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ये कैसी श्रद्धा है?

गुजरात में समाज के लोग परिवार के वयोवृद्ध लोगों के अतिरिक्त अगर किसी को अप्रतिम सम्मान देना हो तो उसे बापू कहते हैं। यह गाँधी जी, ठक्कर बापा, प्रसिद्ध कथावाचक आसा राम बापू, मुरारी बापू जैसे लोगों के लिये आरक्षित सा है यानी यह सम्मान केवल सामाजिक कार्यकर्ताओं, सन्यासियों, संतों के लिये ही है। ऐसा नहीं है कि धीरू भाई अंबानी को उनके कर्मचारी बापू पुकारते हों।

हिंदु समाज प्रभु राम, प्रभु कृष्ण की कथा कहने वाले लोगों के प्रति श्रद्धावनत हो कर उनके चरण पखारता है। उनकी कथा की गद्दी को व्यास पीठ कहता है। उनके कृत्यों को दैवीय मानता है। यह सब हमारी ओर से है। यहाँ एक प्रश्न आप सबसे पूछना चाहता हूँ। क्या हमें बापू या बापा पुकारे जाने वाले व्यक्ति से कुछ आशा रखनी चाहिए या नहीं ? क्या हमें व्यास पीठ से धर्म के अनुकूल कुछ गरिमा की अपेक्षा करनी चाहिये या नहीं ?

बहुत से बंधु कथावाचन के तंत्र से परिचित नहीं होंगे अतः इसके बारे में चर्चा करनी उपयुक्त होगी। बहुत बड़ा पंडाल लगाने, अपना साउंड सिस्टम ही रखने {जी हाँ यह कथावाचक उपयुक्त प्रभाव के लिये पचीसों लाख का साउंड सिस्टम, वाद्य यंत्र और तय वादक लाते हैं}, अपने तथा अपने साथ के लोगों के लिये रहने-खाने-पीने की मनोनुकूल व्यवस्था करवाने आदि के अतिरिक्त करोड़ों की दक्षिणा, पहले दिन और अंतिम दिन या जैसा तय कर निचोड़ा जा सके, की पूरी दक्षिणा लेने, मुख्य यजमान की ओर से मिलने वाली पूरी दक्षिणा अपने लिये धरवाने का मामला होता है।

कोई पैट्रोल पम्प चलाता है तो कोई सब्ज़ी बेचता है तो कोई रत्न बेचता है तो कोई कथा आदि नाना प्रकार के कार्य करता है। मूलतः यह सब आजीविका चलाने के साधन हैं। कथावाचन में प्रभु का नाम जुड़ जाने के कारण इसमें हम दैवीय अंश ढूंढ लेते हैं मगर इसमें दैवीय क्या है ?

इतनी भूमिका बाँधने का कारण यह है कि मुरारी दास प्रभु दास हरियाणी जिन्हें लोग आदर से मुरारी बापू कहते हैं, जो भारत के कथावाचकों में सबसे महंगे हैं और संभवतः इसी कारण वरिष्ठतम माने जाते हैं आज कल बरेली में कथा कर रहे हैं। अभी तीन दिन पहले उन्होंने कथा के मँच को वसीम बरेलवी एंड पार्टी की अध्यक्षता में मुशायरे के मँच में बदल दिया।

वो अनेक कथाओं में हरिनाम संकीर्तन को अली मौला अली मौला के गान में भी बदलते रहे हैं। अली मौला के गान की प्रशंसा करते हुए वो कहते हैं कि मैं अली मौला कह नहीं रहा हूँ वो मुझसे अंदर से कहलवा रहा है। श्रोता ताली बजा-बजा कर अली मौला का स्वयं भी कीर्तन करते दिखाई देते हैं। ऐसे ही एक कार्यक्रम में स्टेज पर गोल टोपी वाला कोई है और सामने इस्लामी समाज के अनेक लोग बैठे हुए हुए हैं। जिसमें वो अपनी तुलना मंसूर और सरमद से करते हैं कि वो मुझसे अनल हक़ की तरह कहलवा रहा है। इसी झोंक में वो अली मौला अली मौला के बाद बुद्धं शरणं गच्छामि गाने लगते हैं। अनेक बार वो स्वयं को साधु भी कहते हैं।

यहाँ मैं उन तक और उनकी कथा के श्रोताओं तक कुछ प्रश्न पहुँचना चाहता हूँ। क्या आपको मालूम है कि अली मौला स्वयं और उन की बिरादरी हरिनाम का संकीर्तन करने वाले आज आप और तब के मूर्तिपूजक अरब लोगों को काफ़िर कहती है और वाजिबुल-क़त्ल अर्थात मार डालने के योग्य मानती है। क्या आपको मालूम है इस्लाम के दसियों युद्धों के साथ बनू क़ुरैज़ा में अली मौला ने स्वयं सैकड़ों काफ़िरों का क़त्ल किया था। क्या आपको मालूम है इस्लाम के सभी नेता सैनिक रहे हैं और उन सबने निर्विवाद रूप से मूर्तिपूजकों की हत्यायें की हैं।

क्या आपको मालूम है अफ़ग़ानिस्तान बौद्ध क्षेत्र था और उसका बौद्ध चरित्र अली मौला और इसी तरह के इमामों को मानने वालों ने नष्ट किया। तक्षशिला, नालंदा बौद्ध विश्विद्यालय थे और उन्हें नष्ट करने वाले अली मौला के अनुयायी थे। क्या आपको मालूम है कि सरमद दिल्ली के एक सुंदर, कमसिन जैन लड़के पर आशिक़ था और उसे अपना ख़ुदा कहता था और इसी आरोप में उसे मृत्युदंड दिया गया था। संभव है इसे कोई मेरी कल्पना बता दे अतः कुछ संदर्भ प्रस्तुत हैं।

मृत्यु शैय्या पर पड़े मुहम्मद ने अरब प्रायद्वीप के सभी ग़ैरमुस्लिमों का सफ़ाया करने का हुक्म दिया था। सहीह बुख़ारी वॉल्यूम 4, किताब 52, नंबर 288

साब बिन जस्सामा से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल यानी मुहम्मद से जब रत के हमलों में बहुदेववादियों {यह भी बताना पड़ेगा कि बहुदेववादी अर्थात कौन } की औरतों व बच्चों के क़त्ल के बारे में पूछा गया तो उसने कहा: वे काफ़िरों की महिलाएं और बच्चे हैं। सहीह मुस्लिम किताब 019 नंबर 4321, 4322, 4323

मुहम्मद ने कहा था कि ‘मैं ख़ौफ़ पैदा कर विजेता रहा हूँ’ सहीह बुख़ारी 4.52.220

1981 में मौला अली के ससुर मुहम्मद के जन्मदिन पर मौला अली के मानने वाले शिया लोगों के सबसे बड़े नेता अयातुल्ला ख़ुमैनी ने भाषण में कहा “मेहराब {मस्जिद} का मतलब है जंग की जगह। मेहरबों से जंग आगे बढ़नी चाहिये जैसा कि इस्लाम की सभी जंगों की कार्यवाही मेहराबों से शुरू हुई। रसूल के पास दुश्मनों को मारने के लिए तलवार थी। हमारे सभी इमाम लड़का रहे हैं। वे सब फ़ौजी थे। वे लोगों की हत्याएं करते थे। हमें एक ख़लीफ़ा की ज़रूरत है जो हाथों को काट सके, सर धड़ से उड़ा सके और पत्थर मार कर लोगों की हत्या करने का हुक्म दे सके। Ayatollah Khomeini: A speech delivered on the commemoration of the birth of Muhammad, in 1981

मुरारी बापू और उनके श्रोताओं ! कभी अली मौला अली मौला का संकीर्तन करते समय आपके मन में अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, आज़रबैज़ान, क़ज़्ज़ाक़िस्तान, उज़्बेक़िस्तान आदि से धर्म किसने नष्ट किया, की बात उठी है ? कश्मीर से हिन्दुओं के निकाल दिये जाने पर अली मौला ने आपके अंदर या बाहर से कभी कोई देशना डाली है या बस शिया मुल्लाओं को सामने देख कर अली मौला अंदर से गान करवाना ही चाहते हैं ?

क्या आपमें से किसी ने मुरारी बापू से स्वयं को साधु बताने पर पूछा है कि साधु तो परिवार-गृह त्याग करने वाले सन्यासी को कहते हैं। आप तो पत्नी, बाल-बच्चों वाले हैं तो स्वयं को साधु क्यों कहते हैं ? आपके परिवारी जन कठिन भाव-ताव कर कथाएँ तय करते हैं। आपमें और किसी अन्य व्यापारी में क्या अंतर है ? आपसे हम अपेक्षा करते हैं कि आप धर्म की चर्चा करेंगे, धर्म नष्ट करने वालों के बारे में हमें अवगत कराएँगे मगर आप तो धर्मद्रोहियों का महिमामंडन करने में लगे हुए हैं। कुछ अपुष्ट स्रोतों से पता चला है कि मुरारी बापू की अपनी पुत्री उनके मुसलमान तबला वादक से ब्याही हुई है। कहीं इस अली मौला गान की जड़ें अंदर की जगह बाहर से तो नहीं प्रकट हुईं ?

श्रोताओं, आयोजकों यह मंच आपका है। मुरारी बापू को इस्लाम की वास्तविकता का ज्ञान नहीं है और वो व्यास पीठ की मर्यादा का पालन नहीं कर रहे तो इसमें आपका कोई कर्तव्य नहीं है ? आप कुछ नहीं बोलेंगे ?

अब इनसे पूछ कर सामान्य गणित का प्रश्न बताइये कि बरेली, सूरत, मुंबई आदि के कराची, लाहौर, पेशावर बनने में अर्थात धर्म नष्ट हो कर अली मौला का शुद्ध क्षेत्र बनने में कितना समय लगेगा ?

– तुफ़ैल चतुर्वेदी

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