एक बात इन दिनों बहुत सुन रहा हूँ कि काहे के #अन्नदाता… हम तो खरीद के खाते हैं, वो अन्नदाता हैं तो हम करदाता हैं।
और मैं चकित हूँ कि यह विचार स्पष्ट अथवा परोक्ष रूप में मेरे प्रत्येक मित्र की टाइमलाइन पर अंकित है जो कि प्रचंड रूप से राष्ट्रवादी हैं और सत्यरूप से सनातनी भी। संभवतः यह सोंच आवेश में या लंबे खिचते किसान आंदोलन की झुंझलाहट में उत्पन्न हुई है।
निश्चित ही अज्ञानतावश ऐसा नहीं कहा जा रहा क्योंकि सभी मित्र इस सत्य को भलीभांति जानते हैं कि यह किसान आंदोलन कदापि नहीं है, यह आढ़तियों, जमींदारों, बिचौलियों, दलालों, खालिस्तानियों का राष्ट्रविरोधी अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र है, इसका वास्तविक किसान से कोई लेना देना नहीं है।
किसान तो वो है जो खेत में हल चलाता है और फिर भी गरीब है और गरीब भी ऐसा कि 2014 से पहले चालीस पचास हजार का लोन न चुका पाने के कारण बड़ी संख्या में आत्महत्या करता था।
यह गहन चिंता का विषय है क्योंकि अन्नदाता शब्द का परिहास करके हम अनजाने में एक ऐसा खतरनाक नरेटिव सेट कर रहे हैं जिससे इन दुष्ट आंदोलनकारियों का तो कोई नुकसान नहीं होगा परन्तु गरीब लाचार वास्तविक किसान समाज की सहानुभूति एवं सम्मान से हाथ धो बैठेगा। फिर भविष्य में कोई नाना पाटेकर उसकी सहायता को नहीं आएगा।
वैसे भी सनातन वैदिक परंपरा में अन्नदाता को ईश्वर के समकक्ष रखा गया है। हम अपनी इस धृष्टता से सनातन संस्कृति की गंभीर अवहेलना कर रहे हैं जिसका ज्ञान हमें तब होगा जब हमारी यह लफ्फाजी समाज की मान्यता बन चुकी होगी।
अनेकों लेखों की प्रतिक्रिया में अनेकों बार मैं इसका तार्किक रूप से विरोध कर चुका हूँ परंतु कोई भी सत्य स्वीकार करने को तैयार ही नहीं है, पोस्ट पर पोस्ट डाले जा रहे हैं, अब तो स्क्रीनशॉट्स भी तैयार कर लिये हैं, हर कोई जम कर अपलोड कर रहा है। जब मैं तर्क देता हूँ कि किसान यदि खेती नहीं करेगा तो हम खायेंगे क्या तो आप कहते हो कि यदि किसान खेती नहीं करेगा तो वह खायेगा क्या।
मुद्दा यह है ही नहीं, मुद्दा तो है किसान के सम्मान का, समाज में किसान की प्रतिष्ठा का, वह सम्मान जिसने किसान को अन्नदाता का नाम दिया, वेदों ने जिसे प्रणाम किया, हम आज उस निर्दोष को बदनाम, बेइज्जत और कलंकित करने में जुटे हैं।
अन्नदाता आज हमारे द्वारा कलंकित किया जा रहा है और उसे उस कुकर्म में भागीदार बनाया जा रहा है जो उसने किया ही नहीं।
इसे तुरंत विराम दें अन्यथा अनर्थ हो जायेगा और इतिहास इस पाप का जिम्मेदार हमारी पीढ़ी को ठहराएगा।
नम्र निवेदन है कृपया इसे अहम् का विषय न बनाएं, विवेक से काम लें और ईश्वर पर विश्वास बनाये रखें।
– डॉक्टर संजीव पाठक