#जलियांवाला बाग नरसंहार, किसका बदन सिहर नहीं उठता जलियांवाला बाग का नाम सुनकर? ऐसा कोई हिंदुस्तानी नहीं, जो अंग्रेजों के प्रति घृणा से भर नहीं उठता होगा जलियांवाला बाग का नाम सुनकर। पर उधम सिंह जैसे देश के वीर सपूत ने अंग्रेजों की इस कायरता का भरपूर जवाब दिया। देश में भगत सिंह और आजाद जैसे राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों की पूरी टोली ने अंग्रेजों का जड़ उखाड़ने में खुद को झोंक दिया, तो आज ही के दिन अंग्रेजों की फांसी पर इंग्लैंड में झूल जाने वाले सरदार उधम सिंह ने इसका बदला अंग्रेजों की सरजमी पर जाकर लिया, वो भी 21 सालों के बाद।
वे गवाह थे उन हजारों बेनामी भारतीयों की नृषंश हत्या के, जो तत्कालीन जनरल डायर के आदेश पर गोलियों के शिकार हुए थे। यहीं पर उन्होंने उन्होंने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर जनरल डायर और पंजाब के गवर्नर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। जिसके बाद क्रांतिकारी घटनाओं में उतर पड़े। सरदार उधम सिंह क्रांतिकारियों से चंदा इकट्ठा कर देश के बाहर चले गए और दक्षिण अफ्रीका, जिम्बॉव्बे, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा कर क्रांति के लिए धन इकट्ठा किया। इस बीच देश के बड़े क्रांतिकारी एक-एक कर अंग्रेजों से लड़ते हुए जान देते रहे। ऐसे में उनके लिए आंदोलन चलाना मुश्किल हो चला था। पर अपनी अडिग प्रतिज्ञा के पालन के पर वो डटे रहे।
सरदार उधम सिंह ने जलियांवाला बाग नरसंहार के समय पंजाब के गवर्नर रहे माइकल ओ डायर को उसी की सरजमीं पर गोलियों से भून डाला। और ठीक सरदार भगत सिंह के अंदाज में आत्मसर्मपण कर दिया। खास बात तो ये थी कि उन्होंने माइकल ओ डायर के अलावा किसी को निशाना नहीं बनाया, क्योंकि वहां पर महिलाएं और बच्चे भी थे। अंग्रेजों ने फांसी की सजा की सुनवाई के दौरान जब उधम सिंह से पूछा कि उन्होंने किसी और को गोली क्यों नहीं मारी, तो वीर उधम सिंह का जवाब था कि सच्चा हिंदुस्तानी कभी महिलाओं और बच्चों पर हथियार नहीं उठाते। ऐसे थे हमारे शहीद-ए-आजम सरदार उधम सिंह। उधम को बाद में शहीद-ए-आजम की वही उपाधि दी गई, जो सरदार भगत सिंह को शहादत के बाद मिली थी।
लंदन के केकस्टन हाल में माइकलओडवायर को मारने के बाद बैरिक्सटन जेल में रहे ऊधम सिंह को पूरा आभास था कि जल्द ही उन्हें फांसी दी जाएगी और उन्हें इसकी जरा भी परवाह नहीं थी। ऊधम सिंह फांसी से इतने बेखौफ थे कि वो फांसी के फंदे को वरमाला के रूप में देख रहे थे। जेल में रहते हुए उन्हें इस बात का मलाल भी था कि उनके मुकद्मे पर भारी पैसा खर्च हो रहा है और उन्हें बचाने की कोशिश नहीं की जाए।
उक्त जज्बात खुद ऊधम सिंह ने अपने हस्तलिखित पत्रों में जाहिर किए हैं। अंग्रेजी में लिखे इन पत्रों को पंजाबी में अनुवाद करके महान शहीद ऊधम सिंह के पैतृक घर में लगाया गया है और इन पत्रों को पढ़कर लोगों में देशभक्ति की भावना पैदा हो रही है। बता दें कि शहीद ऊधम सिंह ने 31 जुलाई को फांसी का फंदा चूमा था।
फांसी का फंदा चूमने से महज पौने चार माह पहले बैरिकस्टन जेल से लंदन में मित्र शिव सिंह जौहल को लिखे पत्र में ऊधम सिंह ने कहा कि मुझे मालूम है कि जल्द ही मेरी शादी मौत से होने वाली है। मैं मौत से कभी नहीं डरा और मुझे कोई अफसोस नहीं हैं। क्योंकि मैं अपने देश का सिपाही हूं। दस वर्ष पहले मेरा दोस्त मुझे छोड़ गया था। मरने के बाद मैं उसे मिलूंगा और वह भी मेरा इंतजार कर रहा होगा।
अगर आपको पता है कि मेरी मदद कौन कर रहा है तो कृपा करके उन्हें ऐसा करने से रोकें। मुझे खुशी होगी। यह पैसा जरूरतमंदों की पढ़ाई पर खर्च करें। इसके अलावा कई अन्य पत्रों में ऊधम सिंह ने उस वक्त के देश की दयनीय हालात बयां की है। इसके लिए ब्रिटिश साम्राज्यवाद को जिम्मेदार ठहराया है। शहीद ऊधम सिंह ने इन पत्रों में देश प्रेम का जज्बा कूटकूट कर भरा है। आज के नौजवानों को इस जज्बे से अवगत करवाने की जरूरत है।
अमर शहीद सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था। सन 1901 में उधम सिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। उधम सिंह का बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्ता सिंह था जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधम सिंह और साधु सिंह के रूप में नए नाम मिले। पर सरदार उधम सिंह ने भारतीय समाज की एकता के लिए अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है।
उधम सिंह भले ही अनाथालय में पल रहे थे, पर देश प्रेम को अपने अंदर पाल रहे थे। अनाथालय में उधम सिंह की जिंदगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया। वह पूरी तरह अनाथ हो गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए। उधम सिंह अनाथ हो गए थे, लेकिन इसके बावजूद वह विचलित नहीं हुए और देश की आजादी तथा डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहे।
आज 31 जुलाई को उनके #बलिदान_दिवस पर शत शत नमन….
यह पूरा देश वीर बलिदानी उधम सिंह का कर्जदार है…
और उनका परिवार कर्ज तले दब कर आत्महत्या करे..
हम शर्मसार हैं