शीर्षक कुछ अटपटा लगा हो तो ध्यान से आगे पढ़ने की बिनती है ।
मछलियाँ पकड़ना जिनका पुराना शौक होता है उन्हें पता होता है कि पानी में कौनसी जगह है जहां मछलियाँ मिलेंगी। वे वहीं काँटा डालकर बैठ जाते हैं । *अनुभवी या ट्रेंड आदमी झट समझता है कि हर मछली नहीं फंसनेवाली, तो वो न फँसनेवाली मछली को फँसाने की ज़िद में समय बर्बाद नहीं करता*। वो हमेशा आसानी से फँसनेवाली मछलियों की तलाश में ही रहता है और वे फँसती भी हैं । *उसकी स्किल यही होती है कि उसे सही जगह की पहचान होती है और वहाँ पहुँचने के लिए वह हर यत्न करता है* ।
अब इस आलेख के शीर्षक पर आने से पहले थोड़ा और बैक्ग्राउण्ड समझ लेते हैं।
होस्पिटल्स में जिन रोगियों का इलाज लंबा चलता हैं – उनके पास हमेशा परिजन के नाम पर रुकनेवाली घर की महिलाएं होती हैं । वह भी बूढ़ी नहीं होती जिनकी खुद की ही परेशानियाँ होती है । कम से कम working hours में तो महिलाएं ही रुकती हैं। और जब रोगी प्रिय परिजन हो तो महिलाकी मनस्थिति संवेदनशील होती है।
आम तौर पर मनुष्य एकांतप्रिय बिलकुल नहीं होता, अकेला रहना सज़ा भी होती है गुनहगारों के लिए । यहाँ अगर आप का परिजन सोया है और डॉक्टर ने अधिक बात करने को मना किया है या हो सकता है उसे दवा दे कर भी सुलाया हो तब साथ रुके व्यक्ति की मनस्थिति, जिसपर बीती हो वही समझ सकता – सकती है । ऊपर से सोये मरीज की स्थिति का भी टेंशन रहता ही है। बहुत नाजुक मनस्थिति होती है ऐसे स्थिति में रहनेवाली महिला की ।
*यहाँ एक और बात समझ लीजिये कि हॉस्पिटल खर्चीला भी होता है, याने आनेवाले व्यक्ति की आर्थिक स्थिति ठीक रहती है* ।
और एक सामाजिक जरूरत को देखते हुए *घर में वृद्ध व्यक्ति की देखभाल के लिए पुरुष नर्स रखने का चलन भी बढ़ा है । जाहिर है कि साधन, सम्पन्न व्यक्ति ही यह कर पाते हैं* ।
लगता है *अब तक आप को शीर्षक का अर्थ समझ में आ रहा होगा*।
*पुरुष नर्सों (Male nurse) और paramedical स्टाफ में जो घुसपैठ हो रही है इसपर पेशण्ट्स के परिजनों को ध्यान देना चाहिए । हॉस्पिटल के संचालक इसपर बिलकुल ध्यान नहीं देंगे* जिसके कारण कई हैं । प्लेसमेंट वालों को यह बता देना भी खतरे से खाली नहीं होता, निगेटिव पब्लिसिटी कोई नहीं चाहता।
सस्ता दाम, और कम छुट्टियाँ ऐसे भी कारण होते हैं । प्लेसमेंट के व्यवसाय में भी घुसपैठ जारी है और जिसे कर्मचारी चाहिए होता है उसे वह required yesterday basis पर चाहिए होता है, उसके लिए बहुत फिल्टर्स लगाना याने आदमी नहीं मिलना उतना धंधे का नुकसान ।
यहाँ मैं इस बहस में नहीं पड़ना चाहता कि किसको क्या सोचना चाहिए, किसको किस चीज को वरीयता देनी चाहिए क्योंकि वह बेकार की बहस है ।
एक जमानेमें इसमें ईसाई अधिकाधिक घुसते थे, अधिकतर महिलाएं होती थी – आज भी हैं, उनका भी उद्देश्य सर्वविदित है । वैसे इन पुरुष नर्स या paramedical स्टाफ उनको भी perks मानते हों तो आश्चर्य नहीं । और *ये स्मार्ट चिकने हो तो*….. समझ तो गए ही होंगे ।
अभी कुछ दिन पहले पुलवामा हमले के बाद एक नर्सिंग कॉलेज में एक हिन्दू छात्र को हिंदुस्तान के प्रति संवेदना व्यक्त करता स्टेट्स रखनेपर उसके दो सहाध्यायी छत्रों ने मारपीट की थी। *दोनों कश्मीरी थे*।
बाकी कड़ियाँ जोड़ लीजिये, जितना हो सके *लोगों को सावधान कीजिये । क्योंकि शर्म के मारे कई कांड सामने आते ही नहीं* जिससे गुनहगारों की जमात मुंह उठाकर बोलती है कि आप सबूत दे नहीं पा रहे हैं क्योंकि आप के आरोप ही बेबुनियाद हैं ।
माँ काली रक्षा करें । जय हिन्द ।
*इस लेख को अधिकाधिक हिंदुओं तक पहुंचाने की आप से करबद्ध प्रार्थना है* ।
– आनंद राज्याधक्ष