जगन्नाथ मंदिर के केस में जगदगुरु शंकराचार्यजी के द्वारा दाख़िल याचिका में आज की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी सभी हिंदू मंदिरों की स्वतंत्रता की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
सभी बड़े व छोटे मंदिर और उनके ट्रस्ट इसका उपयोग सरकारी नौकरशाही को मंदिर के रोज़मर्रा के कार्यों में दखलन्दाजी से बचाने के लिए कर सकते हैं।
मंदिर का धन भी मंदिर, भग़वान के विग्रह तथा हिंदू समाज के पुनरुत्थान के अलावा किसी अन्य कार्य में प्रयोग होने से बचाया जा सकता है। यदि सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम निर्णय सुनाने तक अपना रूख नहीं बदला तो आने वाला निर्णय हिंदू धन का धर्मनिरपेक्ष कार्यों में दुरुपयोग रोकने के लिए एक बड़ा क़दम साबित हो सकता है।
वैसे भी मंदिर में भक्त दान इसलिए करते हैं कि उसका प्रयोग भगवान से जुड़े कार्यों जैसे मंदिर के रखरखाव, कर्मचारियों और उनके परिवारों की देखभाल, हिंदू धर्म शिक्षण, गौसेवा, गुरुकुल इत्यादि।
कई बड़े मंदिरों के ट्रस्ट बहुत बड़े बड़े मेडिकल कॉलेज व एंजिनीरिंग कॉलेज और हस्पताल आदि खोल कर पूर्णतया व्यापार में लग गए हैं व मार्ग से भटक चुके हैं। हिंदू समाज को इस पर रोक लगाना अत्यंत आवश्यक है।
जब कोई भक्त दान करता है तो उसके हृदय में यह सोच नहीं होती है कि मंदिर उस धन से धर्म शिक्षण के बजाय लॉ कॉलेज, डॉक्टरी या तकनीकी शिक्षण कराएगा और व्यापारिक तौर तरीक़ों से उसे चलायेगा। अंततः is प्रकार कमाया गया धन मंदिरों के ट्रस्टी व सरकार के जेब में ही जाता है और उपरिलिखित धार्मिक कार्यों में आंशिक रूप से ही प्रयोग हो पाता है।
हालाँकि ये आवश्यक है कि ऐसी संस्थाओं पर राज्य सरकारों के धर्मकार्यों से सम्बंधित मंत्रियों द्वारा कुछ अंकुश या जवाबदेही अवश्य बनी रहे, परन्तु हिंदू समाज के पुनरुत्थान के लिए मन्दिरों की स्वायत्ता सम्बंधी सुधार परम आवश्यक हैं।
This judgement must be used by all major & minor temples to drive out the role of government servants in day-to-day functioning of the temples.
Temple finances should never be allowed to be used for so-called secular issues of a seemingly secular government. Temple finances must be used only towards the service to the deities, gau sewa, teaching of Hindu scriptures through gurukuls or otherwise.
Some major temple trusts are running institutions like engineering & medical colleges & hospitals on commercial lines. This should never be allowed as the daan money donated by devotees is not meant for this purpose.
Major reforms are called for in both areas – state intervention in temples & the temples venturing into essentially non-religious areas to make money for themselves.
Further religious affairs ministries in state government while not interfering in religious affairs either directly or indirectly, must nonetheless keep a regulatory eye on affairs of the temple so that bad sheep in the temple management do not misappropriate temple funds for personal purposes.
– ऐ.के. सक्सेना