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सुब्रत की विजय नीरज को मोक्ष देगी

पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश की कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रही तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल यादव को भाजपा प्रत्याशी के रूप में एक तेज तर्रार नौजवान सुब्रत पाठक ने लोहे के चने चबवा दिए थे।

मतगणना के अन्तिम क्षणों तक वह नौजवान लगभग 12 हज़ार मतों से आगे चल रहा था। डिम्पल यादव की हार लगभग तय हो चुकी थी। अतः लखनऊ स्थित सत्ता दुर्ग से कन्नौज तक फोन खड़कने लगे थे।

परिणामस्वरूप मतगणना रुकवाई गयी थी। एजेंटों को बाहर खदेड़ दिया गया था और डीएम ने अचानक घोषणा कर दी थी कि डिम्पल यादव 20 हज़ार मतों से चुनाव जीत गयी हैं। विरोध की आवाज़ें समाजवादी सत्ता के दरबार में दबा दी गयीं थीं।

इस बार पुनः डिम्पल यादव के सामने वही सुब्रत पाठक चुनावी मैदान में उतरे हैं। समाजवादी चुनावी मशीनरी के सबसे महत्वपूर्ण 2 पुर्जे इसबार लगभग कबाड़ की स्थिति में हैं। क्योंकि मुख्यमंत्री योगी ने गुण्डों का जीना हराम कर रखा है। सत्ता का दबाव प्रभाव कन्नौज की चुनावी महाभारत से कोसों दूर तक कहीं दिखाई नहीं दे रहा है।

इसलिए इस बार कन्नौज की चुनावी लड़ाई सुब्रत पाठक की विजय के साथ सम्भवतः स्व.नीरज मिश्र की आत्मा को शांति और मोक्ष प्रदान करने की तैयारी करती दिखाई दे रही है। आप मित्रों मे से बहुत कम लोगों को वह घटना याद होगी। लेकिन कन्नौज की जनता नीरज मिश्र की हत्या भूली नहीं है।

वर्ष 2004 में लोकसभा चुनाव चल रहा था। समाजवादी पार्टी के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव उस समय सपा से लोकसभा प्रत्याशी थे। मुलायम सिंह यादव उस समय मुख्यमंत्री थे। भाजपा प्रत्याशी की तरफ से नीरज मिश्र नाम का नौजवान पोलिंग एजेंट था।

पांच मई 2004 को बाबा हरिपुरी इंटर कालेज मतदान केंद्र पर फर्जी मतदान को लेकर भाजपा और सपा कार्यकर्ताओं के बीच तीखी झड़पें हुई थीं। अगले दिन छह मई को भाजपा नेता नीरज मिश्रा का अपहरण करके हत्या कर दी गई थी।

सात मई को उनका बगैर सिर का शव ईशन नदी में मिला था। नीरज मिश्र का सिरकटा शव मिलने की खबर उनकी मां राधारानी मिश्रा को मिली तो वह अपने बेटे की मौत का गम सह ना सकी और अगले ही दिन उन्होंने भी प्राण त्याग दिए थे।

नीरज का सिर कभी मिला ही नहीं। हिन्दू धर्म में अंतिम संस्कार के समय कपाल क्रिया का महत्व सब जानते हैं। लेकिन अभागे नीरज मिश्र के शव की कपाल क्रिया कभी हो ही नहीं सकी।

बताते हैं कि अपने आका की इच्छानुसार नीरज के हत्यारे उनका कटा हुआ सिर लेकर अपने आका को दिखाने लखनऊ पहुंच गए थे। आज लोग इस घटना को भले ही भूल गए हों लेकिन उस समय देश की संसद में श्रद्धेय स्व. अटल बिहारी वाजपेयी क्रोध और क्षोभ के साथ गरजे थे। उन्होंने कहा था कि आज मेरी आँखों के सामने नीरज मिश्रा का कटा हुआ सिर घूम रहा है।

अटल जी की उस गर्जना से नीरज की हत्या देशव्यापी चर्चा का विषय बन गयी थी। अतः नीरज मिश्र हत्याकांड पर लीपापोती करना, नामजद हत्यारों को बचाना असम्भव हो गया था। परिणामस्वरूप 10 वर्ष बाद नीरज के हत्यारों को दंड मिला था।

अपर सत्र न्यायाधीश द्वितीय की अदालत ने नीरज मिश्र की हत्या के जघन्य अपराध में अशोक कुमार यादव, अवनीश कुमार यादव, मुन्नू यादव, पप्पू यादव, ग्राम मदारीपुर निवासी हरविलास यादव को धारा 302/149 में आजीवन कारावास और सभी को पांच-पांच हजार रुपये का अर्थ दंड लगाया। धारा 201 में पांच-पांच वर्ष की कैद और तीन-तीन हजार रुपये के अर्थ दंड की सजा सुनाई थी। सज़ा पाए हत्यारों का उपरोक्त परिचय स्वयं गवाही दे रहा है कि नीरज की हत्या क्यों किसने और किसलिए करवाई थी।

नतीजे में 2004 से 2014 तक कन्नौज लोकसभा क्षेत्र में समाजवादी पार्टी का एकछत्र राज चलता था। 2014 में राष्ट्रीय परिदृश्य पर धूमकेतु की तरह उभरे नरेन्द्र मोदी के साथ ही सुब्रत पाठक भी कन्नौज में महाबली बनकर उभरे थे और डिम्पल यादव को हार की कगार पर ले जाकर खड़ा कर दिया था।

इसबार परिस्थितियां सुब्रत पाठक की विजय का संकेत दे रहीं हैं। अतः कन्नौज में रह रहे अपने सभी मित्र परिचितों से कहिए कि 29 अप्रैल को कन्नौज में होने जा रहे मतदान में सुब्रत पाठक की विजय के लिए अपनी पूरी शक्ति के साथ प्रयास करें।

सुब्रत पाठक की विजय से ही कन्नौज में वह भगवा गर्व से फहराएगा जिस भगवे को कन्नौज में फहराने के लिए नीरज मिश्र ने अपने प्राण दे दिए थे। सुब्रत पाठक की विजय से ही नीरज मिश्र की आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त होगा।

– सतीश चंद्र मिश्र

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