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काशमीरी पंडितों पर हुए अत्याचार के ज़िम्मेदार हिन्दू भी

सितम्बर 1989 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए मैं पोलैन्ड गया था, और सितम्बर 1993 में वापस आ गया था। इस बीच भारत में पाकिस्तान की शह पर आतंकवादियों ने स्थानीय मोहम्मेडन लोगों की मदद से कश्मीर से हिन्दुओं का नाम ही लगभग मिटा दिया। लाखों कश्मीरी हिन्दुओं को अपना मकान-सामान, काम धंधा, सब कुछ रातोंरात छोड़कर जम्मू या भारत के किसी और कोने में शरण लेने के लिए भागना पड़ा। जो कश्मीरी हिन्दू सब कुछ गंवाकर भी पूरे परिवार सहित यहां पहुंच सके, वो बहुत सौभाग्यशाली थे। कम से कम उनका पूरा परिवार अभी भी जिन्दा था, नहीं तो हजारों परिवारों की एक या अधिक बहन-बेटी वहां के मोहम्मेडनस ने जबरन रोक लीं या उठाकर ले गये। सैकड़ों के साथ सामूहिक बलात्कार किये गये, कई को उनके शरीर के टुकड़े करने के बाद सड़क पर नंगा फेंक दिया गया। हजारों परिवारों में कोई न कोई मर्द मार दिया गया, जिन्दा जला दिया गया। कई दुधमुंहे बच्चे भी मुस्लिम आतंकवादियों के इस पाप के शिकार हुये।

भारत के ही एक हिस्से में 1947 के देश के विभाजन के बाद का यह सबसे बड़ा नरसंहार हुआ था।

पर मैं अपना सामान्य जीवन जी रहा था। मुझे इस सबके बारे में कुछ भी पता नहीं चल सका था। 1994 में मैं कुछ मित्रों के साथ दिल्ली के नेहरु प्लेस में उनके कम्प्यूटर सेल-सर्विस के ऑफिस में बैठा हुआ था। अचानक दो जवान और बहुत सुन्दर लड़कियां कुछ चन्दा सा मांगती वहां आईं। उनके साथ दो-तीन मर्द भी थे जो ऑफिस के बाहर ही रुक गये थे। ऑफिस में बैठे एक व्यक्ति ने अपनी कुर्सी पर बैठे बैठे 10 का नोट एक लड़की के हाथ में थमा दिया – थोड़ा सा उस लड़की के हाथ को सहलाते हुये – और एक भद्दा सा कमेन्ट करते हुये – “चलेगी क्या?” लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया तो इस व्यक्ति ने हंसते हुये फिर बोला – ” इन आदमियों को छोड़कर फिर से आना, तब और पैसे दूंगा”। मैं आश्चर्य में था कि कोई कैसे इस भद्दी तरह से किसी लड़की से खुलेआम ऐसे गन्दे मजाक कर सकता है। मैंने पूछा कि ये लड़कियां कौन हैं? बताया गया कि कश्मीरी विस्थापित हैं, सरकारी टैन्टों में रहते हैं और चन्दा मांगकर अपने परिवार का पालन करते हैं।
लेकिन उनसे ऐसे भद्दे मजाक?? हां, लोग इनसे मजाक करते हैं – कुछ लोग लड़कियों का हाथ पकड़ लेते हैं इसीलिये उनके साथ मर्द भी चलते हैं।

और पता चला कि सचमुच उन लड़कियों में से कुछ हालात के आगे इतना मजबूर हो चुकी थीं, टूट चुकी थीं कि सिर्फ 20-30 या 50 रुपये के लिए अपने शरीर को आधे-एक घंटे के लिए किसी के भी हवाले करने को तैयार हो जाती थीं। एक बार आंख बन्द करके सोचिये कि वो कश्मीरी हिन्दू कितने मजबूर थे कि चन्द दिन पहले तक एक हंसती खेलती ज़िन्दगी जीने वाले आज भीख मांगने पर मजबूर थे! कल तक कॉलेजों में पढ़ने वाली लड़कियां आज अपने शरीर का सौदा करने को मजबूर थीं! कल तक बड़े बड़े मकानों में रहने वाले आज फटे हुये गन्दे टैंटों वाले विस्थापितों के गन्दे से इलाके में रहने को मजबूर थे!

और सबसे शर्म की बात यह कि उस समय की सरकार व मीडिया ने बाकी देशवासियों से ऐसी हकीकत छुपाये रखी।

कश्मीरी हिन्दुओं की यह शोचनीय स्थिति मेरी आँखों के सामने फिर कभी न आई। कभी कभी सोचता हूँ कि मैं कितना बड़ा गुनहगार हूँ कि उस दिन उस बदतमीज मित्र को वहीं पर एक थप्पड़ भी नहीं मारा, उन कश्मीरी लड़कियों से अपने मित्र की इस बेहूदगी पर माफी भी नहीं मांगी। लेकिन सच इसके आगे भी है।।

सच यह है कि उस समय की सरकार या मीडिया ने बाकी भारतीय समाज को कश्मीरी हिन्दुओं के ऊपर हुये भयंकर अत्याचार के बारे में 1% भी पता नहीं चलने दिया।। सभी समाचार दबा दिये गये, छुपा दिये गये। और इसी का नतीजा था कि सच से अनभिज्ञ मेरा एक मित्र उन कश्मीरी बहनों के प्रति सहानुभूति रखने के बजाय उनका मजाक उड़ा रहा था… कि सच से अनभिज्ञ मैं उन दिनों कश्मीरी हिन्दुओं के 10-10 रुपये मांगने और 20-30-50 रुपये के लिए अपने शरीर का भी सौदा करने को सामान्य घटना समझ रहा था।

मेरे कश्मीरी हिन्दू बहनों और भाइयों। मुझे माफ कर दीजिएगा। मुझे सचमुच आपकी मजबूरियों, आप पर किये गये भयंकर अत्याचारों की सही जानकारी 2014 से पहले थी ही नहीं। मैं अपनी ही दुनिया में जी रहा था, मैं मूर्ख था।

मैं चाहता हूँ कि सेना को कश्मीर में स्थित सभी आतंकवादियों और उनकी मदद करने वाले सभी पत्थरबाजों को सीधे छाती पर गोली मारने की अनुमति दी जाये। महबूबा मुफ्ती, फारुख व उमर अबदुल्ला जैसे सभी नेताओं को देशद्रोही करार देकर जेल भेजा जाए। कश्मीर को पूरी तरह से आतंकवाद मुक्त करके वहां कश्मीरी विस्थापित हिन्दुओं को वापस बसाया जाये। 370 व 35 ए को तुरन्त समाप्त किया जाये।

और हां, कश्मीरी विस्थापित हिन्दू भाई बहनों से एक बार और क्षमा मांगते हुये।

जय हिंद।

– Shakendra Singh

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