने आर्य होमलैण्ड को खिसकाकर जर्मनी भेज दिया ताकि “शुद्ध आर्य नस्ल” वाले जर्मनों को अशुद्ध रूसियों से लड़वाया जा सके । अब जर्मनी की उपयोगिता नहीं रही,अब आर्य होमलैण्ड को खिसकाकर पूर्वी यूक्रेन भेज दिया गया है ताकि “शुद्ध आर्य नस्ल” वाले यूक्रेनियों को अशुद्ध रूसियों से लड़वाया जा सके ।
भाषाविज्ञान जैसे अनमोल शास्त्र का ऐसा वीभत्स दुरुपयोग हार्वर्ड,ऑक्सफर्ड आदि जैसी यूनिवर्सिटियाँ कर रही हैं और उनके कचड़े को भारत में आज भी पढ़ाया जा रहा है । इस “थ्योरी” के अनुसार आर्य होमलैण्ड से सबसे दूर होने के कारण सर्वाधिक “अशुद्ध आर्य नस्ल” वाले लोग हैं “ऋग्वैदिक आर्य” । वामपन्थी रामशरण शर्मा और ऐसे अन्य दलालों ने स्पष्ट लिखा है कि केवल दो लाख शुद्ध आर्य यूरोप से आये और मूल भारतीयों से मिश्रित हो गये । अर्थात् अशुद्ध दोगले बन गये । अतः सारे हिन्दू अशुद्ध दोगले हैं । जिस प्रकार जर्मनी की उपयोगिता समाप्त होने के पश्चात आर्य होमलैण्ड को खिसकाकर पूर्वी यूक्रेन भेज दिया गया,उसी प्रकार यूक्रेन की उपयोगिता समाप्त होने के पश्चात आर्य होमलैण्ड को खिसकाकर किसी ऐसे देश में भेजा जायगा जो भारत जैसे अशुद्ध दोगले देश का सामूहिक नरसंहार कर सके । ये लोग संसार को शुद्ध एवं पवित्र करेंगे । रूस अशुद्ध दोगला होने पर भी ईसाई तो है,भारत अशुद्ध दोगला भी है और हिन्दू जैसा घटिया भी
अमरीकी सरकार की संस्था ‘National Institute on Drug Abuse’ की यह रिपोर्ट ( https://nida.nih.gov/international/abstracts/problem-substance-abuse-in-ukraine१९९० ) १९९० ई⋅ से २००६ ई⋅ तक के यूक्रेन पर है जो कुछ पुरानी हो चुकी है किन्तु रिपोर्ट में जिन प्रवृतियों का उल्लेख है वे अब अत्यधिक बढ़ चुकी हैं
(गूगल अनुवाद प्रस्तुत है )
“जबकि अधिकांश देशों में नशीली दवाओं की खपत एक व्यक्तिगत मामला है, यूक्रेन में इसका एक समूह चरित्र है। अफीम का अर्क (poppy straw extract) पसंद का मुख्य ड्रग बना हुआ है। मारिजुआना युवा लोगों के बीच लोकप्रियता में बढ़ रहा है और सिन्थेटिक दवाओं का उपयोग बढ़ती आवृत्ति के साथ दिखाई दे रहा है। औसत यूक्रेनी नागरिक के लिए कोकीन और हेरोइन जैसी कठोर दवाएं बहुत मँहगी हैं, इसलिए उनके दुरुपयोग के स्तर अभी भी महत्वपूर्ण नहीं हैं। 1990 के दशक की शुरुआत से नशीली दवाओं पर निर्भर लोगों की संख्या में सालाना 10-12 प्रतिशत की वृद्धि हुई, उनमें से 27 प्रतिशत वयस्क हैं, 60 प्रतिशत किशोर हैं और 13 प्रतिशत बच्चे हैं, जिनकी आयु 11 से 14 वर्ष है। ड्रग एडिक्ट, 20-30 वर्ष की आयु, उपयोगकर्ताओं की एक प्रचलित श्रेणी बन रही है, और यह हाल के वर्षों में एक विशिष्ट विशेषता है, जो सामान्य यूरोपीय प्रवृत्ति से मेल खाती है। 2002 में, यूक्रेन ने पूरे पूर्वी यूरोप में HIV संक्रमण की उच्चतम और सबसे तेजी से बढ़ती दरों में से एक दर्ज किया। HIV का प्रसार नशीली दवाओं के इंजेक्शन के उपयोग और कुछ हद तक कम लेकिन बढ़ती सीमा तक, युवा लोगों के बीच असुरक्षित यौन संबंध से प्रेरित हो रहा है।”
नशीली दवाओं के उपयोग को उपरोक्त रिपोर्ट में “सामान्य यूरोपीय प्रवृत्ति” कहा गया है । निम्न रिपोर्ट के अनुसार ( https://www.ojp.gov/pdffiles1/nij/218556.pdf ) यूरोप में नशीली दवाओं के प्रसार का प्रमुख कर्ता−धर्ता है नैटो सदस्य तुर्की और उस ड्रग का प्रमुख स्रोत है अफगानिस्तान जहाँ सोवियत आक्रमण के समय से ही तालिबान के सहयोग से अमरीका नशीली दवाओं की खेती और व्यापार करता रहा है । तुर्की से यूरोप सीधे भी नशीले ड्रग भेजे जाते हैं और यूक्रेन के रास्ते भी ।
निम्न अमरीकी रिपोर्ट https://www.ojp.gov/pdffiles1/nij/200271.pdf का शीर्षक ही है The Growing Importance of Ukraine As A Transit Country for Heroin Trafficking (हेरोइन तस्करी के लिए एक पारगमन देश के रूप में यूक्रेन का बढ़ता महत्व) ; रिपोर्ट २००२ ई⋅ की है ।पिछले दो दशकों से अफगानिस्तान में अमरीका का सीधा कब्जा रहा है और यूक्रेन भी अधिकांश काल तक अमरीकी प्रभाव में रहा है जिस कारण ऐसे अनुसन्धानों को अब दबाया जाता है,यही कारण है कि ढूँढने पर भी मुझे दो दशक पुराने रिपोर्ट ही मिले । किन्तु अब स्थिति अत्यधिक भयावह हो चुकी है ।
११% वार्षिक वृद्धि दर का अर्थ है ३२ वर्षों में ड्रग एडिक्टों की संख्या में २८ गुणे की वृद्धि!यूक्रेनियों को नशीली दवाओं का इस सीमा तक अभ्यस्त बना दिया गया है कि सपने देखते रहते हैं कि अमरीका के गीत गाने से नैटो सदस्य बना लेगा और रूस पर आणविक मिसाइस की अनुमति यूक्रेन देगा तो उसके बदले यूक्रेनियों को काम−काज नहीं करना पड़ेगा । यूक्रेन को अरबों डालर की पाश्चात्य “सहायता” मिल रही है जिसका दुरुपयोग होता है । सोवियत युग में यूक्रेन रूस से भी अधिक विकसित गणराज्य था । सोवियत संघ से टूटते ही ड्रग का प्रसार बढ़ने लगा जैसा कि उपरोक्त रिपोर्टों में है । अब हालत यह है कि यूक्रेन यूरोप का सबसे गरीब देश बन चुका है जिसे केवल ड्रग का सेवन करने और नैटो से भीख माँगने में ही रुचि है ।
नैटो भी इस निकम्मे देश को सदस्य बनने के योग्य नहीं समझता,केवल रूस के विरुद्ध इस्तेमाल कर रहा है । अहमद शाह मसूद और उनके मुजाहिदीनों को अमरीका ने सोवियत संघ के विरुद्ध इस्तेमाल किया और काम निकल जाने पर पाकिस्तान एवं तालिबान द्वारा मरवाने का प्रयास किया तो भारत ने गुप्त रूप से बचाया । वही हाल झेलेन्स्की का हो रहा है ।भारतीय मीडिया तो अमरीका और ब्रिटेन से “समाचार” उधार लेकर कहती है कि यूक्रेनी वायुसेना रूसी युद्ध−विमानों को मारकर गिरा रही है,किन्तु यूक्रेनी वायुसेना आकाश में जाने योग्य होती तो झेलेन्स्की यूक्रेन को “नो फ्लाई जोन” बनाने के लिये नैटो से गुहार नहीं लगाते ।
झेलेन्स्की जानते नहीं हैं कि ऐसा करने पर विश्वयुद्ध छिड़ जायगा?रूस के विरुद्ध नैटो को बुलाने और यूक्रेन में रूसियों का नरसंहार करने के कारण ही यूक्रेन पर रूस का आक्रमण हुआ,आक्रमण के कारण को दूर करने की बजाय उसे भड़काने में ही झेलेन्स्की लगे है । सत्ता के लोभ में कोई व्यक्ति इतना गिर सकता है कि विश्वयुद्ध कराना चाहे यह विश्वास करना कठिन है । झेलेन्स्की ड्रग एडिक्ट लगता है,सामान्य बुद्धि का व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता । आज झेलेन्स्की बयान दे दे कि यूक्रेन नैटो का सदस्य नहीं बनेगा तो सारा झगड़ा ही समाप्त हो जायगा । नैटो भी उसे सदस्य नहीं बनायेगा । रूस भी यह जानता है । किन्तु झेलेन्स्की अपने को सुपरपॉवर समझने लगा है । अतः दोनवास में रूसियों का नरसंहार बन्द कराना भी नहीं चाहता । दोनवास के दोनों गणराज्यों को मान्यता देना रूस का आक्रमण नहीं था । मान्यता देने पर रूस के विरुद्ध प्रतिबन्धों की घोषणा होने लगी जो दोनवास में रूसियों के नरसंहार का पश्चिम द्वारा समर्थन था । इसी से भड़ककर रूस ने युद्ध द्वारा समाधान करना चाहा,वार्ता के सारे रास्ते झेलेन्स्की ने बन्द कर दिये थे । मिन्स्क समझौता करके उसे लागे करने से यूक्रेन मुकर गया,वरना तनाव बढ़ता ही नहीं ।
बाइडेन का ड्रग−एडिक्ट बेटा हण्टर भी दीर्घकाल तक यूक्रेन में “बिजनेस” कर रहा था । कोई समझदार व्यक्ति अपने बेटे का नाम हण्टर,चाबुक या कोड़ा कैसे रख सकता है?पूरा यूक्रेन ही ड्रग एडिक्ट है । २००५ ई⋅ की उपरोक्त रिपोर्ट कहती है कि नशीली दवा लेना यूक्रेन में व्यक्तिगत प्रवृति नहीं बल्कि झुण्डवृति बन चुकी थी!१२ वर्ष से २४ वर्ष के किशोरों को CIA ने टारगेट करके एडिक्ट बनाया ताकि रूस से युद्ध कराया जा सके । अरबों डालर भी झोंके गये । उस धन से कोई रोजगार सर्जित नहीं हुआ,उद्योग नहीं खुले,सैन्य शक्ति नहीं बढ़ी । केवल संस्कार बिगाड़े गये । आज भी यूक्रेन की वायुसेना के एक सौ युद्ध विमानों में एकाध के सिवा सबके सब ठीकठाक हैं,किन्तु उड़ाना सम्भव नहीं है । कारण CIA से घूस खाने वाली मीडिया नहीं बतायेगी । यूक्रेनी सेना के कुशल पायलट और वरिष्ठ अधिकारी रूस से लड़ना नहीं चाहते,झेलेन्स्की के नशेबाज गुण्डे फाइटर प्लेन उड़ा नहीं सकते ।ये गुण्डे नशा करके आवारागर्दी करेंगे और नैटो से कहेंगे कि रूस पर तुमको आक्रमण करने के लिये भूमि हम देंगे,तुम हमें ड्रग और डॉलर दो,यहाँ आकर तुम लड़ो ।ऐसे आवारा लोगों के पक्ष में १४१ देशों को डॉलर के बल पर लाया गया और रूसी पक्ष को सेन्सरशिप करके दबाया गया । किन्तु अमरीका आज भी रूस से पेट्रोलियम खरीद रहा है और पश्चिम यूरोप रूसी गैस!भारत से कहता है कि सउदी तेल खरीदो जिससे जिहादियों को धन मिले ।
–श्री विनय झा