जब एक शिव भक्त प्रधानमंत्री माँ गंगा की आरती के लिए दशाश्वमेघ घाट पर एक घंटे बैठ कर शांत मुक्त चित्त से आरती देखता, सुनता, करवाता हो… और उसमें भी शिव तांडव स्तोत्र प्रारम्भ हो जाए तो उसका रोम रोम प्रफुल्लित हो उठता है और वो भक्ति भाव में विभोर होकर ताली बजाता जाता है।
ध्यान से देखिएगा कल काशी के इस स्टेज पर एक नहीं दो दो योगी बैठे थे… एक वर्तमान का और दूसरा भविष्य का।
इन हाथों में ही निहित है हिंदू भारत का स्वर्णिम भविष्य। बाक़ी का इतिहास आपके हमारे हाथ में है। हम चाहेंगे तो एक नया महाग्रंथ रचा जायेगा अन्यथा नालन्दा की भाँति धर्म अग्नि का हविष्य होगा और समिधा बनेंगे आप और हम।
भाव आपके, शब्द मेरे, क्रिया हमारे हरि नारायण लक्ष्मीपति की।
– नीरज सक्सेना