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भारत का गौरवशाली इतिहास – विश्व विजेता सम्राट सुधन्वा चौहान

भारतीय इतिहास का महाविनाश कोई बदल नहीं सकता। कई महाशय कहते हैं इतिहास में जो गुजर गया उसे देख कर क्या होगा? वर्तमान में जो हो रहा हैं उसे देखिये।

यह लेख उनकी बातों का उत्तर है। “मैक्स-मुलर ने भारत आते ही सर्वप्रथम हिन्दुओ के पराक्रम एवं भुजाओं की शक्ति के बारे में जानना चाहा, जब उसको इतिहास बताया गया उसका सर घूम गया। इतिहास सुनकर उसने अपने साथी से कहा अगर यह इतिहास नहीं मिटाया गया तो ये हमें दुनिया से मिटा देंगे क्योंकि पूर्वजो के इतिहास से इन्हें उर्जा मिलती है। इनके इतिहास में इनकी शक्ति छुपी है। उसके बाद इस गोरे सियार को युक्ति सूझी और इसने हिन्दू राजाओ को निर्बल ठहराया।

मुस्लिम आक्रमणकारीयों ने लगभग आधा यूरोप जिहाद कर के अपने कब्जे में ले लिया था परन्तु भारतवर्ष से सनातन धर्म को नही मिटा पाये। इस्लामिक इतिहासकार ने भी माना था हिन्दू योद्धाओ के बाहुबल का लोहा। यह तो मैक्स मुलर की हिंदुओं के प्रति नफरत थी जिसने इतिहास को बदल दिया और मुग़ल, यवन, यूनान को ताकतवर बताया एवं हिन्दू राजाओ को निर्बल, गद्दार, इत्यादि।

बहुत ही शर्म की बात है मैंने कई पेज एवं जातिवादी ब्लॉगर को देखा हैं जो खुदको इतिहासकार कहते हैं परन्तु अपने हिन्दू राजा को जो उनके बिरादरी का नहीं हैं उन्हें बदनाम करने लगते हैं और वो भी बिना ऐतिहासिक जांच किये।

ऐसे तथाकथिक हिंदूवादी हिन्दुओ को तोड़ने का काम करते हैं। इनका मकसद होता हैं इतिहास केवल इनके नाम हो और इसी प्रयास में यह हिन्दू को कमजोर बना देते हैं , जिससे मैक्स मुलर जैसे राक्षस का कार्य और सफल हो जाता हैं । और मैं इतिहास को इसी प्रयास में सामने लेकर आता हूँ जिससे युवा पीढ़ी अपने शौर्य को पहचा,ने पूर्वजो के इतिहास से सिख तक लेकर खुदको भी राष्ट्र धर्म भक्त बनाये और धर्म की रक्षा में हर तरह का बलिदान देने में हर दम सक्षम रहे ।

जगतगुरु आदि शंकराचार्य और शिष्य सुधन्वा ऐसे नाम हैं जिनके बिना भारतीय इतिहास का वर्णन अधूरा है। आइये जानते हैं चौहान वंश के दिग्विजयी सम्राट सुधन्वा चौहान (चाहमान) जिनके बारे में कई अभिलेख मिले हैं ।

दिग्विजय सम्राट सुधन्वा सन ५००-४७० ई. पूर्व दक्षिणी अवन्ति के शासक थे। माहिष्मती नगरी उनकी राजधानी थी जो वर्तमान काल में मध्यप्रदेश के निमाड़ जनपद में महेश्वर नामक स्थान के रूप में ज्ञात हैं । सुधन्वा चौहान को विश्व सम्राट बनाने के पीछे गुरु आदि शंकराचार्य की अशेष कृपा थी।

गुरु आदि शंकराचार्य की शिक्षा एवं सुधन्वा चौहान का पराक्रम एवं शौर्य (शास्त्र और शस्त्र) दोनो के गठबंधन ने सनातन धर्म ध्वजा को विश्व की चारो दिशाओ में लहराकर भारत विश्व विजय का स्वर्णिम इतिहास रचा था।

अभी तक हमे केवल गुरु चाणक्य और चन्द्रगुप्त की कहानी ज्ञात थी पर आदि शंकराचार्य एवं सुधन्वा चौहान के इतिहास से हम अनजान थे। मठाम्नाय – महानुशासनम : यह ग्रन्थ आदिशंकराचार्य द्वारा प्रणीत है तथा श्रृंगगिरी (श्रृङ्गेरी) मठ के लिए प्रमाणभूत है। इसमें भी राजा सुधन्वा चौहान का उल्लेख आदि शंकराचार्य जी ने किया है।

राजा सुधन्वा चौहान ने उत्तर, दक्षिण, पूर्व एवं पश्चिम यूरोप तक चारों दिशाओं को जीता था। युद्ध कला में पारंगत तलवार से वार की गति बिजली से भी तेज थी । आदि शंकराचार्य से ज्ञान प्राप्त कर रणविद्या में पारंगत हुए थे सुधन्वा सम्राट, साथ ही वेदों से 18 युद्ध कलाओं के विषयों पर ज्ञान अर्जित किया था।

उनको २० प्रकार की घुड़सवारी युद्धकला आती थी। हाथी, अस्त्र-शस्त्र संचालन, व्यूह रचना, युद्ध नेतृत्व, आदि तकनीक के ज्ञाता थे। युद्ध के कई तरीकों में पारंगत थे जैसे मल्ल युद्ध, द्वन्द्व युद्ध, मुष्टिक युद्ध, प्रस्तरयुद्ध, रथयुद्ध, रात्रि युद्ध।

सम्राट सुधन्वा व्यूह रचना में भी पारंगत थे जिससे सेना को व्यवस्थित ढंग से खडा किया जाता था। इसका उद्देश्य अपनी कम से कम हानि में शत्रु को अधिक से अधिक नुकसान पंहुचाना होता था। इनमें से कई तकनीक सुधन्वा महाराज अपने शासनकालीन जीवनकाल में इस्तेमाल में लाये जैसे बाज़, सर्प, बज्र, चक्र, काँच, सर्वतोभद्र, मकर, ब्याल, गरूड व्यूह आदि का इस्तेमाल उन्होंने युद्ध में किया था।

कई मूर्ख अज्ञानी आदि शंकराचार्य को अनर्गल गाली देते है। अगर जगतगुरु आदि शंकराचार्य नहीं होते तो भारत को सुधन्वा चौहान जैसा विश्व विजय करनेवाला भी नहीं मिलता।

सम्राट सुधन्वा चौहान ने विश्व विजय करने के लिए अनंत युद्ध लड़े थे। इनका शौर्य और पराक्रम केवल भारतीय इतिहास में ही नहीं मिलता जबकि विश्व इतिहास में भी शामिल है। दुःख का विषय है कि भारत में ऐसे सम्राट के इतिहास पर पाबंदी है क्योंकि भारत सरकार के अनुसार यह केवल बुद्ध की धरती है, यहाँ युद्ध का कोई स्थान नहीं।

राजा सुधन्वा चौहान से विश्व विजयी सम्राट सुधन्वा चौहान -:

सम्राट सुधन्वा चौहान ने सन ४९८ (498) ई.पूर्व ग्रीस के शासक थाईमोएतेस (Thymoetes) से युद्ध किया था। इस युद्ध का वर्णन “Battle of Thunder” के नाम से किया जाता है। कहा जाता हैं इस युद्ध में ग्रीस एथेंस की भूमि में दोनों सेनाओं ने इस तरह युद्ध लड़े थे जैसे बिजली आसमान से गिरकर भूमि से टकराती है।

सुधन्वा चौहान की सेना ने थाईमोएतेस (Thymoetes) को पराजित कर एथेंस ग्रीस पर कब्ज़ा किया एवं थाईमोएतेस (Thymoetes) के अधीन जितने भी राज्य आते थे जैसे बुल्गरिया, मैसिडोनिया, एवं ग्रीस जो उस समय दक्षिण यूरोप की राजधानी हुआ करता था उन सबको जीत लिया था।

दक्षिण यूरोप विजय करने के लिए एथेंस पर विजय प्राप्त करना आवश्यक था। एथेंस par विजय कर सुधन्वा चौहान ने सनातन वैदिक ध्वज लहरा कर विश्व विजय के लिए मुहिम छेड़ी थी।

सुधन्वा ने धर्म युद्ध के नियमो का पालन कर किसी भी देश की संस्कृति को ध्वस्त नहीं किया। एक हिन्दू राजा की दुश्मनी देश के राजा से होती थी तो प्रजा को हानि नहीं पहुंचाते थे, देश विजय करने के पश्चात वहाँ की नारियों का शील भंग नहीं करते थे। जिस देश को विजय करते थे उस देश की प्रजा के साथ भी संतान तुल्य व्यावहार करते थे।

वहीं दूसरी ओर इतिहास गवाह है कि जो भी आक्रमणकारी भारत लूटने आये उन्होंने प्रजा का मान भंग किया, नरसंघार किया, मंदिर तोड़े एवं संस्कृति को ध्वस्त किया।

असुरोंका संक्षिप्त परिचय‬:-

सन ४९० (490) ई.पूर्व नबोनीदस अश्शूर साम्राज्य के अश्शूर राज्य का राजा था। इतिहासकार श्रीविश्वनाथ काशीनाथ राजवाड़े के अनुसार “असुर वे हैं जिन्हें यूरोपीय “असीरियन”कहते हैं ! प्राचीन यूनानी उन्हें “असुरियन “कहते थे और स्वयं अपने को “अश्शूर ” कहते थे । प्राचीन आर्य इन्हें “असुर ” और उनके देश को “असूर्या” अथवा “असूर्य”कहते थे, ‘असूर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसावृताः ‘! भारतीय ‘श’ के स्थान पर ‘स’ उच्चारण करते थे।

‪असुरों का साम्राज्य असीरिया (असूर्या) था। असीरिया फरात और दजला नदियों के मध्य अवस्थित था जो मेसोपोटामिया और बेबिलोनिया के ध्वंसावशेषों पर खड़ी थी।

असुरों की बर्बरता‬:-

असुर कितने बर्बर और क्रूर थे इसके अधिक विस्तार की आवश्यकता नही, केवल असुर नासिर पाल ८५९ ई पू के अभिलेख से ही ज्ञात हो जाएगा। सन ५५६ ईस्वी में नाबोनिदस अश्शूर ने माहिष्मती साम्राज्य पर आक्रमण किया था और यह अश्शूर राज का अंत कहलाया।

सुधन्वा चौहान की सेना से विश्व के सभी शक्तिशाली साम्राज्य भी थर्राते थे। अश्शूर राज नाबोनिदास की ५ लाख की विशाल सेना को परास्त कर सुधन्वा चौहान ने अश्शुरों को यूफ्रेटस नदी के पार तक खदेड़ा। सुधन्वा चौहान ने अब मेसोपोटामिया, बेबीलोनिया, एलाम, फ्रूगिया, पर्शिया एवं यूफ्रेटस नदी एवं मिस्र (Egypt) टाईग्रीस नदी के पार सनातन वैदिक ध्वज को लहराकर इस अश्शूर राज्य को अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया।

इसके पश्चात अश्शूर साम्राज्य का अंत तो नहीं हुआ परन्तु ३ पीढ़ी के बाद अश्शूर साम्राज्य फिर तैयार हुआ। सुधन्वा चौहान के बाद राजा चाहमान ने अश्शुरों पर विजय पाकर अश्शुरो का समूल नाश कर दिया था।

इस बात का उल्लेख “The History of Archaeology Part 1”, “Babylonia from the Neo-Babylonian empire to Achaemenid rule” इन दो पुस्तकों में लिखा हैं।

इतिहासकार Hurst, K. Kris लिखते हैं “The sword of South Asian King dynasty of Luna defeated Assyrian ruler Nabonidas and the King of South Asia became the reasons for the decline and downfall of Assyrian Kingdom” (चन्द्र का अन्य नाम लूना है। चन्द्रवंशी राजा का उल्लेख किया गया है। दक्षिण एशियाई राज्य का उल्लेख है जो भारतवर्ष है)।

सुधन्वा चौहान ने फ्रांस, रूस, सर्बिया, क्रोएशिया, स्पेन, ब्रिटेन, जर्मनी, प्रशिय एवं समूचे यूरोप पर भगवा ध्वज लहराकर भारतवर्ष का साम्राज्य यूरोप तक फैलाया था।

विश्व विजयी सम्राट सुधन्वा चौहान ने अफ्रीका, यूरोप, एशिया (चीन, जापान, इत्यादि) समेत समूल धरा पर सनातन धर्म ध्वजा फहराकर भारतवर्ष का साम्राज्य विस्तार किया था। आदि शंकराचार्य के निर्देषानुसार अश्शुरो, यवनों एवं यूनानीयों के अत्याचारों से भारत एवं पृथ्वीवासियों को मुक्ति दिलाकर सुधन्वा चौहान एक पराक्रमी शौर्यशाली योद्धा बने थे।

सम्राट सुधन्वा ने यूरोप पर किसी प्रकार का अत्याचार नहीं किया। प्रजाओं की रक्षा एवं सेवा सम्राट सुधन्वा का पहला कर्तव्य था। विश्व विजयी सम्राट होने के बाद भी प्रजाओ पर किसी तरह का कर लगान आदि नहीं लगाया। प्रजा अपनी इच्छानुसार कर देते थे वे राज्य कोष में मूल्य देते थे।

सम्राट सुधन्वा चौहान मूल्य देकर किसान से खाद्य सामग्री लिया करते थे।

सम्राट होते हुए भी अपने पद का दुरूपयोग नहीं किया। राजा होने के नाते वह चाहते तो किसान को बिना मूल्य चुकाए खाद्य सामाग्री ले सकते थे परन्तु ऐसा न करके वे किसान को पारिश्रमिक देकर खाद्य सामग्री लेते थे। यह एक महान सम्राट के गुण हैं यह सीख आदि शंकराचार्य की थी तभी राजा सुधन्वा इतने महान हुए ।

सुधन्वा चौहान: उल्लेखनीय भारतीय इतिहास

1. चौहान राजवंश के एक और इतिहासवेत्ता डॉ. दसरथ शर्मा नें अपनें ग्रन्थ ‘Early Chauhan Dynasties’ में अभिलेखीय साक्ष्यों के आलोक में राजा वासुदेव से लेकर उनकी २२वीं पीढ़ी में आने वाले दिग्विजयी दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान (तृतीय) तक की एक सूची प्रस्तुत की है। डॉ. दसरथ शर्मा की इस सूची के अनुसार वासुदेव का राज्यारम्भ ईसवी सन ५५१ तथा दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान का राज्यावसान ईसवी सन ११९२ में हुआ था। इस अवधि में कुल २२ पीढ़ी के राजाओं ने ६४१ वर्ष तक राज्य किया।

2. प्रसिद्ध राजस्थानी इतिहासकार श्यामल दास ने अपने ‘वीर विनोद’ नामक इतिहास ग्रन्थ में माहिष्मती पर राज्य करने वाले चौहान राजवंश की एक प्राचीन सूची प्रस्तुत की है जिसमें प्रथम शासक चाहमान की छठवीं पीढ़ी में सुधन्वा तथा ४१ वीं पीढ़ी में वासुदेव आतें हैं। इस ग्रंढ़ की प्रथम आवृत्ति १८८६ ई० में प्रकाशित हुई थी।

3. श्रृंगगिरी (श्रृङ्गेरी) मठ के ग्रन्थों में भी प्रमाणभूत है। इनमें भी राजा सुधन्वा चौहान का उल्लेख आदिशंकराचार्य जी ने किया है )।

4. पुस्तक शंकर दिग्विजय

आजकल के मैकोले मानसपुत्रों को ऐसा इतिहास इसलिए नहीं पढाया जाता हैं क्योंकि काले अंग्रेजो के प्रोडक्शन हाउस बंद हो जाएँगे एवं भारतीय फिर से छत्रपति महाराज शिवाजी और महाराणा प्रताप बनने लगेंगे। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) ऐसे इतिहास पर रोक लगाये हुए है और चौहान वंशीय एवं अन्य कई राजाओ की लिपि तक को गायब करवा दिया हैं। इसी कारण आज भी इस्लाम में तैमूर, बाबर, टीपू, रज़िया सुल्तान जैसे हिन्दू विरोधी, मूर्ति-ध्वंसक तो जन्म ले रहे हैं परन्तु एक भी चौहान राजा, काल्भोज (बप्पा रावल), भोज परमार, छत्रपति शिवाजी, नागनिका, नायिकी देवी, रानी दिद्दा जैसे नायक नायिकाएँ हिन्दू धर्म मैं जन्म नहीं ले पा रहे हैं।

–आदित्य वाहिनी शिकोहाबाद

2 Comments

2 Comments

  1. vikas sanjay kate

    August 31, 2020 at 9:43 am

    sudhanva chauhan ke bare me aur jankari mil sakti hai kya

    • कुछ नासमझ वामपंथी राजपूतों को विदेशी साबित करने कि चेष्टा से इन्हें 8 विं या 12विं शाताब्दि मे आया घोषित करते हैं। उनके मुंह पर ये जोरदार तमाचा है।
      जय क्षत्रिय धर्म
      जय हिन्द वन्दे मातरम

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