FEATURED

जिहादी माओवादी बाय बाय

१९६२ में जब अमरीका और सोवियत संघ क्यूबा मिसाइल सङ्कट के दौरान तृतीय विश्वयुद्ध के सम्भावित खतरे का सामना करने में व्यस्त थे तब नेहरू के मित्र चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया । उस समय भारत में एक ही कम्युनिष्ट पार्टी CPI थी ।

चीन और सोवियत संघ के बीच स्तालिन के मरते ही सम्बन्ध बिगड़ना आरम्भ हो गया था । १९६२ के आक्रमण के कारण भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी CPI में दो गुट हो गये — सोवियत समर्थक CPI और चीन समर्थक CPM,१९६४ में यह विभाजन हुआ । किन्तु जब CPM ने भी सशस्त्र क्रान्ति के स्थान पर संसदीय रास्ता अपनाया तो बंगाल के नक्सलबाड़ी क्षेत्र से CPM के विरुद्ध नक्सल आन्दोलन आरम्भ हुआ ।

विचारधारा से CPM उसके बाद भी चीन की समर्थक बनी रही किन्तु सशस्त्र क्रान्ति नहीं चाहती थी क्योंकि साहस की कमी थी,उसके अधिकांश नेता खाते पीते वर्ग के थे जो ऐशो आराम का जीवन त्यागकर नक्सलों की तरह वनों की खाक छानना नहीं चाहते थे ।

कुछ लोग आज सरासर झूठ बक रहे हैं कि कन्हैया कुमार की पार्टी CPI माओवाद की समर्थक रही है । माओवाद का विरोध CPI ने किया तभी तो माओवादियों ने CPI त्यागकर CPM बनायी और जब उसमें भी सशस्त्र क्रान्ति का समर्थन नहीं मिला तो कई माओवादी गुट बना लिये ।

किन्तु आज की CPI मजदूर−किसान के लिये आन्दोलन करने वाली पार्टी नहीं रही,लालू यादव से मैत्री के बाद लालू के विरोधियों का CPI से पत्ता साफ किया गया और कालान्तर में CPI के अगड़े भाजपा में चले गये तथा पिछड़े लालू की पार्टी में । एक राजनैतिक शक्ति के रूप में CPI केवल बिहार में बची हुई थी जहाँ लालू से मैत्री ने CPI का सफाया कर दिया ।

अब कहने के लिये CPI है,उसका पूरा नेतृत्व बिकाऊ है,CPI की नीतियाँ CPM तय करती है जिसके पास तीन राज्यों में दीर्घकाल तक शासन करने के कारण पैसा है । CPM और CPI के ईमानदार नेताओं का सफाया हो चुका है,दोनों नें भ्रष्ट नेताओं का कब्जा है ।

१९६२ से पहले भी CPI की नीतियाँ गलत थीं किन्तु उसमें बहुत से नेता थे जो बिकाऊ नहीं थे । अब बंगाल में जिस ममता ने CPM से सत्ता छीनी उसी के पीछे CPM दुम हिला रही है!केरल में काँग्रेस से CPM की टक्कर रही है किन्तु अब राहुल को सांसद बनाने के लिये CPM पसीना बहा रही है ।

CPI के कन्हैया कुमार ने जीवन में कभी CPI के घोषित उद्देश्यों के लिये एक नुक्कड़ सभा तक नहीं की,जैसे कि मजदूर किसान के लिये । अब इन सभी पार्टियों का एजेण्डा पाकिस्तान की ISI तय करती है और राहुल जैसों के माध्यम से लागू कराती है ।

चीन ने चार दशक पहले माओवाद को त्याग दिया । पूरे संसार में भारत एकमात्र देश है जहाँ माओवाद बचा है,क्योंकि भारत का माओवाद केवल एक मुखौटा है देशविरोधी शक्तियों का । दुर्भाग्य है कि भारत का पूरा विपक्ष आज राष्ट्रविरोधी बन चुका है ।

इसका मुख्य कारण माओवाद या चीन नहीं है,हालाँकि चीन भारत को कमजोर करने वाली शक्तियों की पीठ ठोकने का एक भी अवसर नहीं छोड़ता । विपक्ष के राष्ट्रविरोधी चरित्र का असली कारण है तुष्टीकरण —

— तुष्टीकरण उस समुदाय का जो अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ना नहीं चाहता था किन्तु तुर्की के खलीफा की गद्दी छिनी तो तुर्की से सौ गुना अधिक खिलाफत आन्दोलन भारत में हुआ!

— तुष्टीकरण उस समुदाय का जिसने उस समय जिन्ना का समर्थन नहीं किया जब जिन्ना काँग्रेस के साथ मोर्चा बनाकर अंग्रेजों से लड़ रहे थे,किन्तु १९३७ में नेहरू की अध्यक्षता वाली काँग्रेस द्वारा विश्वासघात के बाद जब जिन्ना ने पाकिस्तान की माँग का समर्थन कर दिया तो जिन्ना रातोरात सर्वाधिक लोकप्रिय मुस्लिम नेता बन गये!

जिस देश में इस किस्म का वोटबैंक रहेगा वहाँ राष्ट्रविरोधी नेता भी पनपते रहेंगे ।

इस्लामी खलीफा के पद को पुनः बहाल करने की माँग बहुत से मुस्लिम देशों में बढ़ने लगी है । बगदादी के ISIS का भी यही लक्ष्य है । भारत की पाठ्यपुस्तकों में यह नहीं पढ़ाया जाता कि भारत को पूर्ण इस्लामी देश बनाने के लिये मक्का और तुर्की के खलाफाओं ने अनगिनत प्रयास किये । ७१२ ईस्वी में सिन्ध पर कासिम का आक्रमण मक्का के खलीफा के आदेश पर ही हुआ था ।

विजयनगर सम्राज्य को नष्ट करने के लिये मुस्लिम राज्यों को तुर्की के खलीफा ने ही सर्वोत्तम किस्म के तोपखाने दिये थे!पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों की पराजय नहीं होती तो भारत एक हिन्दू राष्ट्र बन गया होता और अंग्रेजों का गुलाम नहीं बनता । अहमदशाह अब्दाली ने खुलकर जेहाद का नारा दिया और भारत के सभी प्रमुख मुस्लिम शासकों ने अब्दाली की सहायता में अपनी सेनायें भेजी ।

मुल्ले कितनी भी गंगाजमुनी दोस्ती की सतही बात करें,सभी हिन्दुओं का सफाया करके ग़ज़वा−ए−हिन्द करना पैगम्बर का आदेश है जिसे लागू करना सभी मुसलमानों का अनिवार्य कर्तव्य है । अरब शेखों का पैसा ही भारत के नेताओं को देशद्रोही बनाता है । चीन को भी पेट्रोलियम चाहिए । अतः यह संयोग नहीं है कि जेहादियों और माओवादियों के तार आपस में जुड़े हैं ।

इन सबका एकमात्र लक्ष्य है भारत का नाश । भारत में जब से इस्लाम आया है तब से जेहाद उसका प्रमुख लक्ष्य रहा है । हिन्दुओं के साथ शान्तिपूर्ण तरीके से वे तभीतक रह सकते हैं जबतक उनमें लड़ने की शक्ति नहीं है ।

तो जब वे शक्तिशाली होकर हिन्दुओं का कत्लेआम न करने लगे तबतक हिन्दुओं को चुपचाप प्रतीक्षा करनी चाहिये?

****************

समाधान :—

अभी बैलट से जवाब दें,बाद मे वे बुलेट का जवाब चाहेंगे ।

गलत सुझाव से गैर−इस्लामी देशों में भी हिन्दू−विरोध बढ़ेगा । सही उपाय हैं —

यूनीफॉर्म सिविल कोड,

इस्लामी शिक्षा संस्थाओं की निगरानी ताकि उन्मादी शिक्षा न दी जाय,

उनके अल्पसंख्यक होने की भरपाई हिन्दू क्यों करें? — क्योंकि हिन्दू राज में वे कभी नहीं रहे अतः अपनी दुर्दशा के लिये स्वयं जिम्मेवार हैं,लूटपाट के सिवा कुछ सीखा नहीं,

विदेशी फण्डिंग पर रोक,

आतंकियों का सफाया उसी तरह किया जाय जिस तरह राजीव गाँधी ने पंजाब को शान्त किया,

देशद्रोही नेताओं और समर्थकों के समस्त नागरिक अधिकार छीने जाय और सारी सम्पत्तियाँ जब्त कर लीं जाय,

सभी सम्प्रदाय वालों पर दो से अधिक बच्चे होने पर भारी जनसंख्या−टैक्स वसूला जाय,

आदि−आदि ।

यह सब करेंगे तो वे स्वयं पागल होकर विद्रोह पर उतर आयेंगे और तब सैन्य कार्यवाई द्वारा विद्रोहियों का सफाया किया जाय तो किसी देश को विरोध करने का बहाना नहीं मिलेगा ।

– विनय झा

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Most Popular

राष्ट्र को जुड़ना ही होगा, राष्ट्र को उठना ही होगा। उतिष्ठ भारत।

Copyright © Rashtradhara.in

To Top