वीर की नीति होती है पहले साम,उससे न सधे तो दाम,उससे भी न सधे तो दण्ड और भेद ।
कायर की नीति विपरीत होती है — पाकिस्तान या नेपाल के कायरों को सिखलाकर भेद,शक्ति रहे तो दण्ड,और दण्ड की शक्ति न रहे तो भारत के भीतरी गद्दारों को दाम और देशभक्तों के साथ साम । १९६२ में भी उन कायरों की जीत न होती यदि भारत पर उनसे भी बड़े कायर का राज न होता ।
—————————————
भारत के पड़ोसी निर्बल पिद्दियों का बल चीन के साथ है । चीन के सारे बलवान पड़ोसी चीन के शत्रु हैं — अब भारत ने भी उनको साथ लेकर चीन की घेराबन्दी आरम्भ कर दी है । भारत के पास हाइड्रोजन बम और ब्रह्मोस मिसाइल है जिसे मोदी ने वियतनाम में लगा दिया है ताकि चीन यदि लद्दाख या दोकलाम में सीधा युद्ध आरम्भ करे तो सीधे बीजिंग पर भारत का बम गिर सके ।
—————————————
इस वर्ष का फल भारत हेतु अशुभ है,किन्तु इतना अशुभ नहीं कि चीन १९६२ को दुहरा सके । १९६२ की विश्वकुण्डली में भारत और चीन मृत्यु के अष्टम भाव में थे,और इस बार भी वहीं हाल है । परन्तु तब शनि का प्रबल और शुभ सर्वतोभद्र वेध चीन पर था जिस कारण भारत की हार हुई । इस बार भारत पर अनेक शुभ वेध हैं,बृहस्पति का अशुभ वेध है,और चीन पर दो अत्यधिक अशुभ और एक अतिशुभ वेध है । खींचतान चलेगी ।
अगला वर्ष भारत के लिये बेहतर है और चीन का भारत से भी बेहतर ।
राष्ट्र की ग्रहशान्ति राष्ट्र के नेता का कर्तव्य है किन्तु वैदिक विधि पर शासन को भरोसा नहीं ।
—————————————
—————————————
रक्षामन्त्री ने झूठा बयान दिया है कि सीमा के निकट चीन के सैनिक आ गये हैं,जबकि सच्चाई यह है कि सियाचिन वाली भूल भारत ने की । १९९९ ई⋅ के कारगिल युद्ध के दौरान पैंगाँग झील के पास वाली सैनिक इकाईयों को ऑपरेशन विजय में भेजा गया जिसका लाभ उठाकर चीन ने पैंगाँग झील के बगल भारतीय क्षेत्र में घुसकर ५ किलोमीटर सड़क इतनी ऊँचाई पर बना लिया जहाँ से उसके सैनिक भारतीय चौकियों को देख सकें ।
भारतीय दावा फिंगर−८ तक है ,वहाँ तक भारतीय गस्ती दल जाते थे । चीनियों ने फिंगर−८ से ७ किमी पूर्व झील−तट पर ही अपनी सैन्य चौकी बना रखी है जहाँ उनकी नौसैनिक नौकायें भी हैं । उस चीनी अड्डे का उपग्रह चित्र−१ संलग्न है ।
चित्र−२ है फिंगर−४ पर ITBP की आखिरी चौकी ,चित्र में पर्वत पर लिखा “ITBP” पढ़ा जा सकता है ।
तीसरा चित्र बड़े पैमाने का है जिसमें २ से ८ तक सारे फिंगरों के नाम तथा भारतीय ITBP एवं चीनी चौकियों के स्थान भी दिखाये गये हैं । भारतीय ITBP के पास जो उर्ध्व लाल रेखा है वह चीनियों के अनुसार LAC है जबकि फिंगर−८ से पूर्व जो लाल रेखा है वह भारत के अनुसार सीमा है किन्तु वास्तव में चीनी नियन्त्रण में है ।
बाँयी ओर वाली लाल रेखा वर्तमान LAC है जहाँ झील के तट तक चीन ने १९९९ के कारगिल युद्ध में भारत की व्यस्तता का लाभ उठाकर सड़क बना लिया था और उसी बिन्दु पर चीनी गाड़ियों के वापस मुड़ने का मोड़ भी है जो जूम करके चित्र−४ में मैंने दिखाया है । इस मोड़ से आगे भी भारतीय गस्ती दल पैदल जाते थे किन्तु अब चीनियों ने भारतीय गस्ती को इस मोड़ पर LAC के पास ही रोक दिया है । भारत का कथन है कि १९९९ ई⋅ में चीन ने जो सड़क इस मोड़ तक बनायी वह अवैध है जबकि चीन का कहना है कि १९६२ ई⋅ से ही चीन का वहाँ तक अधिकार है । अभी इसी बात का विवाद है । भारतीय पत्तलकारों को भूगोल का ज्ञान नहीं है जिस कारण फिंगर−२ तक चीन के गस्ती दल के आने का बात कही जा रही है जो असम्भव है क्योंकि फिंगर−४ पर ही भारत की स्थायी चौकी है जहाँ से वर्तमान LAC तक केवल पैदल ही जा सकते हैं ।
अन्तिम चित्र−४ में जूम चित्र है जिसमें ऊपर बाँयी ओर भारतीय ITBP चौकी है जहाँ तक भारतीय सड़क चित्र में साफ दिखती है । उसी चित्र में दाहिनी और नीचे LAC लिखा है जो वर्तमान नियन्त्रण रेखा है और वहीं तक १९९९ ई⋅ में बनी चीनी सड़क का यू−टर्न मोड़ है जहाँ तक चीनी गस्ती गाड़ी आकर वापस चीनी बेस की ओर मुड़ जाती है । हाल के विवाद से पहले भारतीय पैदल गस्ती दल चीनी बेस तक चले जाते थि किन्तु अब उनको वर्तमान LAC पर ही चीन रोक रहा है । भारत इसको LAC मानने से इनकार कर रहा है । इसी बात का विवाद है ।
विवाद का मूल है भारत को धोखा देकर १९९९ ई⋅ में चीन द्वारा उक्त यू−टर्न मोड़ तक सड़क का निर्माण । उक्त यूटर्न मोड़ के पास ही चीन ने हाल में अचानक नया सैन्य अड्डा बना लिया है । ऐसी ही हरकत चीन ने २०१३ ई⋅ में की थी किन्तु भारत द्वारा विरोध करने पर चीन ने उसे तोड़ डाला था । इस बार अमरीका के साथ भारत के गठजोड़ और कोरोना पर विवाद के कारण चीन भारत पर बौखलाया हुआ है ।
पैंगाँग झील के उस क्षेत्र का सामरिक महत्व है,१९६२ में चीनियों का मुख्य आक्रमण भी उसी रास्ते हुआ था । भारत की दृष्टि में यह भारतीय क्षेत्र मे चीन का अतिक्रमण है क्योंकि फिंगर−८ पर भारत के अनुसार LAC है । चीन की दृष्टि में LAC फिंगर−२ पर है ।
वास्तविक नियन्त्र रेखा LAC का चीनी दावा चित्र में “LAC−१” है तथा भारतीय दावा “LAC−२” है ।
इन्हीं दोनों रेखाओं के बीच वाला क्षेत्र वर्तमान विवाद का विषय है । किन्तु चीन का दूरगामी लक्ष्य है फिंगर−२ पर कब्जा ताकि भविष्य में सम्पूर्ण लद्दाख पर कब्जा कर सके क्योंकि चीन के अनुसार पूरा तिब्बत चीन का है और चीन के अनुसार पूरा लद्दाख तिब्बत का अङ्ग है । यही कारण है कि १९६२ के पश्चात किसी भी वार्ता में चीन ने अपना सम्पूर्ण पक्ष कभी स्पष्ट नहीं किया,वह पूरा लद्दाख हथियाने के लिये अवसर की ताक में है । उसके बाद शेष जम्मू−कश्मीर पर पाकिस्तान का कब्जा कराकर उसे अपना उपनिवेश बनाकर रखेगा । ऐसे लक्ष्य को चीन खुलकर कह नहीं सकता ।
भारत के हित में यह था कि तिब्बत पर चीन को कब्जा करने से रोकता जो ५०’ के दशक में भारत कर सकता था किन्तु नेहरु की कबूतर उड़ाने में रुचि थी ।
चीनी दृष्टि को यदि भारत मान ले तो सम्पूर्ण लद्दाख की सुरक्षा खतरे में पड़ जायगी । चीन और भारत के बीच LAC का शान्तिपूर्ण समाधान असम्भव है क्योंकि चीन की बात मान लें तो लद्दाख से अरुणाचल तक सामरिक महत्व के सारे स्थानों पर चीन का आधिपत्य हो जायगा और सम्पूर्ण उत्तरी भारत सदैव खतरे में रहेगा । भारत के साथ शान्तिपूर्ण मैत्री चीन की लक्ष्य नहीं है । अतः समाधान का एकमात्र उपाय है भारत की शक्ति बढ़ाना और चीन के साथ कड़ाई । साथ ही चीन की चारों ओर से घेराबन्दी ।
इस घेराबन्दी में पहले रूस भारत के साथ था किन्तु अमरीका,जापान,ताइवान,आस्ट्रेलिया,आदि को साथ लेने के कारण रूस से भारत की दूरी बढ़ने लगी है क्योंकि अमरीका नहीं चाहता कि रूस से भारत के सम्बन्ध बना रहे । अमरीका पर अधिक भरोसा करना खतरनाक है क्योंकि अमरीका ने अभीतक भारत के शत्रुओं का ही साथ दिया है । अभी भी रक्षा उत्पादन बढ़ाने के स्थान पर शस्त्रों का सबसे बड़ा आयातक बनने में ही भारत की रुचि है । यह गलत नीति है । भारत ब्रह्मोस बना सकता है किन्तु बुलेट से लेकर कीलें तक आयात करता है!
चीन को कच्चे माल की आपूर्ति भारत बन्द कर दे तो चीन को भयङ्कर क्षति होगी । चीनी सामान का आयात बन्द करना भी आवश्यक है,किन्तु उससे अधिक प्रभावी होगा चीन को कच्चे माल की आपूर्ति बन्द करना — तब चीन के बहुत से कारखाने बन्द हो जायेंगे और चीन में विद्रोह भड़केगा ।
चीन को कच्चे माल की आपूर्ति का अधिकांश सरकारी कम्पनियाँ करती हैं,जैसे कि कोयला । मीडिया यह बात छुपाती है और केवल चीनी सामान का आयात न करने की सलाह जनता को देती है ताकि भारतीय सेठों के मँहगे सामान हमलोग खरीदें । चीन को कच्चा लोहा और कोयला भेजना सरकार क्यों नही बन्द कर सकती?चीन के साथ भारत के आयात−निर्यात के आँकड़ें देखेंगे तो आँखे खुल जायेंगी । सरकार पर दवाब डालें ।
चीन को भारत का निर्यात मुख्यतः कच्चा माल है जिसका मूल्य कम होता है किन्तु उसके बिना तैयार माल बन ही नहीं सकता जो अधिक मूल्य का होता है जिसे चीन निर्यात करता है । जो देश कच्चा माल नर्यात करे और तैयार माल खरीदे उसे आर्थिक रूप से उपनिवेश या गुलाम कहा जाता है जो चीन की तुलना में भारत की हैसियत है । इसे सुधारे बिना चीन से अच्छा सम्बन्ध सम्भव नहीं,और सुधारने का उपाय है चीन को कच्चा माल नही भेजना ताकि वह तैयार माल बना ही न सके । भारतीय मीडिया के मालिकों को चीन ३% सस्ते सूद पर कर्ज देता है ताकि माडिया सही बात आपको न बतायें ।
–श्री विनय झा