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युद्ध का मूल है अर्थ

आश्चर्य है कि कि इतिहास की किसी पुस्तक ने यह नहीं बताया है कि आक्रमण के लिए बहुत पैसे खर्च होते हैं तथा उसके लिये व्यापक संगठन बनाना पड़ता है। सेना के इतिहासकार तथा युद्घ विशेषज्ञ भी इसकी चर्चा नहीँ करते। केवल १८५७ विद्रोह पर श्री पराग टोपे (तात्या टोपे के प्रपौत्र) ने अपनी पुस्तक Operation Red Rose में इसका वर्णन किया है। मुस्लिम शासों ने आरम्भ से ही हिन्दुओं को घोड़ा तथा हथियार रखने पर पाबन्दी लगायी थी। अंग्रेजों ने भी आर्म्स ऐक्ट द्वारा भारतीय लोगो के हथियार रखने पर रोक लगाई थी जो आज तक चल रही है। स्वाधीन अमेरिका या ब्रिटेन में ऐसी कोई रोक नहीँ है। १८५७ के विद्रोह के समय एक भी भारतीय राजा के पास यह क्षमता नहीँ थी कि १०००० सेना को एक समय का भोजन भी दे सकें। जैसे दानापुर छावनी के १०००० सैनिक जगदीशपुर के बाबू कुंवर सिंह से मिल गये। पर उनके पास उतने लोगों के लिये घोड़ा, हथियार, रहने का तम्बू या दिन में दो समय भोजन की व्यवस्था कर सकें। अतः सेना के चलने पर २०-२५ किमी बाद के गांव में खबर करना पड़ता है कि रहने तथा हथियार की व्यवस्था करें। इसके लिये सहमति हुई थी कि संकेत के लिये रोटी तथा गुलाब भेजा जाता था। जिसको रोटी भेजी गयी उसे भोजन की व्यवस्था तथा गुलाब वाले को हथियार तथा परिवहन व्यवस्था करनी थी। इसे केवल हिन्दू मुस्लिम एकता मान कर किसी इतिहासकार ने इसका अर्थ समझने की चेष्टा नहीं की। इस पद्धति में कितना भी गुप्त सन्देश हो, जहाँ सभी गावों को सन्देश भेजना हो, उसका भेद बहुत जल्द पता चल जायेगा। गुप्त रहने पर भी नियमित भोजन या आवास व्यवस्था दैनिक चन्दा से सम्भव नहीँ है और विद्रोह असफल होने का एकमात्र कारण था।

भारत में उज्जैन के विक्रमादित्य के बाद किसी भी भारतीय राजा ने १००० किमी दूर जाकर आक्रमण करने की व्यवस्था नहीँ की। केवल अपनी रक्षा के लिए किले बनाने तक ही उनका प्रयास सीमित रहा। पृथ्वीराज चौहान की उदारता नहीँ थी, वह हर बार राजधानी के पास ही लड़ कर अपनी रक्षा करते थे। उनके पास या उनके पूर्वजों के पास ऐसा कोई साधन नहीँ था कि १ लाख सेना सहित गजनी तक जा कर आक्रमण कर सकें। मुहम्मद गजनवी के समय जयपाल की सहायता के लिये चन्देल राजा सेना सहित गये थे। पर उनको हिमालय की बर्फीली चोटियों पर चलने का अभ्यास नहीँ था न वहाँ भोजन या आवास की व्यवस्था थी। अतः वे असहाय होकर मारे गये। पानीपत के तीसरे युद्ध में भी मराठा सेना की हार का कारण था कि वे उतनी दूर तक भोजन नहीँ पहुंचा पाये। रक्षात्मक युद्ध में कभी न कभी हारना ही है। यदि लगातार १०० बार भी जीते तो शत्रु बचा रहता है और १०१वीं बार जीतने पर वह कब्जा कर लेगा।

मुस्लिम सेना में हर सैनिक के लिये घोड़ा था, दो दिन के लिये भोजन रहता था। इन सबके लिये लूट तथा अपहरण से पैसा जुटाया गया। मुहम्मद गजनवी के १७ आक्रमणों का खर्च भारत की लूट से ही हुआ। अपने पैसे और साधन से ही हम हराये गये, जिसे गान्धी नेहरू ने दुहराया। इस्ट इण्डिया कम्पनी ने भी समुद्री लूट से अपना काम बढ़ाया तथा अन्त में बंगाल की लगान वसूली अधिकार लेने के लिए नेहरू परिवार के माध्यम से शाह आलम को ५ लाख की घूस दी। उसके बाद लगान वसूली के नाम पर बंगाल का हर घर लूट लिया तथा स्थानीय राजाओं की सम्पत्ति भी लूटी। एक अन्य कारण था कि मुगल राजाओं की कोई नौसेना नहीँ थी। वे यूरोपीय कम्पनियों के किसी भी आक्रमण का जबाब देने में असमर्थ थे।

१९४७ में स्वाधीनता के बाद भी पाकिस्तान के सभी आक्रमण केवल विदेशी आर्थिक सहायता से हुये। कबायली या मुजाहिद आक्रमण धोखा देने के लिए कहा जाता है। हमेश उसके लिये भारी पैसा खर्च होता है जो बिना बाहरी सहायता के पाकिस्तान नहीँ कर सकता है। इसके विवरण नीचे हैं-

पाकिस्तान को भारत पर आक्रमण के लिये आर्थिक सहायता-

(१) १९४७-गान्धी नेहरू द्वारा ५५ करोड़ रुपए। आधा कश्मीर पाकिस्तान ने जीत लिया। जैसे ही भारतीय सेना ने उनको खदेड़ना आरम्भ किया, युद्घ रोक कर संयुक्त राष्ट्र संघ में चले गये जहाँ आजतक कोई निर्णय नहीँ हुआ। इस सहायता से पाकिस्तान ने ३० लाख हिन्दुओं की हत्या की तथा १८० लाख को भगा दिया।

(२) १९६२ से १९६५ तक ७ अरब डालर की अमेरिकी सहायता। १९६५ में पाकिस्तान का आक्रमण। जैसे ही भारतीय सेना ने जीतना आरम्भ किया युद्ध रोक कर प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री को ताशकंद बुलाया गया जहाँ उनकी सन्दिग्ध मृत्यु के बाद इन्दिरा गाँधी प्रधानमंत्री बनीं।

(३) बंगलादेश के विद्रोह के कारण युद्ध जिसके लिए आर्थिक सहायता के अतिरिक्त अमेरिका ने नौसेना का ७वां बेड़ा भेजा था।

(४) १९८८-१९९० में भारी अमेरिकी सहायता के बाद पाकिस्तान ने कारगिल में आक्रमण किया।

(५) परमाणु कार्यक्रम तथा अमेरिका पर आतंकवादी आक्रमण के कारण अमेरिकी संसद ने सहायता कम की पर चीन के हथियार मिलने लगे। पुनः सऊदी अरब ने २० अरब डॉलर सहायता की घोषणा की है, जो अमेरिका का सहयोगी देश है। क्या यह २०१९ में भारत पर आक्रमण के लिए है?

पाकिस्तान का हर आक्रमण बाहरी सहायता से ही हुआ है। सबसे बड़ा आक्रमण गांधी नेहरू की सहायता से हुआ था।

– अरुण उपाध्याय

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