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ड़ी शिवकुमार: आख़िर क्यों पकड़ा गया कांग्रेस का कलियुगी हरीशचंद्र?

सन 2008 में 75 करोड़ रूपये की हैसियत वाले कांग्रेसी नेता शिवकुमार 2018 तक 840 करोड़ रूपये की हैसियत वाले बन गए थे। #प्रचण्ड परिश्रम और #अभूतपूर्व ईमानदारी से उनके द्वारा पाई पाई जोड़कर कमाई गई इस सम्पत्ति का पूरा ब्यौरा भी उनके पास है। वो अपने सारे कागज़-पत्तर भी दुरुस्त किये हुए थे। इसीलिए राजसी ठाठ-बाट से राजा महाराजा की तरह रहते थे। अतः सत्यवादी राजा हरिश्चंद के इस कलियुगी कांग्रेसी अवतार को सरकार ने पकड़ क्यों लिया.?

उपरोक्त सवाल का जवाब जानने के लिए आपको कुछ तथ्यों को जानना समझना होगा। तब ही आप यह भी समझ सकेंगे कि देश में लागू की गई नोटबंदी के फैसले के खिलाफ पिछले पौने तीन साल से कांग्रेस ज्वालामुखी की तरह धधक क्यों रही है, जल बिन मछली की तरह तड़प क्यों रही है?

यह तो सर्वज्ञात तथ्य है कि 8 नवम्बर 2016 को लागू की गई नोटबंदी के बाद संदिग्ध लेनदेन के कारण पकड़ में आईं 3.38 लाख फ़र्ज़ी कम्पनियां बंद कर दी गईं। नवम्बर 2016 से जून 2019 तक, लगभग ढाई वर्ष में सरकार छापेमारी कर के लगभग 9100 किलो सोना जब्त कर चुकी है। UPA के दस वर्ष के शासनकाल में जब्त किए गए सोने से यह मात्रा लगभग 4 गुना से भी अधिक है। कभी सोचा आपने कि 3.38 लाख फ़र्ज़ी कम्पनियां कैसे चिन्हित हुईं और क्यों बंद की गईं?

सोचिए इन कम्पनियों को बंद किये जाने के सरकार के फैसले के खिलाफ एक भी कम्पनी मालिक अदालत क्यों नहीं गया? इन कम्पनियों के खाते में जमा लगभग पौने तीन लाख करोड़ की राशि के लेनदेन का उत्तर सरकार को इन कम्पनियों के मालिक आज तक क्यों नहीं दे पाए हैं?

क्या यह आश्चर्यजनक तथ्य नहीं है कि केवल ढाई-तीन वर्ष में 3.38 लाख कम्पनियों को सरकार बंद कर दे और उन कम्पनियों के 3.38 लाख मालिकों में से एक भी मालिक सरकार की कार्रवाई का विरोध नहीं करे। दरअसल इन्हीं कम्पनियों के द्वारा देश में काले को सफेद करने का जादू चलता था। उस जादू पर कभी कोई उंगली नहीं उठाता था। क्योंकि उसी जादू से कभी कोई शिवकुमार, कभी कोई चिदम्बरम, कभी कोई मीसा भारती, कभी कोई तेजस्वी अपनी काली कमाई पर ईमानदारी का श्वेत धवल सुनहरा वर्क लगाता था।

उल्लेखनीय यह भी है कि यह 3.38 लाख कम्पनियां परम् ईमानदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के 10 वर्षीय शासनकाल में पैदा हुईं और फली फूलीं। उन दस वर्षों के दौरान इन कम्पनियों की कोई जांच क्यों नहीं हुईं? उनके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? ध्यान रहे कि नोटबंदी के दौरान संदिग्ध लेनदेन के कारण तत्काल पकड़ में आई इन सभी कम्पनियों की गहन जांच अभी भी नहीं हो पाई है। क्योंकि एक दिन में लगभग 350 कम्पनियों की सघन जांच कर पाना सम्भव भी नहीं है। इसमें यदि साप्ताहिक एवं अन्य छुट्टियों को जोड़ दीजिये तो यह औसतन रोजाना लगभग 450 कम्पनियों की सघन जांच पूरी करने के बराबर हो जाएगा।

अतः प्रतीक्षा करिये… अभी कई और शिवकुमार, चिदम्बरम और यादव परिवार सरीखों की अकूत सम्पत्ति पर चढ़ा हुआ इन कम्पनियों का श्वेत धवल ईमानदारी का वर्क उतरेगा।

साभार – सतीश चंद्र मिश्र

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