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१९६२ युद्ध की गोपनीय जाँच रिपोर्ट

१९६२ ई⋅ में भारत की पराजय के कारणों की जाँच का प्रभार भारतीय सेना के तत्कालीन लेफ्टीनेण्ट−जनरल टी⋅बी⋅ हेण्डरसन ब्रुक्स तथा इण्डियन मिलिटरी अकादमी के तत्कालीन कमाण्डेण्ट ब्रिगेडियर प्रेमिन्द्र सिंह भगत को सौंपा गया ।

“Operations Review” नाम वाली जाँच की उस रिपोर्ट को उसी काल से काँग्रेस,अन्य दलों और वर्तमान भाजपा सरकार ने क्लासिफाई कहकर दबा रखा है । किन्तु आज के युग में कुछ भी गोपनीय नहीं है यद्यपि सरकारों को गोपनीयता पसन्द है ।

१९६२ ई⋅ में ब्रिटेन के प्रमुख समाचारपत्र “टाइम्स” के भारतीय पत्रकार नेविल मैक्सवेल को किसी ने उस रिपोर्ट की कॉपी दी । किसने दी यह नहीं बताऊँगा । उस पत्रकार ने नेट पर रिपोर्ट को अपलोड कर दिया किन्तु उसके अपने देश की सरकार द्वारा दवाब पड़ने पर नेट से हटा दिया क्योंकि भारत सरकार ने वहाँ की सरकार से गुप्त आग्रह किया था । परन्तु पत्रकार तो पत्रकार ही होता है,उसने अपने वेबसाइट से रिपोर्ट को हटा दिया किन्तु आर्काइव⋅आर्ग पर डाल दिया — https://web.archive.org/web/20140407165013/http://www.nevillemaxwell.com/TopSecretdocuments.pdf

आर्काइव⋅आर्ग से डाउनलोड न करें,बेहतर लिंक नीचे है ।

रिपोर्ट के दूसरे भाग में “परिशिष्ट” है जिसमें प्रथम भाग वाली मुख्य रिपोर्ट में आयी बातों के सन्दर्भों की सूची है । पूरी रिपोर्ट की मूल प्रति सेना मुख्यालय में है और दूसरी प्रति रक्षा मन्त्रालय में है — टॉप सिक्रेट वॉउल्ट में । मैक्सवेल की फाइल असली है या नकली इसपर टिपण्णी देने से रक्षा मन्त्रालय ने यह कहकर इनकार कर दिया कि “extremely sensitive nature of the contents of the Report, which are of current operational value” ।

रिपोर्ट का मुख्य सारांश यह है कि भारत के सम्पूर्ण नागरिक और सैन्य नेतृत्व ने भारत को वैसे युद्ध में धकेल दिया जिसकी समुचित तैयारी जानबूझकर नहीं की गयी । रिपोर्ट का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कथन यह है कि रक्षा मन्त्री कृष्ण मेनन ने निर्णय लिया कि युद्ध से पहले से ही सरकार और सैन्य नेतृत्व के बीच वार्तालापों की लिखित प्रति नहीं रखी जाय ताकि गलत निर्णयों के लिये कौन उत्तरदायी है यह बाद में सिद्ध न हो सके । अर्थात् भारत को हराना है यह भारत सरकार ने पहले ही तय कर लिया था किन्तु किसके कारण हार हुई यह साबित न हो सके । लिखित प्रति नहीं रहने के कारण जवाहरलाल नेहरू पर कोई प्रत्यक्ष आरोप उक्त रिपोर्ट में लगाना सम्भव नहीं हो सका ।

जाँच रिपोर्ट के अनुसार इण्टेलिजेन्स ब्यूरो के प्रमुख बी⋅ एम⋅ मलिक पर कई अनियमितताओं के आरोप लगे । मलिक जी ने पिछले दो वर्षों के दौरान चीनी तैयारी को पूरी तरह से अनदेखा किया और लिखा कि भारत द्वारा सीमा पर नयी चौकियों की स्थापना पर चीन कुछ नहीं करेगा!इण्टेलिजेन्स ब्यूरो ने अपने दायित्व के प्रति पूरी तरह से आँख मूँद लिया,किसी प्रकार की “इण्टेलिजेन्स” का संग्रह ही नहीं किया ।

जाँच रिपोर्ट में लेफ्टिनेण्ट−जनरल बी⋅ एम⋅ कौल की धज्जियाँ उड़ायी गयी जिन्होंने युद्ध आरम्भ होते ही चीफ−अॅव−जनरल−स्टाफ का प्रभार छोड़ा और नवगठित ४−कोर ( 4 Corps ) का प्रभार लिया जिसपर NEFA (अब “अरुणाचल प्रदेश”) का दायित्व था । चीफ−अॅव−जनरल−स्टाफ रहते हुए कौल साहब ने थलसेना के लिये असम्भव लक्ष्य निर्धारित कर दिये और सरकार द्वारा घोषित “फारवर्ड पॉलिसी” को यह कहकर सही ठहराया कि भारत की इस आक्रामक रणनीति पर चीन कोई प्रतिक्रिया नहीं करेगा!

जाँच रिपोर्ट में उल्लेख है कि सैन्य अनुभव रखने वाला कोई व्यक्ति ऐसा निर्णय ले ही नहीं सकता कि किसी महत्वपूर्ण युद्ध का मुख्य भार उस अनुभवहीन Corps को सौंपा जाय जिसकी स्थापना उसी समय हुई हो!इसका अर्थ यह है कि ऐसा गलत निर्णय सेना और जनरल कौल पर किसी ऐसे बिन भतीजे वाले चाचा ने थोपा था जिसे स्वयं कोई सैन्य अनुभव और सामरिक ज्ञान नहीं था । सरकार की आक्रामक “फारवर्ड पॉलिसी” भी उसी बिन भतीजे वाले चाचा के कबूतरबाज दिमाग की उपज थी जिसे विश्वास था कि उसके महान पञ्चशीली व्यक्तित्व से डरकर चीन युद्ध ही नहीं करेगा । किन्तु यदि युद्ध होगा तो उन महापुरुष को भी पता था कि भारत की हार होगी,अतः हार के आरोप से बचने के लिये दो निर्णय लिये गये — सरकार और सैन्य नेतृत्व के बीच युद्ध सम्बन्धी बैठकों के लिखित नोट्स नहीं रखे जायेंगे ताकि किसने क्या कहा इसका सबूत न रहे,और सरकार की आक्रामक “फारवर्ड पॉलिसी” किसके दिमाग की उपज थी इसका उल्लेख न हो । बाद में हंगामा होने पर कृष्ण मेनन को बलि का बकरा बना दिया गया और बिन भतीजे वाले चाचा साफ बच गये ।

२२ सितम्बर १९६२ ई⋅ के दिन रक्षा मन्त्रालय में हुई बैठक में विदेश मन्त्री एम⋅ जे⋅ देसाइ ने कहा कि “फारवर्ड पॉलिसी” के विरुद्ध चीन कोई प्रतिक्रिया नहीं करेगा,और करेगा भी तो एकाध भारतीय चौकी पर कब्जा करके बैठ जायेगा ।

भारत सरकार की आक्रामक “फारवर्ड पॉलिसी” का अर्थ था भारत सरकार द्वारा मान्य मैकमोहन रेखा के परे चीनी क्षेत्र अर्थात् तिब्बत में भारतीय सेना द्वारा नयी चौकियों की स्थापना । इन चौकियों की स्थापना का सीधा अर्थ चीन ने लगाया भारत द्वारा चीन पर आक्रमण । भारत सरकार ने झूठा प्रचार किया कि चीन ने भारत पर आक्रमण किया,जबकि सच्चाई यह है कि चीन ने प्रतिक्रिया की जिसका नेहरू को अनुमान नहीं था ।

जाँच रिपोर्ट के अनुसार मिलिटरी ऑपरेशन के डायरेक्टर ब्रिगेडियर डी⋅के⋅ पालित ने १९६२ ई⋅ के अगस्त में ही ४−इन्फेण्ट्री डिविजन के मुख्यालय में कहा था कि चीन कोई प्रतिक्रिया नहीं करेगा और भारत से लड़ने की क्षमता चीन के पास नहीं है!

थलसेनाध्यक्ष थापर साहब के विरुद्ध जाँच रिपोर्ट में कुछ भी नहीं है किन्तु चीन द्वारा युद्धविराम की घोषणा के अगले दिन ही उन्होंने त्यागपत्र दे दिया । नेहरू के विरूद्ध भी जाँच रिपोर्ट में कुछ नहीं है जिसके दो कारण हैं — जाँच का निर्धारित लक्ष्य था युद्ध के सैन्य पहलू की जाँच,न कि राजनैतिक नेतृत्व के क्रियाकलाप की समीक्षा; और दूसरा कारण है बैठकों के लिखित नोट्स रखने की मनाही और फारवर्ड पॉलिसी के सर्जक के नाम पर सरकार द्वारा पर्दा ।

किन्तु “फारवर्ड पॉलिसी” सेना ने नहीं बल्कि सरकार ने बनायी थी यह सबको पता था,और सरकार किसकी थी यह भी सब जानते थे । जाँच रिपोर्ट में केवल इतना उल्लेख है कि बैठकों के लिखित नोट्स उपलब्ध नहीं होने के कारण किन परिस्थितियों में और किन कारणों से “फारवर्ड पॉलिसी” बनायी गयी थी इसकी जाँच सम्भव नहीं है ।

जाँच रिपोर्ट में उल्लेख है कि थलसेनाध्यक्ष थापर साहब ने रक्षा मन्त्रालय में हुई बैठक में कहा था कि चीन “फारवर्ड पॉलिसी” की तगड़ी प्रतिक्रिया दे सकता है और १९६० ई⋅ में चीन ने जो दावा किया था वहाँ तक लद्दाख में बढ़ सकता है । थलसेनाध्यक्ष ने बैठक में कह दिया था कि चीन गलवान घाटी में आगे बढ़ जायगा । युद्ध आरम्भ होने पर चीन ने थलसेनाध्यक्ष थापर साहब की शङ्का को सही सिद्ध कर दिया । थलसेनाध्यक्ष की बात को राजनैतिक नेतृत्व ने दबा दिया और नेहरू ने अपने सम्बन्धी कौल साहब को नवगठित कोर का प्रभार देकर चीन को हराने के लिये भेज दिया!थलसेनाध्यक्ष का मन खिन्न था किन्तु वे मन की बात व्यक्त नहीं कर सकते थे और युद्ध के दौरान त्यागपत्र देकर भाग भी नहीं सकते थे!

संलग्न रिपोर्ट पढ़ें और बतायें कि और कौन−कौन सी महत्वपूर्ण बातें उपरोक्त सारांश में छूट गयी हैं । भारत सरकार अब इस रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दे तो कोई लाभ नहीं क्योंकि असली अपराधी के वंश से भारत मुक्त हो चुका है,और सेना के अधिकारियों पर दोषारोपण देशहित में नहीं होगा । अतः रिपोर्ट को “गोपनीय” ही रहने दें!

आर्काइव⋅आर्ग के उस साइट पर ट्रैफिक जाम रहता है,वहाँ से मैं डाउनलोड नहीं कर सका । अतः जहाँ कहीं से मुझे वह फाइल मिला उसे मैंने अपने गूगल ड्राइव पर डाल दिया ताकि आर्काइव⋅आर्ग से हटाये जाने पर भी कहीं तो फाइल रहे ।

उस रिपोर्ट के दो भाग हैं । प्रथम भाग है “Operations Review.pdf” नाम की मुख्य रिपोर्ट जिसे मेरे गूगल ड्राइव के निम्न वेबलिंक से आप डाउनलोड कर सकते हैं —
https://drive.google.com/file/d/17xbF_ZNKQX0Xf55talB1Vdvsfk_aREFi/view?usp=sharing

–श्री विनय झा

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