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किसान आंदोलन को हाईजैक कर रहीं देश विरोधी शक्तियां

इसमें कोई संदेह नहीं है कि पिछली सरकारों के एवज में यह सरकार किसानों को बहुत बड़े बड़े फायदे दे रही थी। बहुत सारे कृषि उपकरणों, उत्पादन और अनगिनत वस्तुओं पर किसानों को सब्सिडी मिल रही है और सरकार दे रही है। उसके अतिरिक्त लोन माफ़, और 6000/- रूपए तो प्रत्येक प्ररिवार को अलग से अभी अभी और दे रही है, यह सब सम्भव इसलिए हो रहा था कि हम सब उन्हें अन्नदाता भगवान कहते थे। लेकिन लगता है कि यह किसानों को रास नहीं आ रहा है वे उन वेदर्द पार्टियों जैसे कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, कौमनिस्टों, नक्सलियों, खालिस्तानियों, एवार्ड वापसी, नशेड़ी फिल्म माफियाओं, दाऊद गैंग और विदेशीयों के साथ सड़कों पर उतर आए हैं, जो स्वयं किसानों का कभी भी भला नहीं होने देते थे और ना अब चाहते हैं। यदि वे किसानों का भला चाहते तो अब तक उन्होंने किसानों का भला क्यों नहीं किया ? यह सब भविष्य के लिए किसानों के लिए ठीक नहीं है।

अब इन्हें हम सब अन्नदाता भगवान न कहकर माफिया गिरोह के सदस्य मानने को मजबूर हो जाएंगे। यह हमारी मजबूरी होगी। अभी भी किसानों को इन सबसे छुटकारा पा कर अपनी अलग से ही लड़ाई लड़नी चाहिए जो उचित भी है और तब किसानों को हम सभी सपोर्ट करें तो इसमें कोई अतिशयोक्ति भी नहीं होगी। लेकिन लगता है कि इनसे कितनी भी बातचीत कर लो, कितना भी समझा लो, इनमें नकली किसान नेताओं की जायज़ नाज़ायज़ मांगे भी मान लो फिर भी यें नहीं मानने वाले। इसलिए लगता है फिर भी हिंसा तो हो कर ही रहेगी, सारी तैयारी और फंडिंग हिंसा के लिए हो रही है।

लगता है दिल्ली दंगों की तरह गोली भी खुद ही चलाएंगे और जान भी अपनों की ही लेंगे, विपक्ष को किसी भी कीमत पर मोदी जी को किसान विरोधी सिद्ध करना जो है। इसलिए एक बार फिर से ये सारे गिद्ध इकट्ठे हैं, इन्हें लाशें गिरने का इंतज़ार है।

इनमें कांग्रेस है, आप है, अकाली दल है, वामपंथी हैं, ममता दीदी है, योगेंद्र यादव है, JNU गैंग हैं, अमानतुल्ला खान है, खालिस्तानी हैं, रावण है, पप्पू यादव है, शहीनबाग वाली दिहाड़ी की दादी है, इनमें बहुत से सिखों का वेश धरे मुसलमान हैं, हाथरस वाली नक्सली भाभी है, तलवारें हैं, डंडे हैं, बंदूकें भी होंगी अभी पता नहीं क्या क्या हैं।

इनके पास मोटे गद्दे हैं, झक सफ़ेद रजाइयां और ढेरों कम्बल भी हैं, अनवरत चाय की चुस्कियां हैं, चौबीस घंटे तर माल वाले लंगर हैं, डिज़ाइनर कपडे हैं, डिज़ाइनर टोपियां हैं। और इस सबको डिजाइन करने के लिए विशेष विदेशों से एवार्ड प्राप्त करने वाले पत्रकार भी हैं। इनमें कनाडा का बेवकूफ पप्पू प्रधानमन्त्री है और इंग्लैंड के भारत विरोधी सांसद भी हैं और विदेशी दुश्मन पत्रकार तो हमेशा इसी ताक पर बैठे हैं और यहां पर भी कुछ विके हुए पत्रकार हैं। कुछ विदेशी दुश्मन चीन पाकिस्तान और टर्की तो यह सब चाहते भी थे।

क्या ग़रीब किसान जिनके हाथों में महंगे मोबाइल और fortuner गाडियाँ हैं, 6 महीने का राशन है, 1000 से ज्यादा ट्रेक्टर हैं, लक्ज़री बसें हैं, ऐसे होते हैं ? कैसे कनाडा के खालिस्तानियों ने इनको 10 mn डॉलर की मदद की घोषणा कर दी है। सोचता हूं, क्या ए इतने गरीब हैं?

ये लोग इतनी बड़ी तैयारी करके आये हैं, निहंगों की टोलियां पहनकर पँजाब से निकल चुके हैं और तो और इन्होंने तो दिल्ली को भी घेर लिया है फिर बिना हिंसा के, बिना लाशें गिराए वापस चले जाएंगे? ये हो नहीं सकता, ऐंसे हमें महसूस हो रहा है।

इन किसानों को बहकाने में जो विघटनकारी/देशद्रोही लगे हैं वे इस मुद्दे को पूरा अपने हिसाब से बदलकर निचोड़ लेंगे और तब सारा दोष किसानों पर मढ़ कर अचानक गायब हो जाएंगे। तब नया मुद्दा प्रकट होगा… रंगभूमि बदल जायेगी किंतु कलाकार वही होंगे, फिर अवार्ड वापिसी होगी, वहां सभी फिर इक्कठे होंगे, फिर यही पार्टियां देश को बंधक बनाएंगे।

देश विरोधी ताकतें अकूत धन और गद्दारों की फौज के साथ देश को उसी पुराने पतन के गढ्ढे में धकेलने को आतुर हैं। मज़बूत और ईमानदार देश उनके किस काम का.. जहाँ भ्रष्टाचार की संभावना ही न हो ?

यह किसान आंदोलन बिना बड़ी जानमाल के नुक्सान के ख़त्म नहीं होगा, ऐसे इसलिए लगता है कि कुछ दिन पहले एक कांग्रेसी प्रवक्ता ने एक टीवी चैनल पर बताया था कि भाजपा की सरकार को गिराना है।

–लेखक अज्ञात

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