इसी दिन 1932 में पूना पैक्ट हुआ था अम्बेडकर और गांधी के बीच। जिसके कारण हिंदुओं के एक बड़े हिस्से को कानूनन अछूत घोषित किया गया था जबकि भारत का कोई शास्त्र और ग्रन्थ अछूत पन का जिक्र भी नही करता।
मजे की बात यह है कि 1900 AD के पूर्व ब्रिटिश दस्युवों द्वारा भारत के बारे में लिखे गए किसी भी ग्रन्थ में इस शब्द का जिक्र तक नही है।
आप आज जानते हैं कि ब्रिटिश दस्युओं के आने के पूर्व भारत विश्व की 24% जीडीपी का निर्माता था। लेकिन 1900 आते आते भारत मात्र 1.8% जीडीपी का निर्माता बच सका। उन्होंने भारत के समस्त कृषि शिल्प वाणिज्य का विनाश कर दिया।
जहाँ 1700 और 1720 में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत से आयातित सूती और छींट के वस्त्रों के देशी अंग्रेज़ों द्वारा उपयोग करने से रोकने हेतु ब्रिटिश संसद ने Calico Act कानून बनाया गया था, जिससे उनके देशी मैन्युफैक्चरर को सुरक्षित रखा जा सके, वही 1900 आते आते भारत पूर्णतः ब्रिटिश से आयातित वस्त्रों पर निर्भर हो गया।
( Calico Act गूगल करिए )
करोड़ो भारतीय बेरोजगार हो गए। जो हजारों वर्षों से कृषि, शिल्प और वाणिज्य के आधार पर जीवन यापन करते थे। इसका प्रमाण है रोमन इतिहासकार प्लिनी द्वारा लिखित इतिहास। प्लिनी लिखता है कि भारत से सिल्क आयातित करने के कारण रोम से समस्त धन और सोना भारत चला जाता है।
भारत के आर्थिक व्यवस्था के नष्ट किये जाने और लूट की बात अभी 2015 में शशि थरूर ने ऑक्सफ़ोर्ड यूनियन में आयोजित एक सेमिनार में किया। जिस पर ब्रिटेन के अन्य स्पीकर सहमत थे। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने भी शशि थरूर को बधाई थी।
लेकिन कोई राजनेता और समाजशास्त्री यह बात करने को तैयार नही है कि इस लूट और विनाश का भारतीय समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
यद्यपि इस लूट और विनाश का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा इस पर अनेकों लेखकों ने प्रकाश डाला है – 1900 से बीच 1930 के बीच।
रोमेश दत्त, दादा भाई नौरोजी, गणेश सखराम देउसकर, विल दुरंत, जे सुन्दरलैंड, आदि के द्वारा लिखित पुस्तकें मैने स्वयं पढ़ी हैं। इसके अतिरिक्त भी अनेको लेखकों ने इसका वर्णन किया है।
वामपंथी के पितामह कार्ल मार्क्स ने भी 1853 में भारत मे लूट और विनाश के प्रभाव के बारे में न्यूयॉर्क ट्रिब्यून में लिखा था। ( गूगल कीजिये) मार्क्स लिखता है – “1818 में ढाका में 1,50,000 शिल्पी थे जिनकी सांख्य 1836 में घटकर मात्र 20,000 बची”।
क्या हुआ 1,30,000 शिल्पियों का आने वाले दिनों में? और यह तो सिर्फ एक शहर का डेटा है। और वह भी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पूर्व का।
इनका हुआ यह कि 1850 से 1900 के बीच 3 से 4 करोड़ बेरोजगार किये गए भारतीय भुखमरी और संकामक रोगों के शिकार हुए और मृत्यु को प्राप्त हुए। इन्ही संक्रामक रोगों से बचने के लिए अछूत प्रथा ( न छूने की प्रथा ) की शुरुवात हुई।
लेकिन नरसंहार से बड़ा अपराध अछूतपन को सिद्ध किया गया। क्योंकि पढ़े लिखे भारतीय पूर्णतया – मैकाले स्कूल से निकले एलियंस और स्टूपिड प्रोटागोनिस्ट निकले। उन्होंने ने ही नहीं विश्व ने दस्यु ईसाइयो द्वारा रचे गए फेक न्यूज़ को सच मान लिया।
विलियम जोंस मैक्समुलर जैसे धर्मान्ध ईसाइयो द्वारा रचित फेक न्यूज़ को सच्चे इतिहास की तरह प्रसारित किया गया।
1901 में नश्लीय मानसकिता के HH रिसले मैक्समुलर द्वारा रचित आर्यन अफवाह को आधार बनाकर तीन वर्णों ( ब्राम्हण क्षत्रिय और वैश्य) को तीन ऊंची कास्ट में चिन्हित करता है, और बाकी अन्य शिल्प कृषि वाणिज्य आधारित बेरोजगार की गए समुदायों को नीची कास्ट में।
अफवाहबाजों ने अपने अपराधों को फेक न्यूज़ के आधार पर अपने कुकृत्यों और अपराधों को ढांक तोप कर, इन नीची घोसित किये गये हिन्दू समुदायों के बेरोजगारी और संकामक रोगों से हो रही मौत की दुर्दशा का जिम्मेदार ब्रम्हानिस्म और मनुस्मृति को ठहराया।
उन्होने राजनीतिक और ईसाइयत में धर्म परिवर्तन का आधार तैयार करने के लिए 1901 के जनगणना के बाद, वन वासी और गिरिवासी हिन्दुओ को एनिमिस्ट , और बेघर बेरोजगार किये गए हिंदुओं को डिप्रेस्ड क्लास के नाम से चिन्हित किया।
1928 में जिस साइमन कमीशन का पूरे भारत ने विरोध किया था, उससे अम्बेडकर सांठ गांठ करते हैं, कि वह अम्बेडकर की पीठ पर हाँथ रखकर उनकी राजनैतिक पहचान बनाने का वादा करता है, यह रिसर्च का विषय है, परंतु, अम्बेडकर जी उससे मिलते हैं।
और एक रिपोर्ट तैयार करते है – जिसको लोथियन समिति के नाम से जाना जाता है। जिसमे उन्होंने ब्रिटिश दस्युवो से सांठ गांठ करते हुए लिखा कि डिप्रेस्ड क्लास ही अछूत है।
उन्होंने अछूत और सछूत ( touchable और untouchable) जैसे शब्दों की व्याख्या करते हुए इसको हिन्दू धर्म का अभिन्न अंग बताया। और पूरी के मंदिर को लूटने के लिए बनाये गए रेगुलशन 1806 का उद्धरण प्रस्तुत करते हुए अपनी बात को प्रमाणिक सिद्ध करने का प्रयास किया।
वे सफल भी रहे।
लेकिन सछूत और अछूत जैसे शब्द किसी भारतीय ग्रन्थ में नहीं मिलते।
क्यों नही मिलते ?
सोचिये।
अंग्रेज तो चाहते ही यही थे। बन्दर काम का था। मदारी के मनमाफिक करतब दिखा रहा था। लेकिन यदि आप रेगुलशन 1806 को पढियेगा तो पाइयेगा कि अम्बेडकर जी ने फेक डॉक्यूमेंट तैयार करने का आपराधिक कृत्य किया था। IPC के अनुसार जाली कागजात तैयार करना बहुत बड़ा अपराध है।
अंग्रेज़ों ने बाबा साहेब को उनके द्वारा किये गए सहयोग के लिये – उन्हें कम्युनल अवार्ड दिया और सेपरेट एलेक्टरेट प्रदान किया।
गांधी ने राउंड टेबल कांफ्रेंस में इसका विरोध किया था। लेकिन ब्रिटिश द्वारा सेपरेट एलेक्टरेट दे दिया गया तो उन्होंने यरवदा के जेल में आमरण अनशन किया। आज ही के दिन उस सेपरेट एलेक्टरेट के विरुद्ध गांधी और अम्बेडकर में पूना पैक्ट हुई जो आगे जाकर संविधान में आरक्षण का आधार बना। ज्ञातव्य हो कि पाकिस्तान भी सेपरेट एलेक्टरेट की देन है और आरक्षण भी।
मजे की बात यह है कि ब्रिटिश शासन में दो गुलाम भारतीय आपस मे समझौता कर रहे हैं, जो आने वाले दिन में भारत के भविष्य का निर्धारण करेगा। इसका उदाहरण विश्व मे कहीं नही मिलेगा। बिल्ली मौसी दो बंदरो के बीच रोटी बांटने में न्यायधीश की भूमिका निभा रही है। बिल्ली मौसी और दो बन्दर – संविधान
–त्रिभुवन सिंह