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क्या आढ़तिए कृषक के लिए अम्बानी अडानी से बेहतर हैं?

हमें यह समझाया गया है कि कंपनियाँ हमारी दुश्मन हैं और सरकारें हमारी मददगार… इस पैरासाइट मानसिकता से निकलने की जरूरत है.

हमारे जीवन को इन कंपनियों ने सुविधाजनक बनाया है. जो भी उपयोगी चीजें हैं वह कंपनियों ने ही बना कर दी हैं. अगर आज हम कारों से चलते हैं तो वह इसलिए कि किसी हेनरी फोर्ड ने सस्ती कारें बनाई. अगर आज टेलीविजन देखते हैं, कंप्यूटर इस्तेमाल करते हैं, हमारे हाथ में स्मार्टफोन हैं तो वे सभी किसी कंपनी ने बना कर दी है. अगर अमेरिका में एक दवाई का अविष्कार होता है और अगले सप्ताह वह दवाई हमारे पास के मेडिकल स्टोर में मिलने लगती है तो वह इसलिए कि एक मुनाफे की लालची कम्पनी उसे वहाँ लेकर आती है. अगर आपको अपने शहर में सीटी स्कैनर और एमआरआई की सुविधा मिलती है तो वह इसलिए कि सिमन्स और GE जैसी कंपनियों ने अपने लालच के लिए मशीनें बनाकर आपके शहर तक पहुँचाया है. अगर आप इस भरोसे रहते कि एक लोककल्याणकारी सरकार उसे आपके भले के लिए बना कर आपको देती तो कभी नहीं होना था.

हमें वॉलमार्ट और अमेज़ॉन से डरने की नहीं, उनसे मुकाबला करने की जरूरत है. हमारे अपने अमेज़ॉन और वॉलमार्ट, एप्पल और सैमसंग हों…. जो इसीलिए नहीं हैं क्योंकि पिछली पीढ़ी ने टाटा बिरला को कोसते हुए अपना जीवन बिताया है और नई पीढ़ी को अम्बानी-अडानी को कोसना सिखाया जा रहा है. मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि अम्बानी और अडानी हमारे सबसे अच्छे मित्र हैं. हमें और अधिक अम्बानी और अडानी चाहिए. अमेरिका में भी गरीब हैं, पर अमेरिका का गरीब भारत के गरीब से बेहतर जिंदगी इसलिए जीता है क्योंकि वहाँ एक दो अम्बानी और अडानी के बदले सैकड़ों फोर्ड और रॉकफेलर, बिल गेट्स और स्टीव जॉब्स और जॉफ बेज़ोस हुए हैं. और वह इसलिए हुआ है कि अमेरिकी संस्कृति में अपने जॉफ बेज़ोसों और स्टीव जॉब्स को गालियाँ निकालने की नहीं, उनका सम्मान करने और उनकी समृद्धि में हिस्सेदार बनने की प्रवृत्ति है.

दूसरी तरफ हम चाहते हैं कि सरकार हमें इन कंपनियों के शोषण से बचाये. पर सोचें, हमारा शोषण कौन करता है? कंपनियाँ या सरकार? हमें इतने वर्षों तक गरीबी में रखने में किसका गुनाह अधिक बड़ा है?

यह सरकारी अमला जितना छोटा हो उतना अच्छा, ये टैक्स जितने कम हों उतना बेहतर. सरकार हमारे व्यापारिक निर्णयों में हस्तक्षेप ना करे और उतनी ही गतिविधियों तक खुद को सीमित रखे जो शुद्ध प्रशासन हो… चाहे किसी की भी सरकार हो.

“समानता” का विचार सिर्फ कानून के सामने समानता तक सीमित हो. आर्थिक समानता के बहाने से सरकारें बन्दरबाँट ना करे. हमारा पैसा हमारे हाथ में छोड़ दे, हम उसे बेहतर तरीके से खर्च कर लेंगे. रीडिस्ट्रिब्यूशन ऑफ वेल्थ सरकार का काम नहीं है, वह समाज के अंदर के आर्थिक विनिमयों से अपने आप हो जाता है. हमारा वेल्थ जब सरकार के हाथ से गुजरता है तो वह सरकारी तंत्र के हाथ में लुटता ही है. यह लूट समाजवाद के नामपर होती है, क्योंकि सरकार ने अमीर से लेकर गरीब को देने की अपनी जिम्मेदारी घोषित कर रखी है. यह लूट कभी खत्म नहीं हो सकती, अच्छी सरकारों में भी नहीं. काँग्रेस के समय बेतहाशा होती थी, मोदी सरकार के समय कम हुई है. पर हमारा पैसा जितने अधिक सरकारी हाथों से गुजरेगा उतना अधिक अपव्यय होगा. जब पॉवर प्लांट में बिजली बनकर तारों से आपके घरों तक पहुंचायी जाती है तो रास्ते में उसका नुकसान होता ही है… चाहे कितने भी अच्छे कंडक्टर वायर का प्रयोग किया जाए. इसलिए यह कंडक्टर वायर जितना छोटा हो उतना बेहतर.

सरकारें, यहाँ तक कि अच्छी सरकारें भी, हमारी आज़ादी छीनती हैं…यही उनकी परिभाषा है. दुनिया में जितने तानाशाह हुए हैं, वे सरकारों के रूप में हुए हैं, ना कि कंपनियों के रूप में. जो भी शोषण और दमन हुआ है वह सरकारों ने किया है. फिर भी हमने स्वेच्छा से सरकार नाम की संस्था को चुना है. क्योंकि हमने स्वेच्छा से अपनी स्वतंत्रता का एक भाग सरेंडर किया है, जो समाज के संचालन के लिए जरूरी है. पर स्वतंत्रता जैसी चीज को जितना कम सरेंडर किया जाए उतना बेहतर. सरकारों को जितना कम स्पेस दिया जाए हम उतने स्वतंत्र होंगे.

– डॉक्टर राजीव मिश्रा

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