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भारत की लूट और समाधान

पिछले वर्ष २ जून को एक अमरीकी डॉलर था ६६⋅९६४८६५ रूपये का,आज है ६९⋅५५०१८३ का । एक वर्ष का ग्राफ संलग्न है ।
जबकि संसार के सभी बड़े देशों की तुलना में भारत की आर्थिक विकास दर सबसे तीव्र है,विशेषतया अमरीका की तुलना में तो बहुत ही तीव्र है । फिर क्या कारण है कि मजबूत अर्थव्यवस्था के बावजूद रूपया कमजोर है?

रूपया कमजोर हो तो निर्यात करने पर हमें कम डॉलर मिलेंगे और आयात करने पर अधिक डॉलर देने पड़ेंगे । एक वर्ष में रूपये का मूल्य डॉलर की तुलना में ३⋅८६०७% गिरा,जिसका अर्थ यह है कि आयात और निर्यात पर हमें ३⋅८६०७% अधिक डॉलर देना पड़ेगा तब पहले के बराबर सामान खरीद और बेच सकेंगे । आयात और निर्यात मिलाकर लगभग नौ सौ अरब डॉलर है,अतः रूपये की कमजोरी के कारण हमें प्रतिवर्ष लगभग ३६ अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा गँवानी पड़ रही है ।

भारत के रक्षा बजट से यह कुछ ही कम है,और यह क्षति विदेशी मुद्रा में है । विदेशी मुद्रा में क्षति का अर्थ है वास्तविक क्षति चार गुणा अधिक,क्योंकि वर्ल्ड बैंक के अनुसार अमरीका के बाजार में एक डॉलर जितना सामान खरीद सकता है उतना ही सामान भारत के घरेलू बाजार में १७ रूपया खरीद सकता है । अर्थात् निर्यात करते समय हमें चार गुणा अधिक सामान देना पड़ेगा और आयात करते समय चार गुणा कम सामान मिलेगा । यह चार गुणे का अन्तर क्यों हुआ?क्योंकि हर वर्ष रूपये का मूल्य डॉलर की तुलना में गिरता ही जा रहा है । यदि ३⋅८६०७% की वार्षिक दर से रूपये का मूल्य गिरता रहे तो ३७ वर्षों में चार गुणे से अधिक गिरावट हो जायगी ।

अब कारण पर आयें । अमरीका में ट्रम्प की सरकार सेठों पर मेहरबान है,ट्रम्प स्वयं भी सेठ हैं और उनकी पार्टी सदा से सेठों पर मेहरबान रही है । सेठों को टैक्स में भारी छूट दी गयी है । फलस्वरूप अमरीकी सरकार का वित्तीय घाटा बहुत बढ़ गया जिसे पाटने के लिये अमरीकी सरकार को नये बॉण्ड जारी करने पड़े,अर्थात् कर्ज लेना पड़ा । फल हुआ मँहगाई में वृद्धि । मुद्रास्फीति नियन्त्रण मे रहे इस कारण अमरीकी फेडरल बैंक को सूद की दर बढ़ानी पड़ी । सूद बढ़ने पर लोग कम कर्ज लेंगे,लोगों के पास कम मुद्रा होगी तो कम सामान खरीदेंगे,और तब आर्थिक विकास धीमा पड़ जायगा किन्तु मुद्रास्फीति भी कम रहेगी क्योंकि मुद्रा की माँग कम रहेगी । अतः ट्रम्प द्वारा सेठों को छूट के कारण अमरीका में उपभोक्ता मूल्य तो बढ़े किन्तु सरकार को नये करेन्सी नोट नहीं छापने पड़े क्योंकि सूद बढ़ाकर जनता की क्रयशक्ति घटा दी गयी । सूद नहीं बढ़ता तो डॉलर अधिक छापने पड़ते जिससे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में डॉलर कमजोर होता ।

सूद की दर बढ़ाकर डॉलर को मजबूती दी गयी । रूपये की तुलना में डॉलर की मजबूती का सबसे बुरा परिणाम पेट्रोलियम आयात पर पड़ता है जो भारत के विदेश व्यापार घाटे का मुख्य स्रोत है और पेट्रोलियम हमें अमरीकी डॉलर देकर खरीदना पड़ता है । संसार के सभी बड़े देशों में डॉलर की मजबूती का सर्वाधिक दुष्परिणाम भारत को भुगतना पड़ता है क्योंकि अर्थव्यवस्था की तुलना में पेट्रोलियम आयात के मामले में भारत की स्थिति सबसे बुरी है । जापान जैसे देश निर्यात द्वारा पेट्रोलियम आयात की भरपाई कर लेते हैं किन्तु निर्यात के मामले में आज भी भारत कमजोर है । किन्तु मोदी सरकार के पाँच वर्षों के दौरान विदेश व्यापार के घाटे में बहुत कमी आयी है जिसर मीडिया और विपक्ष मौन है,और अन्धभक्तों को गाली−गलौच तथा हर’हर मोदी के सिवा कुछ आता ही नहीं जो ऐसी उपलब्धियों का प्रचार करें ।

अमरीका को प्रसन्न करने के लिये मोदी सरकार ने वेनजुएला से पेट्रोलियम का आयात तीन गुणा घटा दिया,जो गलत निर्णय है । इसका फल हुआ कि इस्लामी देशों पर भारत की निर्भरता बढ़ गयी । किन्तु मोदी सरकार ने बुद्धिमानी यह की कि अमरीका की अप्रसन्नता के बावजूद ईरान से पेट्रोलियम का आयात बढ़ाया ताकि केवल सऊदी अरब जैसे देशों पर ही निर्भर न रहना पड़े ।

समाधान यह है कि पेट्रोलियम के आयात की भरपाई के लिये अनावश्यक आयात घटाये जाय और जापान की तरह निर्यात बढ़ाया जाय,जो सारी सरकारें करती आ रही हैं । किन्तु इससे भी अधिक कारगर उपाय है अमरीकी डॉलर पर निर्भरता को घटाना,जिसके लिये मनमोहन सिंह के कार्यकाल में २००९ में ब्राजील,रूस,भारत और चीन (BRIC) ने तय किया था कि आपसी व्यापार अमरीकी डॉलर या किसी भी मुद्रा में न करके सामान के लेनदेन द्वारा करेंगे जो बार्टर (वस्तु−विनिमय) कहलाता है । मोदी सरकार ने BRIC पर ध्यान नहीं दिया और अमरीका को प्रसन्न करने में लगी रही जो बहुत बड़ी भूल है ।

भारत को महाशक्ति बनाने का एकमात्र उपाय है अमरीकी डॉलर के चँगुल से निकलना,क्योंकि आज भारत का वास्तविक राष्ट्रीय उत्पाद १०७०० अरब डॉलर का है किन्तु अमरीकी डॉलर के गलत विनिमय दर के कारण भारत का राष्ट्रीय उत्पाद चार गुणा कम करके २६०० अरब डॉलर आँका जाता है और मोदी भी कहते हैं कि हाल में फ्रांस को पछाड़कर भारत छठी अर्थव्यवस्था बन चुका है,जबकि सच्चाई यह है कि क्रयशक्ति के आधार पर भारत से आगे केवल चीन और अमरीका हैं ।

वस्तु−विनिमय का दायरा BRIC से भी बाहर फैले और अधिकाधिक देशों से हम अमरीकी डॉलर को किनारे करके वस्तु−विनिमय द्वारा व्यापार करें तभी अमरीका के सेठों की ऐय्याशी के लिये कीमत चुकाने से हम बच सकेंगे । डॉलर की बादशाहत को बचाने के लिये ही वेनजुएला और ईरान के पेट्रोलियम पर अमरीका ने प्रतिबन्ध लगाया क्योंकि वे अमरीका के पिछलग्गू नहीं हैं,रूस अब साम्यवादी नहीं हैं फिर भी अमरीका उसकी घेराबन्दी करता रहता है क्योंकि रूस भी अमरीका का पिछलग्गू नहीं है ।सुन्नी देशों द्वारा जेहादियों की सहायता की जाती है फिर भी अमरीका उनपर मेहरबान है क्योंकि उनका पेट्रोलियम अमरीकी डॉलर से बन्धा है और अमरीकी डॉलर की बादशाहत को कायम रखने में सहायक है ।

भारत का पुनरुत्थान तभी सम्भव है जब दो बातों पर ध्यान दिया जाय — वस्तु−विनिमय और थोरियम−उर्जा । पेट्रोलियम पर निर्भरता घटाने के लिये बड़े पैमाने पर वैकल्पिक साधन की आवश्यकता है जो सस्ता भी हो,अतः थोरियम−उर्जा का कोई विकल्प नहीं है । सोनिया राज में थोरियम−उर्जा की परियोजना को बाधित किया गया और चालीस वैज्ञानिकों की हत्या रहस्यमय तरीके से की गयी जिसमें सन्देह अमरीका पर है ताकि उसकी यूरेनियम लॉबी का वर्चस्व कायम रहे । भारत यूरेनियम में कमजोर है किन्तु थोरियम में विश्व का अग्रणी है । बम बनाने में थोरियम से बेहतर यूरेनियम है और उर्जा के लिये यूरेनियम से बेहतर थोरियम है । अमरीका की सॅन्य लॉबी ने शीतयुद्ध के दौरान जानबूझकर थोरियम को दबाया और आज भी दबा रहा है क्योंकि अमरीका के पास अधिक थोरियम नहीं है,भारत के पास सबसे अधिक है ।

वस्तु−विनिमय और थोरियम−उर्जा,इन दो पर समुचित ध्यान दिया जाय तो भारत की लूट रोकी जा सकेगी और तब कुछ ही वर्षों में भारत विश्व की अग्रणी आर्थिक महाशक्ति बन जायगा । डॉलर की बादशाहत टूट जाय तो अमरीका स्वतः टूट जायगा,और रूपये की विनिमय दर चार गुणी बढ़ जायगी,आयात पर हमें चार गुणा कम देना पड़ेगा और निर्यात पर चार गुणा अधिक मिलेगा,अर्थात् प्रतिवर्ष २७०० अरब डॉलर का अतिरिक्त लाभ होगा जो अकल्पनीय है!थोरियम−उर्जा का विकास हो तो ईस्लामी देशों की हवा निकल जायगी ।

वित्तमन्त्री,प्रधानमन्त्री,अमित शाह,आदि को उपरोक्त सुझाव भेजिये ।

–श्री विनय झा

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