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देस के लाल कैसे बन गये लाल ग़ुलाम

बड़े दुःख के साथ स्वीकार करना पड़ रहा है कि इस देश का मानसिक धर्म परिवर्तन सफलता पूर्वक किया जा चुका है | लाल गैंग अपने ईसाई – कसाई साथियों के साथ मिलकर अपना कार्य लगभग पूरा कर चुकी है |

पिछले दो सप्ताह से यही देख रहा हूँ और इसी पीड़ा को जिए जा रहा हूँ | मालों में सजे पर्वताकार क्रिसमस ट्री और ५०० रूपये भाड़े पर सैंटा बने छुनछुने के साथ, सेल्फी के लिए बच्चे से लेकर बूढ़े तक मरे पड़े थे | कल रात नया साल लाने की कोशिस में तो दारु का नाला ही बह निकला | नाचने वालों में १६ वर्ष की किशोरिओं से लेकर ८० साल के भांड बूढ़े तक थे | यही समय की धारा है | जो शराब – शबाब और कबाब से अभी पथभ्रष्ट नहीं हुए हैं वह अपने मानसिक धर्म परिवर्तन का प्रमाण देने के लिए आज तड़के ही मंदिर पहुँच गए हैं |

चर्च वाले मिशन २०५० पर कार्य कर रहे हैं | पहले अंग्रेजी नव वर्ष को जनमानस में स्थापित किया गया | इसमें शासन तंत्र और धनाड्य वर्ग पूर्ण सहयोगी था | कार्पोरेट और मीडिया ने इनका जमकर साथ दिया | सन २००० के आस – पास तक अंग्रेजी नव वर्ष पूर्ण स्थापित हो चुका था | अगला मिशन था क्रिसमस | जिसपर पिछले बीस वर्षों से जमकर कार्य किया गया | आज क्रिसमस भी लगभग स्थापित हो चुका है | लगभग सभी घरों तक क्रिसमस ट्री किसी न किसी रूप में पहुँचा दिया गया है | यह पढ़े – लिखे कहलाने वालों की आदत में आ चुका है और कम पढ़े – लिखे लोगों के लिए आधुनिकता का पर्याय बन चुका है |

अब हैलोवीन पर कार्य हो रहा है ..महानगरों में लगभग स्थापित किया ही जा चुका है | अगले दस वर्ष में आप क्रिसमस की तरह हैलोवीन भी मना रहे होंगे | फिर क्या बचेगा ..ईस्टर और गुड फ्राइडे …सरकार और कम्पनियाँ अवकाश दे ही रही है | प्रत्येक गली- माल को सजावट और आफर से पाट दिया जाएगा और आप २०५० में गुड फ्राइडे पर स्वतः चर्च पहुँच जाएंगे |

इस प्रकार चर्च पूरे भारत को ईसाई बनने के अपने मिशन में सफलता के मार्ग पर गतिमान है | शासन, बड़े व्यापारी, बॉलीवुड, मीडिया ..क्रिकेटर जैसे तमाम लोग जाने – अनजाने में इनके सहयोगी हैं | इस चक्र को रोका जा सकता है | पर उसके लिए रणनीति और पैसा चाहिए | लेख, कविता और व्याख्यान समाज में जागरूकता ला सकते हैं पर जमीन पर कार्य के लिए तन, मन और धन तीनों चाहिए | हिन्दू त्योहारों के नाम पर मात्र होली और दिवाली बचे हैं, शेष पर्व समाज में अपनी आखिरी सांसे गिन रहे हैं |

जब हम किसी बच्चे से हिन्दू नव वर्ष की बात करते हैं तो प्रश्न आता है कि, “क्या होता है हिन्दू नव वर्ष पर ?” | जिसका हमारे पास उचित उत्तर तक नहीं होता है | क्या हम हिन्दू नव वर्ष पर मालों को वन्दनवार से पाट सकते हैं ? क्या हम इसी प्रकार हर स्थान को जगमगाती रोशनी से नहला सकते हैं ? क्या हम हर मोहल्ले में सांस्कृतिक आयोजन करवा सकते हैं ? क्या हम हिन्दू नववर्ष पर बड़े – बड़े भंडारे आयोजित कर सकते हैं ? क्या हम इसी प्रकार विराट आतिशबाजी करवा सकते हैं ? इन सबका उत्तर “ना” है और वह भी तब जब देश में हिन्दू समाज के पास सारे संसाधन हैं | धीरे – धीरे इन प्रश्नों का उत्तर “हाँ” में बदलना होगा, खाली – पीली बकवास और संस्कृति की दुहाई देने मात्र से नयी पीढ़ी को आकृष्ट नहीं किया जा सकता है |

अन्यथा अदम गोंडवी जी की पंक्तियां याद आती हैं….

जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ खुलाशा देखिए |

आप भी इस भीड़ में घुसकर तमाशा देखिए ||

– जनार्दन पांडे प्रचंड

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