आप सबसे बड़े धिम्मी हैं, जानिए कैसे?
जब आप किसी के आक्षेप पर दौड़े दौड़े नासा की किसी रिपोर्ट का लिंक लेकर आते हैं और कहते हैं की देखिए ऐडम ब्रिज (राम सेतु सही नाम) को नासा भी ५००० साल पुराना बताती है और यह मानव निर्मित है… तब आप अपने इष्ट प्रभु श्री राम और रामायण काल का स्वयं ही हनन कर रहे होते हैं यह ज्ञात भी नहीं होता आपको।
या फिर जब कोई कहता है कि शिवलिंग पर दूध चढ़ाना मूर्खता है, ग़रीबों में बाँट दो तो आप शिवलिंग पर दूध चढ़ाने के सौ फ़ायदे गिनाने वाले आर्टिकल की खोज में पूरा गूगल छान मारते हैं…
उस समय भी अपनी भक्ति की बलि चढ़ाकर छद्म विज्ञान का आवरण ओढ़ते प्रतीत होते हैं।
या जब कोई आपके अनुग्रह के स्वामी श्री गणेश के हाथी के सर पर प्रश्न उठाता है… तो रोते बिलखते आधुनिक विज्ञान की ट्रैन्स्प्लैंट थियोरि के सामने दाँत चियारते नज़र आते हैं और आधी अधूरी थियोरि से पूरा सत्य सम्पादित करने में नाकाम होते हैं।
या जब कोई आपसे पूछता है की राष्ट्र पहले या धर्म…
तो झुककर राष्ट्र की माला जपने लगते हैं और भगवा की जगह तिरंगा हाथ में लिए काँवड़ यात्रा पर निकल पड़ते हैं बजाय यह कहने के कि हमारा धर्म ही है जिसने हमको राष्ट्रभक्ति सिखाई, जिसने यह समझाया की राष्ट्र क्या है, राष्ट्र की अवधारणा क्या है। एक आदर्श राष्ट्र राम राज्य होता है इसलिए धर्म ही महान है क्यूँ की उसी से यह राष्ट्र है।
तब भी जब कोई आपसे शिवलिंग या किसी भगवान की मूर्ति को पत्थर कहकर आपसे प्रश्न पूछता है…
और आप औंधे मुँह आकर ऊल जलूल तर्क देते हैं कि यह तो पहली सीढ़ी है… ध्यान लगाने के लिए होता है इत्यादि, या फिर आर्य समाजियों की तरह तर्क न होने पर आप उसे नकार देते हैं बजाय यह कहने के कि हमने प्राण प्रतिष्ठा की है अब इस विग्रह में भगवान का वास है, अब यही हमारे ईश्वर हैं। कण कण में राम हैं यह हमारी आस्था और हमारी मान्यता है पत्थर उनकी, पर आप ये बोल ही नहीं पाते हो।
आपको अपनी मान्यताओ को प्रतिपादित करने के लिए किसी पश्चिम के अर्ध ज्ञानी या अरबी खच्चर की क्या ज़रूरत है? जो हमारी मान्यता है वह है। उसका सम्पादन और प्रतिपादन हमारे धर्म शास्त्रों ने किया हुआ है।
यदि अधिक ही तर्कशील बनना चाहते हैं तो स्वयं को उनके खोखले प्रमाण से बाहर निकालिए। एक छोटा सा उदाहरण देता हूँ …
उन्होंने आपसे कहा 2H +O2 पानी होता है। आपने मान लिया हाँ हाँ जी वाह, मिलकर H2O माने पानी बन गया, कभी पूछा उनसे कि कौन सी लैब में यह बनता है कौन सी लैब में दो hydrogen और oxygen मिलकर पानी बनते हैं? नहीं पूछा होगा, क्यूँ की आप धिम्मी हैं और साथ ही मानसिक ग़ुलाम भी।
अगर ऐसे पानी बनता तो विश्व की पानी की समस्या कब की समाप्त हो जाती, सबके पास पानी होता। हाँ, यह ज़रूर है कि पानी को तोड़ने पर हाइड्रोजन और ऑक्सिजन निकलता है। जब इतनी सीधी सी बात को वह पूरी तरह नहीं बता सकते तो आपके पुरखों का हज़ारों लाखों वर्षों पुराना विज्ञान वह किस मुँह से प्रतिपादित करेंगे ??
पानी जो आपके पुरखों ने बताया वैसे ही बनता है और पूरे विश्व में वैसे ही बनता है, नहीं तो मुझे उस लैब का नाम बताइए जहाँ अलग विधि से बन सके?
इसलिए, इस धिम्मीपने से बाहर निकलिए।जिस दिन आप इससे बाहर निकलकर अपनी मान्यताओ पर अडिग रहेंगे उसी दिन यह राष्ट्र हिंदू राष्ट्र बन जाएगा।
वैसे और क्या बन जाएगा, यह हमेशा से हिंदू राष्ट्र ही था।और यदि कुछ बदलना है तो मात्र आपकी मानसिकता…!
इसलिए किसी सम्राट से अपेक्षा रखने से पहले अपने धिम्मीपने को त्याग दीजिए ।।
– साभार शैलेंद्र सिंह