सन 1950 के उत्तरार्ध के आते-आते सरदार पटेल की मृत्यु हो चुकी थी। शेष केंद्रीय मंत्री और ऊंचे कद के प्रभावी लोग नेहरू की तानाशाही के आगे नतमस्तक हो चुके थे
1947 में दिल्ली में जिस मंत्रिमंडल ने शपथ ली थी वह खालिस कांग्रेस सरकार नहीं थी… गांधी की इच्छानुसार वह एक राष्ट्रीय सरकार थी…
डॉक्टर अम्बेडकर और डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे गैर कांग्रेसी भी मंत्री बनाए गए थे… मगर नेहरू की हिन्दू विरोधी-शेख अब्दुल्लाह समर्थक नीतियों के चलते डॉक्टर मुखर्जी ने त्यागपत्र दे दिया।
हिन्दू जागरण और संरक्षण की भावना के चलते डॉक्टर मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की… जम्मू प्रजा परिषद के स्थापक सदस्य रहे… अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना की और शायद भारतीय मजदूर संघ की भी…
डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की शैक्षिक पृष्ठभूमि सबसे ज़्यादा चमकदार थी… वह इंटरमीडिएट, आर्ट्स परीक्षा में बंगाल टॉपर थे… प्रथम श्रेणी में स्नातक और परास्नातक हुए… डॉक्टरेट की डिग्री और ‘बैचलर इन लॉ’ पास किया…
सिर्फ 32 वर्ष की आयु में कलकत्ता यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर बने… 38 वर्ष की आयु में बंगाल की संयुक्त सरकार में वित्त मंत्री थे… 1947 में देश के उद्योग मंत्री बने थे… उन्होंने 1933 में संयुक्त बंगाल में हिंदुओं के लिए एक अलग प्रदेश मांगा था, क्योंकि मोमिन वर्ग पूर्वी बंगाल में हिंदुओं पर अप्रतिम अत्याचार कर रहा था।
मई 1952 में पंडित प्रेमचंद्र डोगरा ने दिल्ली के वेस्टर्न कोर्ट में रोते हुए डॉक्टर मुखर्जी को कश्मीर के हिंदुओं की दर्दनाक दास्तान सुनाई… डॉक्टर साहब भी हज़ारों कश्मीरी हिंदुओं की हत्याओं, लूटपाट, बलात्कार और संपत्ति छीनने की घटनाओं को सुनकर रो पड़े…
जम्मू-कश्मीर में भारत का संविधान आज भी लागू नहीं है… उस वक्त भी नहीं था… डॉक्टर मुखर्जी ने कहा कि वह जल्दी ही जम्मू कश्मीर आएंगे… शेष भारत के निवासियों को कश्मीर में घुसने से रोकने के लिए बनी परमिट व्यवस्था को तोड़ेंगे…
नेहरू कह रहे थे कि कश्मीर पूरी तरह भारत मे मिला लिया गया है… शेख अब्दुल्ला कहता था कि कश्मीर भारत देश के अंदर दूसरा स्वयंभू राष्ट्र है… डॉक्टर मुखर्जी ने कहा कि वह दोनों को एक्सपोज़ करेंगे… सच्चाई देश के सामने लाएंगे…
उनके गुरूजी प्रणवानंद और माताजी ने डॉक्टर मुखर्जी को कश्मीर जाने से मना किया मगर अनहोनी को तो होना ही था…
8 मई 1952 को डॉक्टर मुखर्जी ने जम्मू की तरफ ट्रेन से प्रस्थान किया… हज़ारों लोगों को कश्मीर की स्थिति… शेख अब्दुल्ला और नेहरू की षड्यंत्रकारी चालों से अवगत कराते हुए वह 9 मई को फगवाड़ा पहुचे…
वहीं उन्हें शेख अब्दुल्ला जो कश्मीर का प्रधानमंत्री था, का संदेश मिला कि आप जम्मू कश्मीर में न आएं… यदि आये तो आपको अरेस्ट कर जेल में डालना पड़ेगा…
इसके उलट 10 मई को ‘दिल्ली’ से संदेश आया कि आपको जम्मू कश्मीर जाने दिया जाएगा…
मूलतः यह एक चाल थी कि कहीं डॉक्टर मुखर्जी किसी भी कारणवश कश्मीर दौरा रद्द न कर दें…
11 मई को जम्मू और पंजाब की सीमा रेखा पर रावी नदी के लखनपुर पुल पर कश्मीर मिलिशिया ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया… डॉक्टर मुखर्जी को जम्मू-कठुआ जेल में भी रखा जा सकता था… परंतु अगले दिन दोपहर 3 बजे बिना स्वास्थ्य परीक्षा… डॉक्टर मुखर्जी को श्रीनगर जेल में डाल दिया गया।
इधर दिल्ली में जनसंघ के नेता श्री मौली चंद्र शर्मा, नेहरू से मिले… डॉक्टर मुखर्जी की जान को खतरा बताते हुए… डॉक्टर मुखर्जी को शेख अब्दुल्लाह की कैद से छुड़वाने की अपील की…
नेहरू ने साफ मना कर दिया… तब मौली चंद्र शर्मा ने कहा कि कम से कम जम्मू जेल में ही डॉक्टर मुखर्जी को रखा जाये… तब नेहरू ने व्यंग्य किया “अब कश्मीर की ठंडी वादियों में डॉक्टर मुखर्जी अपनी नेतागिरी दिखाएं… ठीक रहेंगे।”
रहस्यमय तरीके से डॉक्टर मुखर्जी को सेंट्रल जेल से निकलकर एक एकांत भवन में कैद करके रखा जाने लगा… कुछ लोग-परिजन दिल्ली और कलकत्ता से डॉक्टर मुखर्जी से मिलने श्रीनगर तक पहुंचे, मग़र उन्हें डॉक्टर मुखर्जी से मिलने नहीं दिया गया…
डॉक्टर मुखर्जी के पुत्र अपने पिता ने मिलने के लिए 7 दिन तक दिल्ली में केंद्र और कश्मीर सरकार के दफ्तर में चक्कर काटते रहे… मगर उन्हें परमिट नहीं दिया गया…
हद तब हो गई जब उनके वकील श्री उमाशंकर त्रिवेदी को भी श्रीनगर जाने की अनुमति नहीं मिली, जब तक जम्मू हाईकोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका श्रीनगर में दायर करने की अनुमति नहीं दे दी…
इसी बीच यकायक प्रधानमंत्री नेहरू रहस्यपूर्ण तरीके से बगैर किसी पूर्व योजना के दिनांक 24 मई 1952 को श्रीनगर जा पहुचे… शेख अब्दुल्लाह से मन्त्रणा भी हुई… कुछ महीनों पूर्व तक के अपने मंत्रिमंडलीय सदस्य डॉक्टर मुखर्जी से उन्होंने मिलने की ज़रूरत नहीं समझी… नेहरू 4 दिन श्रीनगर में ‘आराम’ करते रहे…
19 जून 1952 को डॉक्टर मुखर्जी ने पीठ और छाती में दर्द की शिकायत की… एक टटपुँजिया डॉक्टर अली मोहम्मद ने डॉक्टर मुखर्जी का ‘परीक्षण’ किया और घोषित किया कि ‘साधारण’ दर्द है…
डॉक्टर अली मोहम्मद ने स्ट्रेप्टोमाइसिन नामक इंजेक्शन लगाने के लिए निकाला… डॉक्टर मुखर्जी ने तुरंत डॉक्टर अली मोहम्मद को बताया कि स्ट्रेप्टोमाइसिन उन्हें रिएक्शन करती है… लेकिन डॉक्टर अली मोहम्मद ने ज़बरदस्ती इंजेक्शन ठोंक डाला…
डॉक्टर मुखर्जी को तुरंत ही बुखार आ गया और दर्द बढ़ने लगा… रात तक दर्द असह्य हो गया… डॉक्टर मुखर्जी के साथ गुरुदत्त (महान लेखक) भी जेल में थे… उन्होंने किसी तरह डॉक्टर अली मोहम्मद को सूचना भिजवाई…
डॉक्टर अली मोहम्मद किसी ‘विशेष व्यक्ति के निर्देश’ पर तुरन्त जेल नहीं पहुंचा… डॉक्टर मुखर्जी तड़पते रहे… सुबह 8 बजे डॉक्टर इस बहाने के साथ जेल पहुँचा कि अस्पताल में भर्ती के लिए जिलाधिकारी, श्रीनगर की अनुमति ज़रूरी थी…
बमुश्किल जिलाधिकारी ने ‘ऊपर’ से अनुमति प्राप्त कर डॉक्टर मुखर्जी को अस्पताल में भर्ती की अनुमति दी… मरते-तड़पते डॉक्टर मुखर्जी को जेल से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित अस्पताल ले जाने की अनुमति में नौ घंटे खर्च कर दिए गए…
बेहोश हालात में डॉक्टर मुखर्जी को जेल के अस्पताल में अकेला (बग़ैर किसी सहायक) भर्ती कर दिया गया… एक नर्स जिसका नाम उमा टिक्कू था, ने बताया था कि उसने इलाज के रूप में डॉक्टर अली मोहम्मद द्वारा दी गईं कुछ गोलियां डॉक्टर मुखर्जी के मुँह में येन केन प्रकारेण डाल दी थीं…
रात में किस वक्त डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु हो गई, किसी को नहीं मालूम! मगर मृत्यु का समय… रात 3 बजे लिखा गया… उस वक्त डॉक्टर मुखर्जी के आस-पास कोई नहीं था… डॉक्टर मुखर्जी की उम्र सिर्फ 52 बरस थी उस समय…
डॉक्टर मुखर्जी के वकील श्री उमाशंकर त्रिवेदी ने पोस्टमार्टम की अपील की, जिसे ठुकरा दिया गया… तुरंत शव को हवाई जहाज़ से रवाना कर दिया गया… तत्कालीन केंद्र सरकार ने भी पोस्ट मार्टम की ज़रूरत नहीं समझी… नेहरू 2 दिन पूर्व ही लंदन यात्रा पर निकल चुके थे…
डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी सरदार बल्लभ भाई पटेल की तरह सिर्फ 5 बरस और ज़िंदा रहते तो देश की तस्वीर कुछ और होती… डॉक्टर मुखर्जी भी जनाधार वाले कड़क नेता थे… कश्मीर और देश के मिजाज़ को समझते थे… उनकी संगठन क्षमता तो पटेल जी से भी ज़्यादा मानी जाती थी…
15 दिन बाद जब नेहरू वापस आ चुके… डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की माता सुश्री जोगमयी जी ने नेहरू से मुलाकात के लिए समय मांगा… बमुश्किल समय दिया गया… माँ जोगमयी ने अपने पुत्र की रहस्यपूर्ण मृत्यु की जांच की मांग की… गुस्सैल नेहरू ने एक मां की एक बेहद साधारण मांग भी ठुकरा दी….
किस तरह हवा में ही लटकाए रखा गया डॉ मुखर्जी के शव को ला रहे विमान को
विमान पहले दिल्ली तक जाना था, फिर केंद्र की आज्ञानुसार उसे अम्बाला ले जाना तय हुआ। जब विमान जालंधर के ऊपर से गुज़रते हुए अम्बाला की तरफ बढ़ रहा था तो आज्ञा आई कि जालंधर में ही उतरना होगा।
जहाज़ लौट कर जालंधर आया तो उसे उतरने की अनुमति नहीं मिली। दोपहर साढ़े 12 बजे से दो बजे तक जहाज़ जालंधर के ऊपर मंडराता रहा। फिर 2 बजे आज्ञा हुई कि आदमपुर हवाई अड्डे पर उतरना होगा।
आदमपुर में डॉ मुखर्जी की देह को पहले से ही तैयार खड़े एक अन्य विमान में रखकर कलकत्ता के लिए रवाना किया गया। इस तरह श्रीनगर से सुबह 10 बजकर 40 मिनट पर रवाना की गई डॉ मुखर्जी की पार्थिव देह, रात आठ बजकर पचास मिनट पर कलकत्ता के दमदम हवाई अड्डे पर पहुँचाई जा सकी, अर्थात श्रीनगर से कलकत्ता पहुँचने में दस घंटे से भी अधिक का समय लगा।
पूरे कलकत्ता में कोलाहल मचा हुआ था। इतनी बड़ी संख्या में जन समुदाय हवाई अड्डे पहुंचा हुआ था कि वहाँ से निकलने में ही लगभग एक घंटा लग गया। जिस रास्ते से डॉ मुखर्जी की देह को उनके घर तक ले जाना था, उस समूचे मार्ग पर दोपहर ढाई बजे से ही लोग प्रतीक्षारत बैठे थे।
रात लगभग पौने दस बजे हवाई अड्डे से शुरू हुई शवयात्रा सुबह पांच बजे डॉ साहब के पारिवारिक निवास पहुँच सकी। शोक और क्रोध से ग्रस्त समूचा कलकत्ता नगर अपने नेता के अंतिम दर्शन के लिए सारी रात जागता रहा।
साभार: अंकित कुमार