भारत और चीन की सैन्य शक्ति की तुलना गलत तरीके से की जाती है । केवल रक्षा बजट बढ़ाने या आयुध के भण्डार बनाने से शक्ति नहीं बढ़ती । मिस्र ने ४०० रूसी युद्धविमान खरीदे थे जो पूरे इजरायल को भस्म कर सकते थे,किन्तु उनमें से एक भी विमान उड़ान भरता उससे पहले ही इजरायल ने उन सबको नष्ट कर डाला । कहावत है कि बन्दर के मुँह में पान शोभा नहीं देता ।
इतिहास गवाह है कि सीधी लड़ाई में चीन अपने बूते कभी किसी देश से नहीं जीता । मंगोलों ने चीन को गुलाम बनाया किन्तु भारत से मार खाकर भागे । जापान ने उसका क्या हाल किया था यह सबको पता है । नन्हे से वियतनाम ने चीन की मिट्टी पलीद कर दी थी । प्राचीन काल में भी वियतनाम के चम्पा राज्य को चीन नहीं जीत सका था । १९वीं शती में फ्रांस और ब्रिटेन ने चीनियों को पीट−पीट कर अफीम पीने की लत लगायी । लड़कर तो चीन अपने क्षेत्रों हाँगकाँग और ताइवान को भी नहीं ले सका । १९६२ ई⋅ में नेहरू ने जानबूझकर चीन को जीतने दिया ।
लद्दाख के लिये भारत और चीन में पूरी शक्ति से युद्ध हो तो चीन के केवल एक हवाई अड्डे से उसके युद्धविमान लद्दाख तक आ सकेंगे जबकि भारत के आठ हवाई अड्डों से युद्धविमान लद्दाख जा सकेंगे । जिन सड़कों के लिये अभी विवाद हो रहा है वे तो युद्ध आरम्भ होते ही ध्वस्त कर दिये जायेंगे । यही कारण था कि भारत ने सीमा पर सड़क बनाने पर ध्यान नहीं दिया था ।
अब भारत सीमा पर सड़क बनाने पर ध्यान दे रहा है जिसके दो कारण हैं — सीमावर्ती गाँवों का विकास,और युद्ध होने पर जब आकाश में भारत की बढ़त स्थापित हो जाय तो चीनी क्षेत्रों में थलसेना के घुसने का रास्ता ।
वास्तविक युद्ध आकाश में होगा जहाँ चीन से आठ गुणा अधिक युद्धविमान भारत के रहेंगे । १९६२ ई⋅ में भारत की आकाशीय बढ़त आज से भी अधिक थी किन्तु नेहरू ने वायुसेना को युद्ध में भाग ही नहीं लेने दिया क्योंकि नेहरू को भय हो गया कि चीनी थलसेना बिगड़कर दिल्ली तक आ जायगी तो गद्दी से हाथ धोना पड़ेगा ।
अणुबम रखे रह जायेंगे क्योंकि उनका प्रयोग होने पर संसार की सारी महाशक्तियाँ हस्तक्षेप कर देंगी । दूरगामी मिसाइलों से एक दूसरे के महानगरों पर भी इसी कारण आक्रमण नहीं हो सकेगा ।
वास्तविक युद्ध सीमा पर ही होगा जिसमें भारत का सामना करने की क्षमता चीन में नहीं है । तभी तो चीन धोखेबाजी का आसरा लेकर दो कदम आगे और फिर वार्ता करने पर एक कदम पीछे हटने की कूटनीति के सहारे धीरे−धीरे भारतीय क्षेत्रों को हड़पना चाहता है ।
युद्ध मँहगा पड़ता है जिस कारण अक्साइ−चिन छीनने की क्षमता होने पर भी भारत आक्रमण नहीं करना चाहता ।
चीनी सामान जलाने से चीन को कोई क्षति नहीं होगी क्योंकि उस सामान का मूल्य तो वह वसूल चुका है । उसका नया सामान नहीं खरीदे यह आवश्यक है । किन्तु रातोरात यह पूरी तरह से सम्भव नहीं क्योंकि हमारे बहुत से उद्योग चीनी सामानों पर आश्रित हैं । सरकार और उद्यमियों को शीघ्र विकल्प बनाने पर ध्यान देना चाहिये । इससे भी अधिक आवश्यक है चीन को कच्चे माल की आपूर्ति बन्द की जाय क्योंकि तब चीन तैयार माल बना ही नहीं सकेगा — किन्तु भारतीय मीडिया इस तथ्य को दबाती है जिसका कारण है भारतीय सेठों को चीन द्वारा सस्ते सूद पर कर्ज । युद्ध से भी अधिक मारक होगा चीन को कच्चा लोहा,कोयला,आदि की आपूर्ति बन्द करना ।
साम−दाम से चीन नहीं सुधरा,अब दण्ड−भेद का समय है ।
– विनय झा