तटस्थ होकर मत देखिये, बीड़ा उठाइये, संकल्प लीजिए कि मुझे भारत को हिंदुराष्ट्र करना है । तटस्थ होकर सभी देखतें हैं । क्या मेरे घर भोजन बनेगा ? घर के जितने सदस्य हैं सभी तटस्थ होकर यही कहेंगे कि क्या मेरे घर भोजन बनेगा ? तो नहीं ही बनेगा। अगर घर में भोजन बनाना है तो भोजन बनाने का उपक्रम करो । आखिर हम आप ही तो हिन्दू राष्ट्र लाएंगे ना ?
अभी तो चार्वाक राष्ट्र भी नहीं है, नास्तिकों जैसा राष्ट्र भी नहीं है । चार्वाकों ने, नास्तिकों ने क्या कहा आपको मालूम है ? “ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत” डाका डालकर, चोरी कर के नहीं.. ऋण लेकर । ऋण को चुकाने की विवशता है और घृतं पीवेत … कोका कोला , पेप्सी ,और शराब पीने की बात नहीं कही । अभी तो भारत में डाका डालो , लूटो और घी नहीं शराब पियो ।अभी तो भारत में डाका डालो , लूटो और घी नहीं शराब पियो | अभी तो नास्तिकों वाला स्वच्छ शासनतंत्र भी भारत को सुलभ होना चाहिए वो भी प्राप्त नहीं है । हिन्दू राष्ट्र , वैदिक राष्ट्र , सनातन राष्ट्र तो बहुत दूर है ।लेकिन लावेगा कौन ? हम आप ही तो लाएंगे । जैसा आपने बताया तो वेदना है , भावना है तो जुट जाइये|
आप जैसे 100, 200 व्यक्ति हो गए तो हिन्दू राष्ट्र बनने का मार्ग प्रशस्त होगा ।आप भविष्यवक्ताओं से सम्पर्क मत कीजिए, तटस्थ होकर मत देखिए। आपके मन में जो “हिन्दू राष्ट्र भारत हो” उसको क्रियान्वित करने का प्रकल्प अभी से प्रारम्भ कीजिए ।
हमलोगों से सम्पर्क साधिये क्यों नहीं होगा ! सत्तर साल पहले हमारा देश कौन सा देश था, विदेशियों के शासनकाल में भी ? सत्तर साल में ऐसी क्या विसंगति हो गयी ? सत्तर साल की दिशाहीनता को हम उखाड़ कर फेंक सकतें हैं, किनारे कर सकतें हैं
हमारे पास जितना बड़ा बल है , उतना बड़ा बल किसी के पास नहीं है। दर्शन , विज्ञान और व्यवहार तीनों मोर्चे पर हमारा सिद्धांत शत प्रतिशत चरितार्थ है । एक मैं चुटकुला सुनाता हूँ …… बुश महोदय दोबारा अमेरिका के राष्ट्रपति होने वाले थे , उन्होंने एक वक्तव्य दिया मुझे लगा कि क्रिस्चियन जगत उनके ऊपर टूट पड़ेगा , लेकिन कुछ प्रतिक्रिया नहीं हुई । बुश महोदय ने कहा कि मैं जन्मजात क्रिस्चियन हूँ , बाइबल में आस्था रखता हूँ लेकिन बाइबल ने जो सृष्टि का विज्ञान बताया वो बिल्कुल गलत है , इतने अंशों में मैं बाइबल को नहीं मानता हूँ ।
बुश जी का यह वचन है लेकिन कोई माई का लाल ऊँचा से ऊँचा वैज्ञानिक ये कह सकता है की जन्मजात आर्य हूँ , सनातनी हूँ , वैदिक हूँ , हिन्दू हूँ । गीता को प्रमाण मानता हूँ , गीता में आस्था रखता हूँ लेकिन गीता में जो सृष्टि का जो विज्ञान है उससे सहमत नहीं हूँ | विज्ञान को भी दिशा देने की क्षमता हमारे आध्यात्म और शास्त्रों में है । आखिर बुश महोदय को कहना पड़ा कि सृष्टि के संबंधों में बाइबल की मान्यता अपनाने योग्य नहीं है । कौन विचारक कह सकता है , गीता में तो सात सौ श्लोक हैं, छोड़िये सात सौ श्लोक की चर्चा ।
ऋग्वेद के दसवें मंडल में नासदिसूक्तम के केवल सात श्लोक हैं , सात सौ नहीं केवल सात मंत्र हैं । उन सात मंत्रों में जो सृष्टि की रचना का उसके स्वरूप का जो वर्णन किया गया है उसका भी खंडन कोई वैज्ञानिक नहीं कर सकता है । बल्कि वैज्ञानिक गुप्त या प्रकट उससे लाभ उठातें हैं
अभी आपको नहीं मालूम होगा हमारे देश के संस्कृत के जिन विद्वानों को भारत में सम्मान नहीं मिलता , सुविधा नहीं मिलती नासा उनका उपयोग करके आविष्कार करता है । आविष्कार करतें हैं हमारे विद्वान, मुहर नासा का लगता है |
इसका अर्थ स्पष्ट है कि पूरा विश्व इस बात को जानता है ,की विश्व को अर्थशास्त्र , कामशास्त्र , धर्मशास्त्र , मोक्षशास्त्र , नीतिशास्त्र , चिकित्सा का विज्ञान , वास्तु का विज्ञान , शून्य और एक का विज्ञान ये सब सनातनी वैदिक हिंदुओं से प्राप्त हुआ , आर्यों से प्राप्त हुआ । इतना बड़ा बल हमको प्राप्त है , हमारे सिद्धांत के सामने विश्व का कोई सिद्धान्त या तंत्र टिक नहीं सकता है । तो कमी क्या है ? हमारे सिद्धांत के अनुसार हमें शासनतंत्र प्राप्त नहीं है ,तो शासनतंत्र कौन लाएगा ?? हम आप ही तो लाएंगे ।
हिन्दू राष्ट्र के लिए तटस्थ होकर देखना बंद करिए तदर्थ होकर प्रयास करना प्रारंभ करिए
हर हर महादेव !!
परमपूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य श्री निश्चलानंद जी महाराज।