यदि मैं आप लोगो से यह प्रश्न करूँ की पिछले दो दिनों से भारत की मीडिया ने भारत की जनता को क्या क्या दिखाया और बताया है? तो आप सबके पास एक ही उत्तर होगा, ‘विंग कमांडर अभिनंदन‘ की गिरफ्तारी, उनके छोड़े जाने की पाकिस्तान की संसद में घोषणा, उनकी भारत मे नाटकीयता से भरपूर वापसी और इस सबको ले कर भारतीयों में अति उत्साह और देशभक्ति का भरपूर संचार।’
अब मैं यदि यह पूछूं की क्या इसके अलावा भी कुछ और महत्व का हुआ मालूम है? तो मेरा आंकलन है कि इसका उत्तर या तो नकरात्मक होगा या फिर कुछ और जानने का समय ही नही मिला की स्वीकारोक्ति होगी।
मेरे लिए इसके अलावा भी जो कुछ हुआ है वह कम महत्वपूर्ण नही है। हम भारत मे बैठ कर भारतीयों के ह्रदय में देश के लिए धधकती ज्वाला को अनुभव कर ही रहे है लेकिन भारत से दूर भारतीयों के ह्रदय में जो ज्वाला धधक रही है, उसकी ऊष्मा को दूसरे लोग अनुभव कर रहे है यह मेरे लिए बड़ा महत्वपूर्ण है।
भारत मे एक तरफ पाकिस्तान और काशमीर के नरेटिव को स्थापित करने में भारतीय मीडिया का एक वर्ग व ज्यादातर विपक्षी दल के लोग लगे हुए है वही पर कुछ लोग इसी काम को विदेश में करने में लगे हुए है। बीते दिनों पुलवामा की घटना के बाद से पाकिस्तान समर्थक अलगावादियों के नेताओ पर शिकंजा कसता जा रहा है और उसकी चीख़ें काशमीर के राजनैतिक दलों के नेतओं से भी निकलने लगी हैं। यह पीडीपी से लेकर नेशनल कॉन्फ्रेंस तक के नेताओं को भी आभास हो गया है कि उनके पास भी कुछ माह का ही समय बचा है जिसमे वे अपने अस्तित्व को बचाने का आखिरी प्रयास कर सकते है।
यह उन लोगो द्वारा आत्मस्वीकृत किया जा चुका है की काशमीर को लेकर राजनैतिक स्थिति अपने निर्णायक दौर में प्रवेश कर चुकी है और इस वक्त विदेश में मोदी सरकार द्वारा बनाये जा रहे काशमीर के नरेटिव को तोड़ने के लिए, विश्व के सामने पीड़ित होने का प्रचार अति आवश्यक है।
इसी क्रम में पुलवामा और बालाकोट की घटनाओं की तपिश से बचते हुए जम्मू काशमीर के नेशनल कॉन्फ्रेंस के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला अमेरिका गये हुये हैं। उनकी इस यात्रा का उद्देश्य वहां, भारत के नरेटिव के विपरीत पाकिस्तान के काशमीर नरेटिव को स्थापित करने के लिए व्याख्यान देना है। इसी क्रम में इस बृहस्पतिवार को अब्दुल्ला को बर्कले यूनिवर्सिटी में व्याख्यान देना था।
उमर अब्दुल्ला वहां जब पहुचे तो वहां आये हुए भारतीय तो मिले लेकिन वो भारतीयों का झुंड अब्दुल्ला को सुनने नही बल्कि सुनाने आया था। भीड़ ने उसको घेर लिया और आक्रोश से भरे सवालों की झड़ी लगा दी। वहां पहुंचे भारतीयों ने उसको देशद्रोही से लेकर हत्यारे होने तक के आरोपों से नहला दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि उमर अब्दुल्ला को व्याख्यान के बीच से ही, वहां से बेइज्जत होंकर भाग जाना पड़ा।
भारत की देशप्रेमी जनता को इसी तरह आक्रमक होने की आवश्यकता है। हमे युद्ध के बीच अपने वीरों के घरवापसी पर उल्लास मनाने की आदत को विराम देना होगा क्योंकि यह हर्ष मनाने का समय नही है। यह हम युद्ध के बाद विजयी होकर ज्यादा सार्थक तरीके से मना लेंगे लेकिन अभी जो भी राष्ट्र के हितों के विरुद्ध बोलता या लिखता दिखाई देता है उसपर काल बनकर टूट पड़ने की आवश्यकता है।
भारत के लिए अगले 3 माह अति महत्वपूर्ण हैं। अभी तमाम तरीके के फरेबों से लोगो को दिग्भ्रमित और आपकी बुद्धि व विवेक को दिशाहीन किये जाने का प्रयास होगा लेकिन आपको सिर्फ और सिर्फ भारत के हितों और उसके लिए युद्धरत प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व पर आंख बंद कर विश्वास करना होगा। यही विश्वास ही वह ऊर्जा देता है जो उमर अब्दुल्ला जैसे पाकिस्तानी परस्त कश्मीरी को भागने के लिए मजबूर कर देता है।
युद्ध शुरु है। सीमा पर युद्ध सैनिक लड़ लेंगे लेकिन घर के अंदर बैठे शत्रुओं से आपको और हमको बिना किसी मर्यादा, शुचिता और हिचकिचाहट के लड़ना है।
– पुष्कर अवस्थी