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चीन के कब्जे में सियाचिन से उत्तर का हिस्सा

सियाचिन से उत्तर महाराज हरिसिंह के राज्य का कुछ हिस्सा १९६३ ईस्वी तक पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से अधिकृत कश्मीर का अङ्ग था जिसे १९६३ ई⋅में पाकिस्तान ने चीन को दे दिया । चीन को दिये गये क्षेत्र के दो खण्ड हैं, सियाचिन से सटा छोटा खण्ड है जिसे आज भी भारत अपने मानचित्र में दिखाता है और अपना भाग मानता है,किन्तु उससे उत्तर का बड़ा हिस्सा भी कश्मीर का हिस्सा था जिसकी चर्चा अब कोई भारतीय लेखक या मीडिया नहीं करते ।

संलग्न चित्र में दो मानचित्र हैं,ऊपर पहला मानचित्र कश्मीर का उत्तरी भाग है जिसमें १९६३ ई⋅ में पाकिस्तान द्वारा चीन को हस्तान्तरित दोनों खण्डों को क्रमशः “१” तथा “२” संख्याओं से मैंने दिखाया है । खण्ड “१” पर आज भी भारत दावा करता है किन्तु खण्ड “२” पर न तो भारत दावा करता है और न ही किसी सरकारी या गैर−सरकारी भारतीय मानचित्र में अब इसे भारत का हिस्सा बताया जाता है । भारत ने कभी इसे चीन का या पाकिस्तान का भी हिस्सा नहीं माना । यह खण्ड−२ बहुत बड़ा भूभाग है जिसपर भारत ने चुपचाप दावा करना छोड़ दिया और कभी कोई कारण नहीं बताया । सम्भव है RTI के द्वारा आपलोग भारत सरकार से कुछ उगलवा सके,इतना बड़ा भूमि−घोटाला विश्व इतिहास में कहीं नहीं मिलेगा — गुप्त रूप से भूभाग का स्थानान्तरण!केन्द्र के भाजपा नेताओं को तो पता भी नहीं होगा कि इतना बड़ा घोटाला काँग्रेस कर चुकी है ।

अक्साई−चिन होते हुए तिब्बत से चीनी सिंकियांग को जोड़ने के लिये चीन को उस भूभाग की आवश्यकता थी जिस कारण चीन ने पाकिस्तान से वह भाग लिया,किन्तु पाकिस्तान के अनुसार भी वह भाग “आजाद कश्मीर” का अङ्ग है और पाकिस्तान का वैध अङ्ग नहीं है,अतः पाकिस्तानी कानून के अनुसार भी पाकिस्तान को कोई अधिकार नहीं है कि भारत अथवा “आजाद कश्मीर” का अङ्ग चीन को दान कर दे । यह मामला तो अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का है!किन्तु भारत दावा करे तब न !

ऊपर वाले प्रथम मानचित्र का स्रोत है अमरीका की गुप्तचर संस्था CIA और यह मानचित्र विकिपेडिया पर भी उपलब्ध है । CIA वाले मानचित्र में श्वेत रङ्ग का सियाचिन हिमनद पाकिस्तान के हिस्से में दिखाया गया है,यद्यपि कुछ ही दिनों तक यह पाक कब्जे में था जिसे वाजपेयी शासन के दौरान भारत ने वापस छीन लिया । CIA भारत की विरोधी है ।

चित्र में नीचे दूसरा मानचित्र है जो ब्रिटेन के सबसे विश्वसनीय मानचित्र प्रकाशक का है,१८९३ ईस्वी का । उस समय वर्तमान पाकिस्तान का उत्तरी भाग भी अफगानिस्तान में था,अंग्रेजों के नियन्त्रण से बाहर । इस मानचित्र में अरुणाचल प्रदेश (NEFA) को स्पष्ट नहीं दिखाया गया है क्योंकि उसकी सीमा का निर्धारण स्पष्ट नहीं था और तिब्बत या चीन से कोई समझौता नहीं था,किन्तु वह पहले से ही ब्रिटिश इण्डिया का अङ्ग था जैसा कि इस लेख में मिलेगा —

https://en.wikipedia.org/wiki/North-East_Frontier_Agency

सिया−चिन और अक−सिया−चिन में परस्पर भौगोलिक ही नहीं,परस्पर भाषाई सम्बन्ध भी है,किन्तु हमारे बुद्धिजीवीयों को भी चीनी ( वस्तुतः तिब्बी ; त्रिभोट से बना ति−भोट और फिर तिब्बोट तिब्बत ) अपभ्रंश “अक्साई” ही पसन्द है,संस्कृत “अक्ष” से बने “अक्षिया ⁄ अक् सिया” नहीं ।

संलग्न मानचित्र के पूर्वोत्तर कोने में प्राचीन अक्षोतान राज्य की राजधानी है जिसका नाम पाश्चात्य इतिहास ग्रन्थों में “अ” का लोप होने के कारण ख़ोतान मिलेगा और वर्तमान चीनी वर्तनी “ह़ोतान” । चीन के इतिहास के एक प्रतिशत हिस्से में ही ख़ोतान पर चीन का आधिपत्य था,सिया−चिन और अक−सिया−चिन पर तो नेहरू से पहले कभी नहीं!भारत के उत्तरी व्यापार हेतु यह अत्यधिक महत्वपूर्ण मार्ग था । इसी रास्ते भारत ने चीन को पहले सनातनी और बाद में बौद्ध बनाया था,वरना पाँच लाख वर्ष पहले से ही पेकिंग मैन नरभक्षी हुआ करते थे और उनके वंशज आजतक चमगादड़−भक्षी वैम्पायर हैं ।

चीन ने १९६२ ई⋅ में नेहरू के कायरपने के कारण अक्साइ−चिन भारत से छीन लिया जिसमें एक भी स्थायी गाँव नहीं था,और तभी से पाकिस्तान से सियाचिन से उत्तर के कश्मीर के भाग लेने की वार्ता आरम्भ की जो १९६३ ई⋅ में पूरी हुई । अक्साई−चिन हथियाने तथा पाकिस्तान से कश्मीरी क्षेत्र लेने के पीछे चीन के उद्देश्य दो थे —

१⋅ पश्चिमी तिब्बत को सिंकियाङ्ग होते हुए चीन से सड़क द्वारा जोड़ने का यह एकमात्र उपाय था,और

२⋅ भारत की उत्तरी सीमा के कश्मीर से कुमायूँ तक के खण्ड तक सड़कों का जाल बिछाकर चीनी सेना और सामग्रियों को लाने का भी एकमात्र उपाय यही था ताकि भारत पर सदैव सैन्य दवाब बना रहे ।

अतः नेहरू का यह तर्क असत्य था कि अक्साइ−चिन जनशून्य होने के कारण भारत को कोई क्षति नहीं ।

आज भारत सरकार पाक−अधिकृत−कश्मीर को वापस लेने की माँग करने लगी है तो चीन के कान खड़े हो गये हैं क्योंकि यदि भारत को खोये हुए भाग वापस मिल गये तो सम्पूर्ण पश्चिमी तिब्बत से चीन का सम्पर्क टूट जायगा और तब पूर्वी तिब्बत में भी विद्रोह भड़केंगे जिसे भारत की सहायता मिल गयी तो पूरा तिब्बत चीन के चँगुल से निकल सकता है । अमरीका आदि भी चीन से नाराज हैं। अतः भारत के लिये समय आ गया है कि सियाचिन से उत्तर के कश्मीरी भूभागों को लेने की शान्तिपूर्ण माँग उठाये । शान्ति से काम नहीं चलेगा,किन्तु पहले माँग तो उठाना आरम्भ करे ।

सरकार को सूचित करें,अपनी−अपनी भाषाओं में संक्षिप्त सन्देश दें । मेरे लेख को कॉपी करके मत भेजें,किन्तु मानचित्र भेज सकते हैं ।

– श्री विनय झा

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