इस लेख से कुछ लोगों को कष्ट हो सकता है, पर बहुत सोच विचारकर लिख रहा हूँ कि कोर्ट के फैसले या मुसलमानों की सहमति से मंदिर बनना हिंदुत्व के लिए आत्मघातक साबित होगा।
पहले से ही सेक्युलरता की नींद सोया हिन्दू अगर मुल्लों की सहमति से मन्दिर बन गया तो उनके चरणचुम्बन में किसी भी हद तक गिर जाएगा। और सब ओर हिंदुत्व के प्रति एक भयानक उदासीनता फैल जाएगी।
याददाश्त का कमजोर एक ही झटके में हिंदुओं पर मुसलमानों द्वारा 1000 वर्षों तक किये गए अत्याचार भूल जाएगा, लाखों मन्दिरों का ढहाया जाना भूल जाएगा और मुसलमानों को क्षमा कर उनकी जय जयकार करेगा, उनकी सदाशयता के तराने गाएगा और उनके एहसान के बोझ तले दब ही नहीं जाएगा, बल्कि गड्ढा खोदकर उसमें बैठ जाएगा और अपने सर पर खुद ही मिट्टी डाल लेगा।
मुसलमानों की सहमति से बना राममंदिर, या कोर्ट के हमारे पक्ष के फैसले के बाद मुसलमानों की सहमति का राममन्दिर, सभी हज़ारों ढहाए गए मन्दिरों से हमारा अधिकार खत्म करने का कुचक्र होगा। इसलिए हमें सर्वसम्मति का राममन्दिर किसी भी हालत में नहीं चाहिए। इसलिए हिन्दू मुस्लिम वार्ता करके मुद्दा सुलझाने वाले सभी बिचौलिए और दलाल हिंदुत्व की कब्र खोदने को बेचैन बेलदार हैं।
आज ले देकर हिंदुत्व का प्रतीक एकमात्र राममन्दिर रह गया है। वह भी शांति के ढोंग से हमने पाया तो हिन्दू ऐसी निद्रा में सो जाएंगे कि मलेच्छ उनके सर पर चढ़ बैठेंगे। राममंदिर हमें केवल शौर्य, वीरता, लड़कर चाहिए ताकि हिन्दू स्वाभिमान का सूर्य अस्त न हो पाए।
सरकार द्वारा अध्यादेश लाकर मन्दिर बनाना एक साहस है, और उस साहस का मंदिर ही हमें चाहिए। रामजन्मभूमि केवल श्रीरामलला के विग्रह का पूजास्थल नहीं है बल्कि हिन्दू स्वाभिमान की यज्ञवेदी है। इस यज्ञवेदी में वीरता, साहस और पराक्रम की आहुतियां ही हिंदुत्व देव की हवि हैं जिससे वो पोषित होते हैं।
अतः राममंदिर बनने की जल्दी नहीं बल्कि वह स्थान तो श्रीराम के लिए आरक्षित है, ब्रह्मांड की कोई शक्ति श्रीरामजन्मभूमि पर मन्दिर के अतिरिक्त एक ईंट भी नहीं रख सकती।
पर याद रखो काशी विश्वनाथ, कृष्णजन्मभूमि से लेकर हज़ारों मन्दिर हमें वापस लेने हैं। तब तक भरत की तरह चरण पादुका सर पर रखकर हिंदुत्व साधना करते रहो ताकि जब राम वनवास से लौटे तो रामराज्य आए। हिंदुत्व का युद्ध अधूरा छोड़कर या रावण के साथ सन्धि करके श्रीराम नहीं आए थे बल्कि रावण का वध करके अयोध्या राजमहल में लौटे थे।
श्रीराम तंबू में हैं इसका रोना मत रोओ, पत्थर के खंभों और कंक्रीट की छतों का लोभ श्रीराम को नहीं है, वह तो वंचित सुग्रीव रूपी हिन्दुजाति के वन में रहते हैं। महर्षि वशिष्ठ ने कैकयी को कहा था, कैकयी राम राजमहलों का मोहताज नहीं है। राम जिस वन में रहेंगे वो वन भी राष्ट्र हो जाएगा और जिस राष्ट्र को छोड़ेंगे वह राष्ट्र भी जंगल बन जाएगा।
महर्षि वशिष्ठ के वचन को स्वयं अनुभव करो तंबू में बैठे रामलला के इर्द गिर्द सारे भारतवर्ष का राजतंत्र नोरे खा रहा है। सरकार की सरकारें एक राम नाम पर दो क्षण में बन जाती हैं तो अगले ही पल धूल में मिल जाती हैं। श्रीराम के भृकुटि विलास से अनन्त सृष्टियों का सृजन और प्रलय हो जाता है, वो श्रीराम रावण विनाश के पश्चात ही राजमहल में लौटेंगे।
मुझे अनुभूति हो रही है। जब भारत के समस्त मन्दिर हिंदुओं को प्राप्त हो जाएंगे, तब श्रीराम जन्मस्थान के राजमहल में लौटेंगे। वह समय कभी भी आ सकता है। हिंदुत्व निष्ठा पर अडिग रहो, आंसू मत बहाओ।
युद्धाय कृत निश्चय:…
टाटेश्वर रामलला की जय !!
– मुदित मित्तल