FEATURED

भक्तों और धिम्मियों का महामुकाबला

महामुकाबले का बिगुल बज गया है। अजीब सी बात है कि अभी तक किसी को पता नहीं चल रहा कि चुनाव किस मुद्दे पर लड़ा जा रहा है। जब भी इस देश में चुनाव होते हैं, कोई न कोई केंद्रीय मुद्दा होता ही है। जैसे पिछले चुनाव में कांग्रेसी भ्रष्टाचार, तुष्टीकरण, लुंज पुंज सरकार और आतंकवाद के खिलाफ मोदी का मजबूत नेता और विकास का नारा था। वीपी सिंह के समय में गांधी परिवार की लूटखसोट मुख्य चुनावी मुद्दा थी, उसके बाद मंडल और कमंडल रहे। इंदिरा जी गरीबी हटाओ, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता को बचाने की लड़ाई थीं। आज क्या है, सिर्फ मोदी हटाओ! ये तो चुनावी मुद्दा नहीं हो सकता।

फिर दोनों पक्ष इतनी बेचैनी से क्यों लड़ रहे हैं जैसे यह जीवन-मरण का प्रश्न है। और यह लड़ाई चुनाव की घोषणा से ही शुरू नहीं हुई है। बल्कि पिछले पांच साल से कोई युद्धविराम ही नहीं हुआ। मोदी समर्थकों और विरोधियों ने लोगों से सहर्ष अपने व्यक्तिगत संबंध खराब किए या नहीं किए तो उनसे कन्नी काट ली जिनसे वैचारिक असहमति थी। अब यह वैचारिक असहमति इतनी तीखी क्यों हो गई है? इसलिए कि यह चुनाव किसी मुद्दे पर नहीं बल्कि शुद्ध विचारचारा की लड़ाई है। यह भक्तों और धिम्मियों के बीच एक निर्णायक लड़ाई है जो हमारी सभ्यता, संस्कृति और हिंदू जाति का भविष्य तय करेगी।
अमित शाह इसे पानीपत की तीसरी लड़ाई कह चुके हैं। और यह है भी।

विषयांतर के लिए क्षमा चाहूंगा। मैंने काफी लंबा और जीवन का सबसे शानदार समय हरियाणा के हिसार शहर में गुजारा है। इतना फ्रेंडली और ओपेन शहर बहुत कम होंगे देश में। ये शायद 2002 या 2003 की बात होगी जब हरियाणा के किसानों ने घासीराम नैन की अगुआई में बिजली-पानी के बिल माफ करने को लेकर आंदोलन शुरू किया था। आंदोलन को समर्थन देने महाराष्ट्र के शेतकरी संगठन के नेता शायद शरद जोशी नाम था उनका, आए हुए थे। लेकिन अचानक महाराष्ट्र के ये किसान नेता भाषण देते हुए उबल पड़े। उन्होंने कहा कि हरियाणा वाले हमेशा हमसे धोखा करते हैं, जब उन्हें जरूरत पड़ती है तो हमें बुला लेते हैं लेकिन हमारी जरूरत के समय भाग खड़े होते हैं। उन्होंने कहा कि पानीपत की लड़ाई में मराठे बिना रसद लिए इस उम्मीद में आ गए थे कि अपने हिंदू धर्मी आटा-दाल तो दे ही देंगे हमें, लेकिन आप लोगों ने इस उम्मीद में आक्रांताओं को राशन दे दिया कि अगर वे जीते तो अहसान का बदला चुकाते हुए आपको बख्श देंगे।

शायद ये लोग बख्श दिए गए हों लेकिन कीमत चुकाए बिना नहीं। दैनिक जागरण. हिसार में काम करने के दौरान एक बार शहर की धरोहरों पर एक परिशिष्ट निकालने का सोचा गया गया और इसकी जिम्मेदारी मेरे एक वरिष्ठ मित्र को सौंपी गई। वे हिसार के ही थे और बड़े गर्व से इसे फिरोजी शहर कहते थे। हिसाऱ शहर फिरोज शाह ने बसाया था। परिशिष्ट के लिए शोध के दौरान उन्होंने मुझे बताया कि जो प्रापर फिरोजी शहर है, उसमें हिंदुओं को दाखिल होने की अनुमति 1920 में मिली थी। सुनकर मेरा दिमाग चकरा गया। कैसे धिम्मी हैं, जिन्होंने सदियों तक उन्हें शहर की चौहद्दी से भी दूर रखा, उनके खिलाफ कोई आक्रोश तो दूर उसी गुलामी की निशानी फिरोजी किले पर वे गर्व करते हैं।

कितनी सफाई से इनके दिमाग में भाईचारे, गंगा-जमुनी तहजीब और धर्मनिरपेक्षता की अफीम बोई गई कि उन्हें यह याद करना गवारा नहीं कि इसी शहर में उनके पांव रखने तक पर पाबंदी थी। सारी अपमानों और कड़वी स्मृतियों के दाग सर्फ एक्सल से धो कर वे धर्मनिरपेक्षता के गद्दे पर गहरी नींद में खर्राटे ले रहे हैं। बुरा हो उन नामुराद भक्तों का जो इतिहास का एक पन्ना लेकर उनके सपनों में आ जाते हैं, उनकी स्मृतियों को कुरेद कर उन्हें चिढ़ा जाते हैं। धिम्मी कुपित हैं कि दशकों की मेहनत से रचे गए उनके स्वप्निल संसार में खलल डालने ये भक्त कहां से आ गए।

लेकिन भक्त दृढ़प्रतिज्ञ हैं कि वे विज्ञापनों में रचे गए काल्पनिक संसार में नहीं बल्कि उस वास्तविक भारत में रहेंगे जो अब तय कर चुका है कि इस बार लड़ाई में अपना राशन-पानी किसी मुगल या पठान को देना तो दूर, हम हर उस चीज से लड़ेंगे जो हमारे पास है। यह पानीपत की तीसरी लड़ाई है जो देश के हर गली कूचे में लड़ी जाएगी। यह लड़ाई भक्तों और धिम्मियों के बीच है। इस लड़ाई को जीतने के बाद ही हम कह सकेंगे- Bharat is the land of the Free and the Home of the Brave.

 

–आदर्श सिंह

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Most Popular

राष्ट्र को जुड़ना ही होगा, राष्ट्र को उठना ही होगा। उतिष्ठ भारत।

Copyright © Rashtradhara.in

To Top