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शरणार्थियों की समस्या चन्द्रगुप्त और चाणक्य के समय भी थी, जरूर देखें।

भारत की आज की स्थिति इसी लिए है क्योंकि इतिहास से हमने कुछ न सीखने की कसम खायी हुयी है। आज से 2300 वर्ष चन्द्रगुप्त के काल मे भारत के पश्चिमी सीमा पर, पश्चिम से आय शरणार्थियों पर भी प्रश्न खड़े हुये थे और तब भी भारत की मूर्ख जनता और उनके प्रतिनिधियों को चेतावनी दे गई थी, जो आज भी शाश्वत है।

मैं यहां एक वीडियो डाल रहा हूँ ( चाणक्य सीरियल का है) जो कल से वायरल है। उसमें बोले गये संवाद को में यहां आपके पढ़ने के लिये लिख रहा हूँ ताकि आप कल के तक्षिला को भारत और शरणार्थियों को बंगलादेशी/रोहंगिया समझे।

 

 

(आज का धर्मनिरपेक्ष)
“इस मानवतावादी कार्य से दो राष्ट्रों के भावी संबंधो में विकास भी होगा”
(आज का अक्ल से पैदल मानवतावादी हिन्दू)
“शरणार्थियों को आश्रय देने के मानवतावादी कर्त्य का मैं समर्थ करता हूँ ”

(आज का चिंतित राष्ट्रवादी)

बंद करो परम्परा और मानवता की बाते!
हम ही परम्परा और मानवता की बाते करते है और हम ही कुचले जाते है!
दो राष्ट्रों की संबंधो की विकास की बाते करने वाले कुल मुख्य पुरिग्रावा की बात मान ली जाय तो तक्षिला के नागरिक यह निश्चित समझे की शीघ्र ही तक्षिला भी खंड खंड में बटा हुआ जर्जर दिखाई देगा। जिन विदेशियों को शरण देने की बात आप कह रहे है वे ही तक्षिला की भूमि पर अपने अधिकार का दवा करेंगे। जिस मानवतावाद की दुहाई दे आप उन्हें शरण देने की योजना बना रहे है, उन्ही मानवतावादियों की धरती कल धर्म जाति के संघर्ष से लाल हो उठेगी और धरती का कोई मानवतावादी उन संघर्षो के लिए उठी तलवारो को नहीं रोकेगा। कल यही शरणार्थी, आपके साथ सभा में बैठेंगे और आपके निर्णयों को प्रभावित करेंगे।

(कुटिल धर्मनिरपेक्ष)
“धर्म को जाति के नाम पर परंपराओं को कलंकित मत करो रिपुदमन!”

(आक्रोशित राष्ट्रवादी)

‘सत्य को स्वीकार करो भुरिग्रावा। जहाँ तक तक्षिला के भविष्य का प्रश्न है वहा भावनाओ का कोई स्थान नहीं है। हमारा धर्म अलग हमारी भाषा अलग हमारा व्यवहार अलग, कल इन्ही भेदो के नाम पर भेदभाव होगा और संघर्ष होगा। हम अपनी परंपराओं को नहीं छोड़ना चाहते तो क्या वे अपनी परंपरा छोड़ेंगे? कल यही शरणार्थी आपके राज्य के अविभाज्य अंग होंगे और यही आपके सामने बैठ कर अपने तथाकथित अधिकारों की मांग करेंगे, तब आपका मावतावादी ह्रदय उन पर हथियार उठाने से संकोच महसूस करेगा। क्या पौर सभा मुझे आश्वासन दे सकती है की कल शरणार्थियों के कारण गांधार खंडित नहीं होगा? क्या कोई पौर मुझे आश्वासन दे सकता है की कल यही शरणार्थी अपनी मातृभूमि लौट जायेंगे? क्या पौर सभा स्वयं आश्वस्त है की शरणार्थियों के पुनर्वसन के नाम पर शासन तक्षिला की प्रजा पर नवीन करों का बोझ नहीं लादेगा?’

कितना विचित्र है कि टमाटर, प्याज, पेट्रोल की कीमतों को न झेलने वाले भारतीयों को उनके करों से भारत मे घुसे 3 करोड़ शरणार्थियों पर हो रहे खर्चे पर कोई तकलीफ नही होती है।

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