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बलिदान का अभिनंदन करो, बलिदानियों के रक्त से राष्ट्र पोषित

थोड़ा सा फर्क है। जब मासूम कूल डूड युद्ध और शांति पर प्रवचन देने लगते हैं तो न युद्ध मिलेगा न शांति। बस पराजय और अपमान मिलना तय है।

लेकिन जब लिबरल युद्ध और शांति की बात करते हैं तो ये शातिर खिलाड़ी अपने हित नाप तौल कर अपने आकाओं की भाषा बोलते हैं।

(कहानी समझने के लिए नीचे देखिये आज के हिंदी और अंग्रेज़ी समाचारपत्रों कीं हेडलाइंज़ में अंतर…)

मासूम लौंडे झांसे में आकर इनका वजन बढ़ा देते हैं। अब कल तक जो मासूम लड़ाई की बात कर रहे थे, आज पक्के मानवतावादी हो गए हैं। ट्विटर पर सेव अभिनंदन, नो वार और कंधार ट्रेंड कर रहा है। ये सारे ट्रेंड पाकिस्तानियों के इशारे पर यहां बैठे उनके गुर्गों ने शुरू किए हैं, कूल डूड बेचारे बस सेव अभिनंदन और नो वार का मंत्र जाप कर आहुति दे रहे हैं।

अचानक उन्हें पता चला कि युद्ध तो बड़ी भयानक चीज है। तो कल तक क्या गांजा पीए हुए थे? और जब उतरा तो शांति की याद आई। लड़ाई तो अभी शुरू भी नहीं हुई लेकिन अभिनंदन के बहाने दुश्मन ने हमारी बजानी शुरू कर दी है।

सबकी गाली सुनने और सहने वाले भक्त ही भारत के लिए डटे हुए हैं। ये हम हैं।
अनुभव और हमारे बारे में जानकारी उनके हथियार हैं।

जब कंधार कांड हुआ था तो किसी को विश्वास नहीं था कि भारत मसूद अजहर सहित उन पांचों नरपिशाचों को छोड़ देगा। डोभाल ही उस समय भारत सरकार की ओर से बातचीत कर रहे थे। जबरदस्त काम किया था।

पाकिस्तान-तालिबान का हौसला टूटने लगा था और उन्हें लगा कि प्लेन छोड़ना ही पड़ेगा। उसी समय लौंडों की कारस्तानी और सर्कस शुरू हुआ। प्रधानमंत्री आवास पर जम गए और टीवी कैमरे दिन रात उनका प्रचार करने लगे।

मुल्ला उमर ने जब भारतीय टीवी देखा तो खुशी से पागल हो गया। बोला ये काफिर घुटने टेकने के लिए ही बने हैं और जरूर टेकेंगे। दबाव में पांचों छोड़े गए।
रूस ने बेसलान में पांच सौ बच्चे गंवाए। इसलिए रूस टूट कर भी सुपर पावर है।

मुद्दे पर आएं। युद्ध में किसी अभिनंदन का नाम नहीं आता। जो देश लड़ना जानते हैं उनका अपना इतिहास है। वहां देश पर जान देने वालों की गिनती नाम से नहीं बल्कि हजारों-लाखों की संख्या में जाती है।

हम तो अभी पाकिस्तान से लड़ रहे हैं जहां जीतेगा कौन, इस पर दिमाग लगाने की भी जरूरत नहीं है। लेकिन जयचंद सक्रिय हो गए हैं और मासूम लौंडों को ज्ञान मिला कि लड़ाई-झगड़ा कितनी गलत बात है।

लौंडों, ये विधवा विलाप लज्जास्पद है क्योंकि अभी तो पाकिस्तान से लड़ाई है जहां जीत तय है। अगर कहीं चीन से हो गई तो तुम लोग तो कहोगे कि इतना भारी नुकसान होगा कि कोई फायदा नहीं । बिना लड़े ही सरेंडर कर दो।

सुन लो लौंडे रूपी मानवतावादियों, आज भी जो देश दुनिया में अपनी कोई हैसियत रखते हैं, उन सबका अपना इतिहास है। रूस, चीन, फ्रांस, इंग्लैंड, जर्मनी, पोलैंड, इन सभी ने इतिहास में कई बार 18 साल के लड़कों को पकड़ा है और सिर्फ दो-तीन महीनों की ट्रेनिंग देकर युद्ध में झोंका है। लाखों बच्चे गंवाए, इसके बावजूद कई बार हारे हैं।

लेकिन बलिदान का ये इतिहास उन्हें अपने पैरों पर हमेशा खड़ा कर देता है। और जो नहीं लड़ते वो यूक्रेन की गति को प्राप्त होते हैं। क्षेत्रफल और आबादी में बहुत बड़ा देश लेकिन स्वतंत्रता कभी देखी नहीं। और जब मिली तो सहेजना नहीं आया।

हमे यूक्रेन बनाने के लिए एक हजार साल से बहुत सी ताकतें सक्रिय हैं। लेकिन सनातनी बलिदानियों की पौध कभी खत्म नहीं होती। उन्हीं की वजह से आज भी सिर उठा के जीवित हैं। वीर बलिदानी आज भी हैं।

अगर कोई कम्युनिस्ट, जिहादी, लिबरल आपको ताना मारे कि अपने बेटे को फौज में क्यों नहीं भेजते तो उससे साफ कहो मेरा बेटा भारत का सैनिक ही बनेगा। मैं कहता हूं, मेरा बेटा जिस दिन वयस्क होगा, उसे भारत माता की सेवा में भेज कर मुझे गर्व होगा। क्लर्क बनाने के लिए पैदा नहीं किया।

बलिदानियों के रक्त से ही राष्ट्र पोषित होता है। और हां, अभिनंदन कोई कुली फिल्म की शूटिंग नहीं कर रहे थे जो इतनी प्रार्थना कर रहे हो।

राष्ट्र की बलिवेदी पर हम और आप सहित लाखों अभिनंदन खेत रहेंगे। बलिदान का अभिनंदन करो, कृतज्ञता ज्ञापित करो और डटे रहो। भारत मां की शपथ लो, रोना मत।

– आदर्श सिंह

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