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५१ राज करेगा? कब तक?

क्या आप भारत का वैश्विक राजनीति में स्थान जानते हैं?

भारत एक संस्कृति है उस की अपनी सभ्यता है। भारत को छोड़ कर विश्व के इतिहास में कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है, चक्रवर्ती सम्राट होने का अर्थात भूमण्डल का शासक एक ही राजसत्ता हो। परंतु भारतीय वांगमय मे ऐसा उल्लेख मिलता है, अनेकों बार यहाँ चक्रवर्ती सम्राट हुए है।

चक्रवर्ती सम्राट होने की प्रक्रिया मे “अश्वमेध यज्ञ” करने का विधान था, जिसके पूर्ण होने पर उसका कर्ता विश्व विजयी होकर चक्रवर्ती सम्राट घोषित होता था और वह वैश्विक सत्ता का एकमात्र शासन कर्ता।यद्यपि सत्ता के अनेकों केंद्र होने पर भी सब उसके अधीन होते थे। यह व्यवस्था “आर्य” कहलाती थी, जिसका मूलाधार “धर्म” था। इस व्यवस्था के अनुसार जिनका आचार नहीं होता उन्हें व्यवस्था से बाहर करके अनार्य की संज्ञा प्रदान होती। कालांतर मे उनका केंद्र ईजिप्ट बना। यहाँ एक भिन्न प्रकार के सत्ता केंद्र का उदय हुआ, वह “यहूद” कहलाया, जो विश्व विजयी होने की कामना करनें लगा।आगे चलकर उसमें भी विभाजन होगया, दोनों धड़े अपने मूल से मतभेद रखने लगे।एक अपनी पहचान मोहम्मडन के नाम से, दूसरा मसीही के नाम से प्रचारित करनें लगे।

पहले इनकी धारणा थी कि “बाहुबल”से विश्व विजयी हो जायेंगे और निरंतर कई शताब्दी लडाई लड़ते रहे परंतु सफलता नहीं मिली।

जब इन्हें यह समझ आया कि “बाहुबल” से लक्ष्य प्राप्ति नहीं होगी, फिर पूर्वकाल का पुनरावलोकन करने पर इन्हें समझ आया कि धर्म के बल से पूर्वकाल मे चक्रवर्ती हुए हैं, फिर यह अपने अपने धर्म के प्रचार प्रसार मे अपनी सारी शक्ति लगा दी और धर्मों को आधार बना कर अग्रसर होने लगे और विश्व मे अपने धर्मों का विस्तार करनें लगे। देश के देश मे दोनों का साम्राज्य विस्तार पाने लगा।

भारत से पश्चिम मे जितना भूभाग, ईरान से लेकर आधा एशिया, अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका, कैनाडा, आस्ट्रेलिया आदि भूभाग मे यह दोनों फैल गये।

मसीही धड़ा दूसरे धड़े मोहम्मडन से चालाक निकला यहाँ उसने विश्व मे सत्तारूढ़ होने के लिये राजनीति का एक नया अत्यंत अत्यंत खतरनाक सिद्धांत पैदा कर दिया, जिसको नाम दिया, #डैमोक्रेसी# जिसका आधार बनाया बहुसंख्यक का शासन, अर्थात जो 51हो सत्ता उसकी, #51will rule# जो बड़े शातिर ढंग से येन केन प्रकारेण पूरी दुनिया से स्वीकार भी करवा लिया।

धर्म की चादर से ढकी हुई इनकी राजनितिक महत्वाकांक्षी रणनीति षड्यंत्र, मक्कारी को (किन शब्दों मे इसकी भर्त्सना, निंदा की जाये #डैमोक्रेसी# की हम असमर्थ हैं, यह सिद्धांत अवैज्ञानिक सर्वनाशी है ) कार्लमार्क्स ने पकड़ लिया।#धर्म# शब्द की राजनीतिक गहराई के फरेब को वह पकड़ पाया परन्तु #डैमोक्रेसी# रूपी असुर को नहीं पकड़ पाया, वर्तमान युग की यह भयंकरतम चूक कर गया कार्ल मार्क्स।

अब यहाँ से शुरूआत होती है, राजनीतिक दखल कार्लमार्क्स के “”कम्युनिज़्म” की।

दो इज़्म पहले ही मौजूद थे, ईस्लाम और क्रिस्च्यनिटी इन दोनों का रास्ता उसने सफलतापूर्वक रोका विजयी भी हो जाता परंतु वह अपने उद्देश्य को भूलकर ( कार्लमार्क्स का उद्देश्य इन दोनों को समाप्त करना था) स्वयं विश्वविजयी होने का लक्ष्य बना लिया और अपनी सत्ता स्थापित करनें लगा ।

दुनिया की लगभग आधी आबादी पर अपना वर्चस्व कायम कर लिया। इस लड़ाई मे मोहम्मडन और मसीही दोनों एक होकर कंधे से कंधा मिला कर कम्यनिस्टो से लड़े और लगभग सात-आठ दशक तक लड़ते रहे, कम्युनिस्टो के भी दो धड़े होगये रूस और चीन, यहाँ भी इनकी विश्व पर अकेले बाहुबल से सत्तारूढ़ होने की महत्वाकांक्षा आड़े आगई चीन सैद्धांतिक गद्दारी कर गया, रूस अकेला पड़ गया और थक गया ।

इसी समयावधि मे रूस का झंडा गोर्बाचेव के हाथ आया वह क्रिश्चियनिटी की तरफ झुक गये क्योंकि वह मूल रूप से क्रिश्चियन थे और वेटिकनसिटी पधारे इस तरह कार्लमार्स्क के इज़्म के एक धड़े का क्रिश्चियनिटी से समझौता हो गया।मिडिया मंथन चलने लगा (मिडिया माने क्रिश्चियनिटी,) निष्कर्ष निकाला, कम्युनिज़म का डाउनफाल होगया।

घोर मिडिया मंथन, निष्कर्ष के बाद, चीन का एक लाईन का बयान “रूस का डाउनफाल हुआ है, कम्युनिज़म का नहीं। चीन अपनी शक्ति सामर्थ्य बढ़ाने मे लगा हुआ है।

राजनीतिक दर्शन मे जब तीन प्रतिद्वंदी होते हैं तब दो आपसमे मिल जाते हैं यह सोच कर की तीसरे को समाप्त करनें के बाद जब दो बचेगे तब फैसला कर लेंगे कौन शक्तिशाली है । अंत मे जो बचेगा सत्ता उसकी होगी इस बात को दोनों जानते हुए भी अनजान बने रहते है।

जैसे ही सोवियत संघ का पराभव हुआ, वैसे ही “चीनी” टिप्पणी की अनदेखी कर भयंकर राजनीतिक भूल करते हुये कृश्चियनिटी और इस्लाम आपसमे भिड़ गये और वर्तमान मे अघोषित युद्ध लड़ रहे हैं जो स्पष्ट दिखाई दे रहा है इस युद्ध की संभावना को पहले ही जानते हुए पिछले पचास वर्षो से दोनों अपनी तैयारी कर रहे थे पिछले विश्व युद्ध के बाद कृश्चियनिटी का झंडा यूरोप (इंग्लैंड) के हाथ से निकल कर अमेरिका के हाथ आया।इस्लाम का झंडा मक्का के हाथ मे है।

वर्तमान मे इस्लाम की ताकत तेल और इस्लाम को मानने वाली मूर्ख जनसंख्या बल है। कृश्चियनिटी की ताकत भौतिक विज्ञान के साथ कूटनीतिक सूझबूझ है। बीस-पच्चीस साल पीछे चलकर देखने से स्पष्ट होजायेगा, जब फिलीस्तीन, लेबनान, सीरिया, ईजिप्ट सबने एक साथ मिलकर ईस्राइल पर हमला किया तब अमेरिकी फौज ने रातों रात सबको धूल चटा दिया तब मक्का से एक स्टेटमेंट आया था की हम “तेल”का इस्तेमाल हथियार की तरह करेंगे । इसके उत्तर मे अमेरीकन प्रेसिडेंट फोर्ड का बयान आया, खाओगे क्या, मक्का होगया ठंडा।इस्लामिक तेल की ताकत का अंदाजा सभी को है।पच्चीस साल पहले की मक्का के बयान का जवाब आज अमेरिका दे रहा है तेल की कीमत घटाकर। यदि ऐसा ही चार पांच साल और चलता रहा तो इस्लाम की सारी तेल की ताकत निचुड़ जायेगी।

अब अमेरिका अर्थात कृश्चियनिटी, इस्लाम के हाथों को पीठ के पीछे बांध चुका है, लेकिन मुँह खुला है, इसी से इस्लाम को समाप्त करनें मे हिचक रहा है, मुँह खुला होने से इस्लाम मरते समय चिल्लायेगा मदद के लिए चीन से; चीन इंतजार कर रहा है, वह आयेगा भी मदद के लिए पर अपनी शर्तों पर। चीन की नीति है अफगानिस्तान, पाकिस्तान से होते हुए मिडिल ईस्ट (इस्लाम) को रौदता हुआ यूरोप को निगलता हुआ अमेरिका (कृश्चियनिटी) पर झंडा गाड़ देगा और विश्व विजयी हो जायेगा। पूरी दुनिया मे कम्युनिस्ट राज होगा। यह तीनों इज्मो का संभावित सार संक्षिप्त वैश्विक राजनीतिगत आंकलन है।।

अब देखते हैं वैश्विक राजनीति मे भारत का स्थान और भारत के अंदर की राजनीति ।

1: समाजवाद(कृश्चियनिटी)

२: मोहम्मडन(इस्लाम)

३: साम्यवाद(कम्युनिस्ट)

४: हिंदूईज़म(हिंदू)

उपरोक्त चार प्रकार की राजनीतिक विचार धारा भारत मे अपने अपने राजनीतिक वर्चस्व के लिए युद्धरत हैं। इन चारों का प्रतिनिधित्व वर्तमान मे कौन कर रहा है? कुछ काल पहले चारों के चार प्रधान थे। 1947 देश विभाजन के बाद समाजवाद ( कृश्चियनिटी )और इस्लाम का प्रतिनिधित्व कांग्रेस कर रही है। कम्युनिस्ट अलग थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदू राजनीति का प्रतिनिधित्व कर रहा है।

कम्युनिस्टो की राजनीति थी की जबतक पूरे भारत मे इनका वर्चस्व नहीं हो जाए तब तक कांग्रेस को जीवित रखो, और RSS को समाप्त करनें मे लगे रहो, परंतु कम्युनिस्ट पाखंडी मक्कारी, सिद्धांत विहीन राजनीतिक मार्ग पर चल पड़े और कांग्रेस ने इनको विलासी, व्यभिचारी बना अपने रंग मे ढाल लिया इनकी राजनीति समाप्त प्राय है।

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य यह है की तीन राजनीतिक विचारधारा इकट्ठा हो कर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है हिंदुत्व विचार धारा से इसका प्रतिनिधित्व जो कर रहा है सर्वविदित है, यहाँ पर यह बता देना समयोचित होगा कि ग्लोबल स्वीकृत राजनीतिक फंडामेंटल 51 will rule यानी एक्यावन की संख्या मे जो होगा राज उसका होगा इसी नियम के अंतर्गत भारत मे धर्मपरिवर्तन का व्यापार चल रहा है। इसका संबंध विश्व की राजनीति से है।

आने वाले समय में भारत का रोल विश्व राजनीति मे मुख्य कारक तत्व होगा। वह चाहे कृश्चियन भारत हो, चाहे इस्लामी भारत हो, चाहे कम्युनिस्ट भारत हो, चाहे हिंदू भारत हो। यह जिसके साथ होगा विश्व विजयी वह होगा । दो ही शक्तियां शेष बचेंगी, कृश्चियनिटी और कम्युनिस्ट अर्थात चीन । इस्लाम समाप्त हो जायगा उसे कोई नहीं बचा सकता है, इसके पाप का घड़ा भर चुका है।इसके क्रूरता, अत्याचार, निर्दयता, और हिंसा से करोड़ों अरबों जीवों को घोर कष्ट सहन करना पड़ा है।

अत्यंत अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा यह है की हिंदू राजनीति किसके साथ जाए, जिसके भी साथ जायेगा हिंदू, हिंदू राजनीति, हिंदू संस्कृति, हिंदू सभ्यता समाप्त हो जायेगी । यह काल अपने अस्तित्व की रक्षा का है क्या हम अपनी रक्षा कर पायेंगे विना संगठन के ? भविष्य भयावह है, परंतु हताश निराश व भयभीत नहीं हैं। क्योंकि जो सनातन है वह सनातन ही रहेगा परंतु पुरुषार्थ अवश्यंभावी है।

इसलिए वर्तमान मे जो राजनीतिक “नेता” श्री श्री नरेंद्र मोदी हैं उनका प्राण पण से समर्थन, तन मन धन से करने का सभी हिंदुओं का कर्तव्य है।

जो स्वयं अपनी रक्षा मे तत्पर होता है भगवान उसकी सहायता स्वयं करते है।

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदत्मानं सृजम्यहम।।

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।

।।कृष्णार्पणंस्तु।।

साभार : पंडित स्वामी

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